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जयंती पर विशेष
‘जिन्दगी को जीना है तो हरदम मुस्कुराइए’, सच ही है रुपया-पैसा, शोहरत और स्वास्थ्य के जब तक कोई मायने नहीं होते, जब तक उस व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान मंद-मंद अठखेलियाँ न कर रही हो। जीवन ही वह है,जिसके साथ मुस्कान जुडी़ हो। सच ही है मुस्कान है ही ऐसी,जो एक बार लबों पर उभर आए तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। वास्तव में मुस्कुराहट वह संजीवनी बूटी है,जो ईश्वर ने सिर्फ इंसान को ही प्रदत्त की है। इसे जितना बांटो, दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ती ही जाती है, और जो व्यक्ति लोगों को हंसने-मुस्कुराने का मौका प्रदान करता है,उससे बड़ा दानी कोई हो ही नहीं सकता। भारतीय फिल्माकाश पर लगभग चार दशक तक अभिनय की हास्य रूपी मुस्कानों को यत्र -तत्र बिखेरने वालेे जानी वाकर का जन्म ११ नवम्बर १९२९ को इंदौर में हुआ था। जब वे पांच-छह वर्ष के थे,तभी इनका परिवार मुंबई जाकर बस गया। जानी वाकर के जीवन के विभिन्न पहलूओं की बात की जाए तो,सन साठ के दशक में जानी वाकर के हास्य का जादू अपने पूरे चरम पर था। बी.आर.चौपड़ा,गुरुदत्त और विमल राय जैसे निर्देशकों ने जानी वाकर को अपने करिश्माई अभिनय का जलवा बिखेरने के लिए भरपूर अवसर दिए। जानी वाकर ने भी अपने मनोहारी, दिल को गुदगुदाने वाले अभिनय से सिने प्रेमियों का दिल जीत लिया।
नायक-नायिका के बाद जानी वाकर की भूमिका को ध्यान में रखकर ही कहानी लिखी जाने लगी। यहां तक कि,कई बार तो उनका रोल नायक पर भी भारी पड़ जाता था। अभिनेता-निर्देशक गुरुदत्त ने ही उन्हें व्हिस्की का चर्चित ब्रांड नाम-जानीवाकर दिया,जो ता-उम्र उनकी पहचान बन गया। अपने जीवन काल में जानी वाकर ने लगभग ३०० फिल्में की। छूमंतर,जानी वाकर,डिटेक्टिव,हलचल, बाजी,नया दौर,मेरे महबूब,देवदास,गोपी किशन,मेरीन ड्राइव,माई-बाप,मिस्टर एक्स,सट्टा बाजार,दुनिया रंग-रंगीली,हम दोनों,चौदहवीं का चांद,प्यासा और मधुमति आदि उनके अभिनय की बेहद सफल फिल्में साबित हुई। हास्य से भरपूर फिल्में जानी वाकर को अमर बना गई । पूरे चार दशक तक जानी वाकर मनोरंजन के पर्याय बने रहे। यही नहीं कई फिल्मों में उनके लिए गीत लिखे गए और फिल्माए भी गए।
फिल्म ‘प्यासा’ का बहुचर्चित गीत ‘सर जो तेरा चकराए’ (रफी जी की आवाज में) जानीवाकर पर फिल्माया गया,जो आज भी उनके मसखरेपन की याद दिलाता है और दिल झूम- झूम जाता है। जानीवाकर ने कभी इन्दौर की सड़कों पर मूंगफली बेची,तो कभी मुम्बई की बेस्ट बसों मे बस कंडक्टरी भी की। रेडियो सिलोन में सनलाइट साबुन का विज्ञापन भी किया। फिल्म ‘ आखरी पैगाम’ से फिल्मों में प्रवेश करने वाले जानी वाकर ने चेतन आनंद की अगली फिल्म ‘ आँधियां’ में अपने विविधता भरे हास्य से करोड़ों दर्शकों को अपना मुरीद बना दिया। वे अपने कई संवाद ऐसी तरन्नुम में बोलते थे कि, हंसते-हंसते दर्शकों के पेट में बल पड़ जाते थे। नवकेतन बैनर तले गुरुदत्त की यादगार फिल्म ‘बाजी’ में जानी वाकर का अभिनय दर्शकों के सर चढ़कर बोला। अस्सी-नब्बे के दशक में आए फूहड़ हास्य,अश्लीलता और द्विअर्थी संवादों से भरी फिल्मों ने मानो जानी वाकर के अंतर्मन में सुलगते ज्वालामुखी को हवा दे दी। इस दौरान जानी वाकर ने कुछ गिनी-चुनी फिल्में ही की। उनकी अंतिम फिल्म थी ‘चाची ४२०’,जो हास्य के मापदंड पर नवीन कीर्तिमान स्थापित करने में सफल रही। हां,अपने बेटे नासिर के लिए उन्होंने फिल्म ‘पहुंचे हुए लोग’ बनाई,जो असफल रही,किन्तु यहाँ जानी वाकर की प्रतिष्ठा धूमिल नहीं हुई।
८३ वर्ष की दीर्घायु में २९ जुलाई २००३ को भारतीय हास्य के चितेरेे जानी वाकर ने अपनी कर्मभूमि को अलविदा कह दिया। सच कहा जाए तो २० वीं सदी के उत्तरार्ध्द में जानी वाकर व महमूद ही भारतीय फिल्मों में हास्य के ध्वजवाहक बने रहे। इन्होंने ही भारतीय सिनेमा को हास्य की नवीन ऊंचाइयां प्रदान की। जानी वाकर को फिल्म ‘मधुमति’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता और फिल्म ‘शिकार’ के लिए श्रेष्ठ हास्य कलाकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
हास्य के इस अमर बन चुके पुरोधा की जयंती पर हम तो यही कहेंगे कि,जानी वाकर की यादों और अभिनय का वह स्वर्णिम युग वर्तमान में भी भारतीय फिल्म प्रेमियों के लिए लगातार मुस्कानें लाता रहे,और हास्य से सभी को सराबोर करता रहे। आइए हम भी अपनी मुस्कानों को मन भर बडा़ लें,और सर्वजनों के बीच बिखेरने का संकल्प लें, इति शुभम…।
#कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।
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