अनावश्यक हस्तक्षेप से बिखरते रिश्ते

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devendr soni
वर्तमान समय में रिश्तों में बिगाड़ और बिखराव एक गम्भीर समस्या बनती जा रही है। बात-बात पर रिश्ते बिगड़ जाना और फिर आपस में संवादहीनता का पसर जाना रिश्तों को कहीं दूर तक बिखरा देता है,जिन्हें फिर से समेटना मुश्किल हो जाता है। घर-परिवार,समाज या अन्य रिश्ते-नातों में निरन्तर आ रहे बिखराव की आखिर वजह क्या है ? जाहिर है,इस प्रश्न के उत्तर में कोई एक कारण नहीं हो सकताl हर रिश्ते 

में अलग-अलग कारण और परिस्थितियां होती हैं,जिन्हें समय रहते समझना जरूरी होता है। रिश्ते यदि किसी अनावश्यक हस्तक्षेप की वजह से बिखरते हैं,तो अक्सर किसी के हस्तक्षेप से ही सुधरते भी हैं,इसे भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
संयुक्त परिवार में रिश्तों के बिखराव की अधिकतर वजह अनावश्यक हस्तक्षेप ही होता है। घर का मुखिया चाहे वह पुरुष हो या स्त्री,अपने से छोटों पर हमेशा ही कायदे-कानून थोपते नजर आते हैं। उनके पढ़ने-लिखने से लेकर खाने-पीने,पहनने-ओढ़ने पर भी हिदायतें देते रहते हैं,जो अक्सर नागवार लगती हैंl फिर अंदर-ही-अंदर असंतोष का वातावरण पनपने लगता है,जिससे आपसी वैमनस्यता बढ़ती जाती है और यह धीरे-धीरे बिखराव का कारण बनती है। संयुक्त परिवार में अक्सर सासू मां अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है,यही स्थिति ननद और जेठानी की भी होती है। वर्चस्व की यही लड़ाई परिवार के बिखराव का कारण बनती है। आर्थिक परेशानियों की वजह से भी इस तरह की स्थितियां निर्मित होती दिखती हैं। बच्चों की आपसी स्वाभाविक लड़ाईयां भी बड़ों के रिश्तों में बिखराव लाती हैं। यह सब होता अनावश्यक हस्तक्षेप से ही है,इससे बचना चाहिए।
एकल परिवारों की समस्या में भी बिखराव का प्रमुख कारण अनावश्यक हस्तक्षेप ही होता है। पति-पत्नी में मनमुटाव और फिर संवादहीनता से दोनों में ही अहम की भावना पुष्ट होने लगती है,जो रिश्तों को पहले बिगाड़ती है और फिर बिखेर देती है। इन स्थितियों से बचने के लिए आपसी विश्वास और एक-दूसरे को समझना जरूरी होता है। दखलंदाजी उतनी ही अच्छी होती है,जो रिश्तों और भावनाओं को मजबूती दे तथा विपरीत परिस्थितियों में सम्बल बने।
यही स्थिति समाज के अन्य रिश्ते-नातों में भी निर्मित होती है। अपनी फिजूल की राय देना,उसे मनवाने का दवाब बनाना अनाधिकृत हस्तक्षेप ही होता है। इससे दूर और सतर्क रहना चाहिए।
प्रायः देखा गया है कि,आवश्यक हस्तक्षेप अधिकतर बिखराव का कारण ही बनता है,लेकिन कई बार यही अनावश्यक हस्तक्षेप रिश्तों की बुनियाद को मजबूती भी देता है। जरूरी यह है कि,हम स्वयं चैतन्य एवं सतर्क रहेंl स्थिति कोई बने,अपने होशोहवास में सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें। यदि हम ऐसा कर पाते हैं,तो फिर कोई भी अनावश्यक हस्तक्षेप हमारे जीवन को प्रभावित नहीं कर पाएगा। याद रखी कि,रिश्तों का बिखरना या न बिखरना किसी और पर नहीं हम पर निर्भर करता है।
                              #देवेन्द्र सोनी

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