यह महफिलें
यह रौनकें
सब छोड़ो साथियों
और
तनिक मष्तिष्क पर
ज़ोर डालकर
सोचो
यहाँ कोई लेखक
कागज
कलम
दाल
रोटी
की जुगाड़ में
जिम्मेदारियों
के बोझ तले दबकर
कर देता है कतल
अपने भीतर बैठे
रचनाकार का।
जहाँ,
आतंकवादियों से
जूझते हुए
हो जाता है
रोज़ाना
शहीद
किसी का
रिश्ता नाता
हाड़-मांस।
दिन चढ़ते ही
रोटी कपड़ों की
जुगाड़ में
जुट जाने वाले
बच्चे
हो जाते हैं बूढ़े
उम्र से पहले।
ढलते सूरज को देख
जहाँ कोई
मेरे जैसा
उदास
एकांत
डसती
रात
निकाल देता है
आंखें खुली रखकर।
जहँ भूख से
बिलखते बच्चे
तरसते रहते हैं
रोटी के टुकड़ों के लिए।
बूढ़ा बाप
इस आस में बैठे
कि,उसका ग़रीब बेटा
करेगा नौकरी
और
चुकाएगा कर्जा
काट देता है उम्र।
बिस्तर पर पड़ी
बीमार माँ
अपना इलाज
न करवा कर
दवाई के लिए रखे पैसे
दे देती है
बच्चों की किताबों के लिए।
जहाँ,
सारा समाज जख्मी हो
बहू-बेटियों की इज़्ज़त
से
खेला जा रहा हो दिनदहाड़े
खुलेआम
सरेआम
और
मानवता का लहू
बहाया जा रहा हो
जहाँ,
पानी की तरह
अपने स्वार्थों के लिए
उस माहौल में
तुम
महफिलें सजाते हो ? ?
#यशपाल निर्मल
परिचय:श्री यशपाल का साहित्यिक उपनाम- यशपाल निर्मल है। आपकी जन्मतिथि-१५ अप्रैल १९७७ और जन्म स्थान-ज्यौड़ियां (जम्मू) है। वर्तमान में ज्यौड़ियां के गढ़ी बिशना(अखनूर,जम्मू) में बसे हुए हैं। जम्मू कश्मीर राज्य से रिश्ता रखने वाले यशपाल निर्मल की शिक्षा-एम.ए. तथा एम.फिल. है। इनका कार्यक्षेत्र-सहायक सम्पादक (जम्मू कश्मीर एकेडमी आफ आर्ट,कल्चरल एंड लैंग्वेजिज, जम्मू)का है। सामाजिक क्षेत्र में आप कई साहित्यक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय रुप से भागीदार हैं। लेखन में विधा- लेख,कविता,कहानी एवं अनुवाद है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन विविध माध्यमों में हुआ है। सम्मान की बात करें तो साहित्य अकादमी का वर्ष २०१५ का अनुवाद पुरस्कार आपको मिला है। ब्लॉग पर भी सक्रिय यशपाल निर्मल को
कई अन्य संस्थाओं द्वारा भी सम्मानित किया गया है। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज में मानवता का संचार करना है।