रात बहुत हो गई,
चल अब सुबह होने दे…
चलना कहाँ है अभी,
सोच तो लेने दे।
चल देंगे सुबह जल्दी,
जहाँ मंजिल बुला रही होगी,
होगी कोई आवाज़ ऐसी, जो हमें अपनी ओर बुला रही होगी….।
जरूरी तो नहीं ,जहाँ बादल छाए रहें, वहाँ हर बार बारिश ही होगी…..
इंसान हिन्दू हो या मुस्लिम,
आत्मा तो एक जैसी ही होगी….।
सुना है दुनिया में तन्हाई की,
कोई कीमत नहीं होती..
क्यों न खोए रहें हम ,
अपनी ही दुनिया में ,
जहाँ हमें किसी और की
जरूरत भी नहीं होगी…।
#मनीष सैनी
परिचय : राजस्थान के छोटे से गाँव सिकंदरा निवासी मनीष सैनी बचपन से ही कविता लिखने का शौक है,जो आज तक कायम है। ये अभी भी छात्र के तौर पर दिल्ली में रहकर आईएएस की तैयारी कर रहे हैं। इनकी पसंदीदा
चार पंक्ति ये हमेशा ही गुनगुनाते हैं
‘मैं हर रोज हर दिन एक नया सपना देखता हूँ,क्योंकि उन्ही सपनों में से एक सपना मेरे लिये ऐसा होगा,
जो मेरी ज़िन्दगी का आने वाला कल होगा…।’ इनकी रचनाओं में सकारात्मकता के भाव अधिक हैं।
बहुत ही अच्छी कविता है मनीष भाई