आधी रात बीत चुकी थी
रेलगाड़ी धड़धड़ाती तीव्रगति से दौड़ रही थी
सन्त रामहरे खड़े-खड़े काफी थक चुके
उनके पैर भी जवाब दे चुके थे
परन्तु सीट तो छोडिये
जमीन भी तिलभर खाली नहीं थी
भारतीय रेल के सामान्य डिब्बे का सफर
किसी जंग जीतने से कम नहीं होता
और जंग हिंदू-मुस्लिम एक होकर ही जीत सकते हैं |
मियां गफ्फूर संत रामहरे की परेशानी समझ गये
उन्होंने अपने बेटे अहमद को अपनी गोदी में बिठा लिया
और संत रामहरे जी को बैठने का अनुरोध किया
पहले तो संत जी कुछ सकुचाये पर बाद में बैठ गये
उक्त दृश्य बड़ा ही सुंदर था –
असली भारत की रंग-बिरंगी तस्वीर तो
भारतीय रेल के सामान्य डिब्बे में ही देखने को मिलती है |
स्टेशन पर चढने-उतरने में जो किच-किच होती है
वही किच-किच सफर शुरु होने के बाद
प्यार – मुहब्बत, भाई-चारे में बदल जाती है
लोग अनजाने लोग दिल खोलकर
सुख-दुख की बातें बतिया लेते हैं
सामान्य डिब्बे के सफर में…
#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl
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