कर्तव्यबोध

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kiran baranval
पहाडिय़ों की गोद में बसा झारखंड का छोटा सा गाँव, प्राकृतिक सौन्दर्य और हरे-भरे वृक्षों के साथ  मानो मानव का झूम झूम कर स्वागत कर रहे थे।इस गांव के प्राथमिक विद्यालय में उसकी शिक्षक के पद पर नियुक्ति हुई थी।
      शहरी चकाचौंध से कोसों दूर ग्रामीण परिवेश के भोले
भाले आदिवासियों ने धीरे-धीरे मानव के दिल में जगह बना लिया पर कुछ बातों से वह आहत हो जाता।अशिक्षित ग्रामीण अभी भी टोने टोटके पर विश्वास करते थे। स्वास्थय सुविधा नगण्य थी  शिक्षा अधकचरी थी जो नक्सलवादी सोच पैदा कर रही थी ।दो जून पेट भरना ही इनका ध्येय रहता।
मानव यह सब देखकर सिर पकड़ कर बैठ जाता”कहाँ गयी सरकार और उनकी वादों से भरी नीतियां। राजनीतिक दल तो इन्हे सिर्फ वोट बैंक बनाये हुए हैं “।विकास के नाम पर एक टूटा हुआ अस्पताल और चार कमरों का विधालय जहाँ ना डाक्टर आते ना ही स्थायी शिक्षक। महीने में दो बार मुँह दिखाई के एवज में तनख्वाह उठाना ही उनका मकसद रहता था। वह भी तो कुछ ऐसा ही सोच कर आया था किन्तु इन ग्रामीणों की दुर्दशा देखकर यहाँ आने के निर्णय पर खुशी होती कि शायद ईश्वर ने उसे इनके भलाई के लिये भेजा हो ।
   आत्मिक प्रेम शायद साहित्यिक शब्द हो पर इस भावना से ओत-प्रोत मानव इन आदिवासियों के संग इस तरह रच बस गया था मानो जन्मों का नाता हो। इन ग्रामीणों के प्रति  प्यार सांसारिक स्वार्थों पर हावी हो गया था।
वैज्ञानिक युग में भी गाँव में कुछ बुरा होने या किसी की मृत्यु होने पर ओझा गुणी कमजोर बेबस औरतों को ‘डायन’ घोषित कर दोषी बना जाते। डायन के संदेह में महिलाओं को जलाकर मारना, नग्न कर मल खिलाना आम बात थी। कभी-कभी मानव यह सब देखकर हतोत्साहित हो जाता फिर दुगुनी उत्साह से अपना संकल्प याद कर निकल पड़ता कुरीतियों से लड़ने। कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं से मिलकर अंधविश्वास मिटाने की मुहिम छेड़ी मानव ने। बच्चों की कक्षा लेने के बाद नुक्कड़ नाटकों और प्रचार रथ के माध्यम से लोगों को जागरूक करना शुरू किया।प्रौढ़ शिक्षा के लिए जी जान से लगा रहता वह।उसे विश्वास था शिक्षा का अलख जला कर ही इन्हें जीवन की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है। उसके पहल से गाँव के नवयुवकों ने सरपंच के सहयोग से अस्पताल में स्थायी डाक्टर की नियुक्ति करवाई।सरकारी योजना जो सिर्फ कागजों पर दिखती थी अमल में लाई जाने लगी।
धीरे धीरे झारखंड का छोटा सा गांव  प्रगति की राह पर चल सभ्य समाज का हिस्सा बनता गया।
अंततः  मानव का विश्वास जीत गया। शिक्षा के प्रकाश में  डायन प्रथा जैसी कुरीतियां समाप्त हो गयी।
“कौन कहता है आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो  तबीयत से उछालो यारों। “
                                                                    #किरण बरनवाल

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।