सफरनामा

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swayambhu

भाग 2………….
बीएससी.(ऑनर्स)की परीक्षा खत्म होने तक निर्माता निर्देशक बी.आर.चोपड़ा के चार पत्र आ चुके थे। दरअसल उन दिनों ‘चित्रलेखा’ नाम की फ़िल्म पत्रिका प्रकाशित होती थी,जिसके किसी अंक में मेरी दो ग़ज़ल छपी थीं। कहीं चोपड़ा साहब की नजर उस पर पड़ी थी। फिर उनकी फ़िल्म ‘आज की आवाज’ से प्रभावित होकर मैंने जो पत्र भेजा था, उसके प्रति भी उन्होंने आभार व्यक्त किया था। उन्हें ग़ज़लों से खास लगाव था। उस दौर की फिल्म ‘निकाह,’ ‘तवायफ’ और ‘आज की आवाज’ में उन्होंने ज्यादातर ग़ज़ल ही इस्तेमाल की थी। मैंने अपनी किताबें भी पंजीकृत पार्सल से उन्हें भेजी। पहली बार भेजा गया पार्सल उन्हें मिला नहीं,और दूसरी बार भेजे पैकेट को उनके कार्यालय ने लौटा दिया। बाद में जानकारी होने पर उन्होंने इस बात के लिए अफ़सोस जताया और लिखा कि बेहतर होगा कि आप अपनी किताबों के साथ खुद भी मुम्बई आएं।
इधर डॉ. हरिवंशराय बच्चन के साथ भी लगातार संपर्क बना हुआ था। साहित्यिक गतिविधियों के साथ परिवार का कुशल-क्षेम भी होने लगा था। अमिताभ बच्चन की बीमारी,अमेरिका में चल रहे इलाज,स्वास्थ्य में हो रहे सुधार आदि की बातें भी वो मुझसे साझा करने लगे थे।
मैंने मुम्बई जाने की योजना बनाई। पहले दौरे में मेरे मित्र दीपक कुमार साथ थे।
सांताक्रुज स्थित बी.आर.स्टूडियो बहुत बड़ा है। कहा जाता है कि,उसके अंदर पूरी फ़िल्म बन के तैयार हो जाती है। अंदर जाकर मैंने स्वागत खिड़की पर बैठी लड़की को बताया कि,चोपड़ा साहब ने मुझे बुलाया है तो पहले तो उसे यकीन नहीं हुआ। जब उसे चोपड़ा साहब के पत्रों को दिखाया तो तुरंत उसने फोन से मेरा संदेश दिया। उन्होंने मुझे अंदर बुला लिया। ऊपर वाली मंजिल एक बड़े से हॉल में उनका कार्यालय। बड़े से गोलाकार टेबल के सामने उनकी कुर्सी थी। जैसे ही मैं दरवाजे पर पहुंचा वे उठकर मेरे पास आए और हाथ मिलाया। लम्बा कद और शानदार व्यक्तित्व। उस वक्त उस कक्ष में उनके अलावा एक शख्स और थे,चोपड़ा साहब ने उनसे मेरा परिचय कराया। वे सागर सालुंके थे जिन्होंने आगे ‘महाभारत’ में बलराम की भूमिका निभाई। उनसे बातचीत के दौरान जितने भी लोग कक्ष में आए,सभी के साथ वे हिंदी और विज्ञान के शोधार्थी के रूप में मेरा परिचय कराते रहे। मैंने अपनी किताबों के साथ एक कहानी भी उन्हें दी। उन्होंने इत्मीनान से पढ़कर अपनी राय देने की बात कही। हां,  एक बात जरूर बताई कि अभी कोई फिल्म तैयारी पर नहीं है। अगली योजना ‘महाभारत’ धारावाहिक की है जिसकी तैयारी चल रही है। मैं उनके बड़प्पन और विनम्रता का कायल हो गया था। वे ज्यादातर अंग्रेजी में बात कर रहे थे,लहजा पंजाबी था। उनसे विदा होते समय भी वे फिर मेरा हाथ पकड़कर दरवाजे तक छोड़ने आए। मैं तो उनके पांव छूना चाहता था,लेकिन वो मेरा हाथ थामे रहे। यह मुलाकात मेरे लिए जिंदगी में कभी न भूल पाने वाली मुलाकात बन गई। इन खुशनुमा यादों के साथ घर लौटने के बाद पता चला कि, बीएससी का परिणाम आने और एमएससी में प्रवेश शुरू होने में काफी वक्त है। सत्र  करीब डेढ़ वर्ष देरी से चल रहा था।
इसी बीच दिल्ली से डॉ. बच्चन साहब का एक पत्र आया,  जिसमें उन्होंने भी मिलने की इच्छा व्यक्त की। शाम का समय अनुकूल बताते हुए उन्होंने आने से पहले फोन करने के लिए कहा और अपना निजी सम्पर्क क्रमांक भी दिया।
चोपड़ा साहब ने भी किताबों को देखने के बाद अपनी राय भेजी। फिर मुम्बई आने के लिए भी कहा। इस दौरान मैं अलग-अलग स्थितियों पर  गीत-ग़ज़ल तैयार करने लगा था। करीब ३० गीत-ग़ज़ल पूरी करने के बाद फिर से मुम्बई जाने का कार्यक्रम बनाया। एक कहानी की पटकथा भी तैयार थी।
इस बार का मुंबई दौरा कई मायनों में मेरे लिए महत्वपूर्ण था। इस बार चोपड़ा साहब से मुलाकात के वक्त ‘महाभारत’ धारावाहिक की योजना शुरू हो चुकी थी।  फ़िल्म सिटी में दो सत्र में शूटिंग चल रही थी। बाहर का काम उनके सुपुत्र रवि चोपड़ा और अन्य सहायक निर्देशक देख रहे थे। चोपड़ा साहब अपने कार्यालय से ही निर्देश देते थे। काफी व्यस्त समय था। बी.आर.फिल्म्स के कहानी विभाग में सुबह ९ से ११ बजे तक भाषा की कक्षाएं चलती थी,जहां खास तौर पर हिंदी संवाद का  अभ्यास कराया जाता था। इस उद्योग के अंदर बोलचाल की भाषा में अंग्रेजी का प्रभाव ज्यादा है। हिंदी के संवाद अंग्रेजी अक्षरों में लिखे हुए मिलते थे।
‘महाभारत’ के अधिकतर कलाकार मराठी,अंग्रेजी या बंगलाभाषी थे। संस्कृतनिष्ठ हिंदी के संवाद बोलने में तो सबको कठिनाई हो रही थी,और खासकर ‘गीता सन्देश’ वाले भाग में तो संस्कृत का सबसे अधिक प्रयोग था। चोपड़ा साहब ने मुझे कक्षा लेने के लिए कहा। उर्दू अदब और हिंदी के जाने-माने विद्वान राही मासूम रज़ा साहब के साथ भी बैठने का मौका मिलता था। उन्होंने ही ‘महाभारत’ की पटकथा लिखी थी। ज्यादातर कलाकार मुझसे उम्र में बड़े थे,लेकिन माहौल बड़ा ही दोस्ताना था।
(क्रमश…इंतज़ार कीजिए तीसरे भाग का)

      #डॉ. स्वयंभू शलभ

परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।