दो दिन की चांदनी,फिर अंधेरी रात… क्यों करते हैं भाई,हम राष्ट्रभाषा की बातl भूल जाओ इसे,होगा यही बेहतर…
नहीं तो कैसे जा पाएंगे अंतरराष्ट्रीय स्तर परl
बच्चों को फिर भारत में ही पढ़ाना होगा… अमेरिका जाने के सपनों से तुम्हें हाथ धोना होगाl
आजकल तो हम हिंदी भी अंग्रेजी में लिख लेते हैं… जब काम चल जाता है तो क्यों हिंदी सीखते हैंl क्यों नहीं चाहते हो हमारी भाषा की उन्नति… बताओ कहाँ थम गई चीन,जापान,जर्मनी की प्रगतिl क्यों हमें हमारी भाषा की कोई फिक्र नहीं, गुलामी की मानसिकता है बस, स्वसम्मान का जिक्र नहींl कब होगी हमारी अतंरआत्मा से मुलाकात, कोसों दूर है खुद से,मातृभाषा की छोड़ो बातl भुला चुके हैं पाली और संस्कृत को कब के, हिंदी को भी भूल जाएंगे हम आहिस्ते- आहिस्तेl ए हिन्दुस्तानी पूत तुम सिर्फ क्या विदेशियों की नकल कर पाओगे, श्रेष्ठ वाङ्ग्मय रचयिता-ए-कुल वंश तुम, बंदर बनकर रह जाओगेl यदि अपने-आपसे अपनी भाषा में हो संवाद, फिर क्यों करना है हिंदी की श्रेष्ठता पर विवादll
#संजय वासनिक ‘वासु’
परिचय : संजय वासनिक का साहित्यिक उपनाम-वासु है। आपकी जन्मतिथि-१८ अक्तूबर १९६४ और जन्म स्थान-नागपुर हैl वर्तमान में आपका निवास मुंबई के चेंबूर में हैl महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर से सम्बन्ध रखने वाले श्री वासनिक की शिक्षा-अभियांत्रिकी है।आपका कार्यक्षेत्र-रसायन और उर्वरक इकाई(चेम्बूर) में है,तो सामाजिक क्षेत्र में समाज के निचले तबके के लिए कार्य करते हैं। इकाई की पत्रिका में आपकी कविताएं छपी हैं। सम्मान की बात करें तो महाविद्यालय जीवन में सर्वोत्कृष्ट कलाकार-नाटक सहित सर्वोत्कृष्ट-लेख से विभूषित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-शौकिया ही है।