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है अविरल-सी तू कोमल बोली,
गठित पाट की जैसे सुंदर डोली।
सरल सौम्य की सुता वास्तविक,
नित्य जीविका गद् पद्य सात्विक।
है यथार्थ का विश्वास मनोरथ,
कई मंतव्यों से गंतव्यों तक।
जैसे गमन विहार में युक्ति सूचक,
वैसे युद्ध प्रहार से मुक्ति बोधक।
कष्ट निवारक दिव्य परिणामक,
है विश्लेषक विभक्त विचारक।
इस प्रेमा-अंतर से कालान्तर तक,
नगर मार्ग से कहीं घटनास्थल तक।
कोऊ दोषी न निर्दोषी ख्याति में,
न ही आती है ये किन्हीं जाति में।
ये मानक प्रियता में-अप्रियता में,
किसी जिज्ञासक की अज्ञानता में।
बलशाली होकर बलिदानों में,
भारत के भक्ति-मय गानों में।
अनाज के उपजे हर दानों में,
वादन सुनते इन सब कानों में।
पूरक से पूरित है माँ हिन्दी,
अंधकार का प्रकाश हिन्दी।
भारत माँ के माथे की बिन्दी,
है मातृभूमि की सुंदरता हिन्दी।
वाद-विवाद का प्रसाद तुम हो,
नृत्य ताल की स्वरा भी तुम हो।
उत्तिष्ठ भारती सभ्यता कुमारी,
दिव्य मधुरता से वाणी पारखी।
स्वच्छ आवरण का वरण है हिंदी,
प्रखर ब्रह्म ज्ञान की शरण है हिंदी।
हित-परहित की चक्षुका है हिन्दी,
सबके भविष्य की शिक्षिका हिंदी॥
#रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
परिचय : रजनीश दुबे’धरतीपुत्र'
की जन्म तिथि १९ नवम्बर १९९० हैl आपका नौकरी का कार्यस्थल बुधनी स्थित श्री औरोबिन्दो पब्लिक स्कूल इकाई वर्धमान टैक्सटाइल हैl ज्वलंत मुद्दों पर काव्य एवं कथा लेखन में आप कि रुचि है,इसलिए स्वभाव क्रांतिकारी हैl मध्यप्रदेश के के नर्मदापुरम् संभाग के होशंगाबाद जिले के सरस्वती नगर रसूलिया में रहने वाले श्री दुबे का यही उद्देश्य है कि,जब तक जीवन है,तब तक अखंड भारत देश की स्थापना हेतु सक्रिय रहकर लोगों का योगदान और बढ़ाया जाए l
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