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जिन सैनिकों के भरोसे पूरे वतन की रक्षा की जिम्मेदारी हो,वो ही जवान अवसाद में आकर अपने साथी जवानों की हत्या कर रहे हैं,तो इससे वीभत्स एवं चिंताजनक स्थिति ओर कुछ नहीं हो सकती है। थोड़े दिन पहले एक सैनिक द्वारा घटिया खाने की शिकायत का एक वीडियो वायरल हुआ था,और अब छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर जिले में बासगुड़ा शिविर में तैनात सीआरपीएफ के एक जवान ने आवेश में आकर ४ अन्य जवानों की हत्या कर दी। यह कोई पहली और आखिरी हत्या नहीं है। इस तरह अवसाद के कारण जवान द्वारा जवानों की हत्या की खबरें आए-दिन सुर्खियों में रहती आ रही है। निरंतर सैनिकों में फैलता अंसतोष,परिवार से दूरी और लंबे समयकाल तक अवकाश न मिलना,ऐसा होने के पीछे का एक कारण है।
हम यह भूल जाते हैं कि,सैनिक भी हमारी ही तरह आम इंसान है। उन्हें भी वो सब चाहिए होता है,जो एक आम इंसान कम-से-कम जिंदगी में चाहता है,लेकिन,हम तो किसी बस या रेल में सवारी करते सैनिक को सीट तक देना मुनासिब नहीं समझते। यह सोचनीय है कि,एक सैनिक को तब क्या ख्याल आता होगा ? जिन लोगों के कारण वो अपने घर-परिवार को छोड़कर जान पर खेल रहा है,उन्हीं लोगों के मन में सैनिक के प्रति सम्मान नहीं है। इस तरह की सामाजिक उदासीनता भी सैनिक को अवसादग्रस्त करने का काम करती है। ख़बरों के अनुसार अधिकांश मामलों में नाते-रिश्तेदार अथवा पड़ोसी ही गैरकानूनी
ढंग से जमीन हड़प लेते हैं और जवान मजबूरियों के कारण कुछ नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में वह असहाय महसूस करने लगता है और अवसाद से ग्रस्त हो जाता है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं की अपनी एक भिन्न कार्य संस्कृति है। यहाँ सभी के बीच सौहार्द की भावना बनी रहे,इसके लिए संबद्धता और उत्तरदायित्व की समझ विकसित किए जाने का प्रावधान है,लेकिन असल में ऐसा कुछ होता नहीं है। आज भी अधिकारियों और जवानों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं बन पाते। आज के जवान पहले से कहीं ज्यादा शिक्षित और जागरूक होते हैं,इसलिए अधिकारियों के लिए उनकी जरूरतें समझना जरूरी है। अधिकतर मामलों में तो अधिकारी उन्हें अपना मातहत समझते हैं,और उनसे अपने छोटे-मोटे घरेलू काम करवाते हैं,जिससे इन जवानों में रोष बढ़ता जाता है।
यह हमारे लिए बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि,भारत बिना किसी युद्ध में भाग लिए हर साल अपने १६०० जवान खो देता है। सबसे ज्यादा जवान सड़क दुर्घटना और आत्महत्या के कारण अपनी जिंदगी खो रहे हैं। यह संख्या जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी कार्रवाई में शहीद होने वाले जवानों की संख्या से दोगुनी है। आंकड़ों के मुताबिक हर साल सड़क दुर्घटनाओं में ३५० जवान,नौसैनिक और एयरमैन अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं,जबकि लगभग १२० जवान आत्महत्या कर लेते हैं। इसके अलावा प्रशिक्षण के दौरान और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण भी जवानों की जान चली जाती है। साल २०१४ से भारतीय सेना,नेवी और वायु सेना ने अपने ६५०० जवान खो दिए हैं। यह ११.७३ लाख की संख्या वाली मजबूत फौज के लिए एक बड़ी संख्या है। इन मौतों से वायुसेना और नेवी की मानव शक्ति में भी कमी आ रही है। सेना में युद्ध में शहीद होने वाले जवानों के मुकाबले १२ गुना ज्याद जवान फिजिकल कैजुअल्टी के शिकार हो रहे हैं। साल २०१६ में सीमा पर होने वाली गोलाबारी और आतंकवाद निरोधक कार्रवाई में ११२ जवान शहीद हुए हैं,जबकि १४८० जवान फिजिकल कैजुअल्टी के शिकार हुए हैं। इस साल अभी तक युद्धक कार्रवाई में केवल ८० जवान ही शहीद हुए हैं,लेकिन फिजिकल कैजुअल्टी में १०६० जवान अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। पिछले महीने सेना प्रमुख बिपिन रावत ने भी इस विषय पर गहरी चिंता जाहिर की है क्योंकि,सेना फिजिकल कैजुअल्टी के कारण हर साल लगभग दो बटालियन (एक बटालियन में ७००-८०० जवान होते हैं) जवान खो देती है।
सेना के लिए सड़क दुर्घटनाएं भी बड़ी चिंता का विषय हैं। इसके लिए सेना के चालकों को चालन और उनकी शारीरिक स्वस्थता के नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। साथ ही लापरवाही करने पर सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए गए। हालांकि,इतनी बड़ी सेना पूरे देश में कठिन रास्तों पर रोजाना आती-जाती रहती है। नौकरी के दबाव में होने वाली मौतें जैसे आत्महत्या या साथी-वरिष्ठ अधिकारी की हत्या जैसे कारणों से जवानों की होने वाली मौत का आंकड़ा भी काफी बड़ा है। साल २०१४ से अब तक ९ अधिकारियों,१९ जूनियर कमीशंड अधिकारियों समेत कुल ३३० जवानों ने आत्महत्या की है। इस दौरान कई जवानों ने अपने साथी जवानों और अधिकारियों की भी हत्या कर दी है। सेना में जवानों पर दबाव कम करने के तथाकथित कदम उठाए जाने के बावजूद जवानों द्वारा आत्महत्या किए जाने के आंकड़ों में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है। सेना के जवान नौकरी में मिलने वाले मानसिक दबावों के अलावा परिवारिक समस्याओं,संपत्ति विवाद,वित्तीय समस्याओं और वैवाहिक समस्याओं के कारण भी आत्महत्या कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्यों में चलाए जा रहे आतंकवाद निरोधी अभियानों में लंबे समय तक शामिल रहने के कारण भी जवान भारी दबाव में रहते हैं। इसके अलावा जवानों को काफी कम वेतन,कम छुट्टियां और कम आधारभूत सुविधाएं दी जा रही हैं।
आवश्यकता है कि,इस समस्या से निपटने के लिए जवानों के लिए मानसिक परामर्श और उनकी रहने-खाने की व्यवस्था में सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए। जवानों को परिवार साथ रखने,आसानी से छुट्टियां देने और तुरंत शिकायत निवारण की व्यवस्था जैसी सुविधाओं में भी सुधार लाया जाना चाहिए। साथ ही देशभक्ति से परिपूर्ण कार्यक्रम व सम्मान समारोह आयोजित कर जवानों को गौरव का अहसास कराया जाना चाहिए। उन्हें यह कतई महसूस नहीं होने दिया जाना चाहिए कि,उन्होंने सेना में आकर कोई गलती की है। उन्हें हम सब यह महसूस कराएं कि,सेना और सैनिक बनकर जीना और मरना सर्वोत्तम एवं सर्वश्रेष्ठ कार्य है।
#देवेन्द्र राज सुथार
परिचय : देवेन्द्र राज सुथार का निवास राजस्थान राज्य के जालोर जिला स्थित बागरा में हैl आप जोधपुर के विश्वविद्यालय में अध्ययनरत होकर स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैंl
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