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पश्चिम की नकल की भांति हिंदी में भी किताबों की श्रेष्ठ विक्रेता वाली दौड़ बहुत तेज रूप में चल पड़ी है,जिस पर लगाम लगाना मुश्किल ही नहीं,बल्कि नामुमकिन नज़र आता है,क्योंकि इस दौड़ को आयोजित करने वाले,दौड़ के लिए ट्रेक बिछाने वाले ग़ैर साहित्यिक नामी प्रकाशक हैं,जो अपनी व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता के कारण इस दौड़ का आयोजन किसी नकल पर करवा रहे हैं। हाल ही में घोषणा हुई है कि,कृष्णा सोबती को 53 वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाना है। ऐसे माहौल में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना एक साहित्यिक व्यक्तित्व और उसकी कृतियों का सम्मान है,जो समाज,देश,परिवार,व्यक्ति के व्यक्तित्व की एक सामाजिक, मनोवैज्ञानिक,यथार्थ गठन व्यवस्था को उघाड़कर कहीं-न-कहीं ऐसे यथार्थ सत्य को सामने लाती है,जिसे हर कोई महसूस करता है। य जीवन की संवेदनशील स्थितियों को रेखांकित करने के साथ जीवन की कठिन परिस्थितियों को चित्रित करती है,परंतु क्या समाज का वह वर्ग इन कृतियों से प्रभावित है,जो श्रेष्ठ विक्रेता नहीं है??? साहित्य केंद्रों में जो प्रतियां उपलब्ध हो रही हैं,किसी सड़क चौराहे पर नहीं,तो क्या यह मान लिया जाए कि श्रेष्ठ विक्रेता की दुनिया इन साहित्य कृतियों की दुनिया से बहुत ऊपर,लोकप्रिय और सबमें चेतना बोध जगाने वाली दुनिया है???? मेरा मानना है कि,जिस तरह से साहित्यिक कृतियां समाज के भीतर धँसकर सवालों को, समस्याओं को,जिज्ञासाओं को उठाती हैं, वे सब प्रयत्न यह श्रेष्ठ विक्रेता की दुनिया नहीं कर पाती है!!! श्रेष्ठ विक्रेता यानि बेस्ट सेलर की अधिकांश पुस्तकें फिक्शन पर आधारित हैं,जिसमें कल्पना का सशक्तिकरण समक्ष आता है और एक वायवी दुनिया का निर्माण करता है। ऐसी दुनिया,जहां पर सब कुछ घटित हो रहा है लेकिन वह सब कुछ एक कल्पना के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रकाशक ऐसी किताबों को अधिक महत्व दे रहे हैं और उनसे व्यवसायिक लाभ कमाकर पाठकों को गुमराह करने में लगे हुए हैं। जो सामाजिक नब्ज़ साहित्य के व्यक्तित्व को पहचानता है,वह नव श्रेष्ठ विक्रेता की दुनिया का लेखक कभी नहीं पहचान सकता है। श्रेष्ठ विक्रेता की दुनिया का लेखक केवल चमक-दमक का,फेम लेखक है,जिसे समस्याओं,जीवनगत यथार्थ,सच्ची मानवीय संवेदनाओं में कोई दिलचस्पी नहीं,बल्कि वह एक ऐसी मायावी दुनिया का निर्माण अपनी किताबों में करता है जहां पर वह एक ऐसा जाल बुनता है, जिसमें पाठक उलझता है अभिभूत न हो सकता है और वह अपना लाभ साध लेता है। श्रेष्ठ विक्रेता वाली किताबों के पीछे बहुत बड़ा प्रचार,व्यवसायिक लाभ तथा सिफारिश वाला माहौल तैयार किया जाता है,और अधिक से अधिक ऐसे मंच उपलब्ध कराए जाते हैं जहां पर प्रसिद्ध व्यक्तित्व से पुस्तकों का विमोचन कराया जाता है। उसके बारे में विभिन्न प्रकार की व्यवसायिक,ग़ैर व्यवसायिक पत्र-पत्रिकाओं में सिफारिश वाले,पदोन्नति वाले लेख लिखवाए जाते हैं या उनकी समीक्षा इस प्रकार से की जाती है कि, वह कृति बहुत उपयोगी,लाभदायक तथा जीवन के यथार्थ से जुड़ी हुई कृति है जो सामाजिक समस्याओं को उभारकर लाती है। इस प्रकार के प्रयास अवश्य ही
श्रेष्ठ विक्रेताओं के लिए एक कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रयास हैं,जिनसे कभी भी सच्चा पाठक संतुष्ट नहीं हो सकता है। पुस्तकों की दुनिया न केवल काल्पनिक दुनिया को माना जा सकता है और न ही ऐसी पुस्तकों को प्रमुख माना जाए,जिसमें इस प्रकार की वस्तु स्थितियां हमारे समय को प्रस्तुत न कर सकती हैं। श्रेष्ठ विक्रेता की बहुत सारी किताबों के आवरण तथा भीतर परोसे गए शब्दों को पढ़कर साधारण रूप में महसूस किया जा सकता है कि,इनकी किताबें एक विशेष प्रकार के विज्ञापन प्रयोजन के कारण प्रसिद्धि पा रही हैं,जबकि सच्ची और अच्छी साहित्यिक किताबें विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों,प्रसिद्ध पुस्तकालयों और साहित्यिक आगारों पर धूल खाती हुई नज़र आती हैं। अक्सर जब पूछा जाता है कि,इस प्रसिद्ध लेखक अथवा लेखिका की आपने यह प्रसिद्ध पुस्तक-उपन्यास-कहानी-नाटक या निबंध पढ़ा है क्या ??? तो श्रेष्ठ विक्रेता की किताबें पढ़ने वाले लोग हैरानी से पूछते हैं-यह कौन लेखक हैं और इनकी है कौन-सी कृतियां हैं??? तब मुझे भी झुंझलाहट पैदा होती है और फिर श्रेष्ठ विक्रेता की दुनिया को मैं कोसने लगता हूं। यह दो विरुद्ध मार्ग हैं, जिन्हें एकसाथ नहीं साधा जा सकता है। एक साहित्यिक मार्ग और दूसरा श्रेष्ठ विक्रेता की दुनिया का व्यावसायिक की किताब वाला मार्ग। श्रेष्ठ विक्रेता और साहित्य किताबों में काफी अंतर है। यह अंतर मानवीय संवेदना,सामाजिक समस्याओं और जीवनगत आधारों पर आधारित होता है,जिसे जानना,समझना और परखना बेहद ज़रूरी है,इसलिए एक सच्चे पाठक को श्रेष्ठ विक्रेता की किताबों की दुनिया से प्रभावित न होते हुए उन किताबों की तलाश करनी चाहिए,जो हमारे जीवन की सच्चाइयों से जुड़ी हुई हो और साहित्य फ्रेम में रची-बसी हो। तब ही जाकर माना जा सकता है कि, आप किताबों के साथ सच्चा न्याय कर पा रहे हैं और लेखकों को उनका उचित मूल्य प्रदान कर पा रहे हैं।
#डॉ. मोहसिन ख़ान
परिचय : डॉ. मोहसिन ख़ान (लेफ़्टिनेंट) नवाब भरुच(गुजरात)के निवासी हैं। आप १९७५ में जन्मे और मध्यप्रदेश(वर्तमान में महाराष्ट्र)के रतलाम से हैं। आपकी शैक्षणिक योग्यता शोधोपाधि(प्रगतिवादी समीक्षक और डॉ. रामविलास शर्मा) सहित एमफिल(दिनकर का कुरुक्षेत्र और मानवतावाद),एमए(हिन्दी)और बीए है। ‘नेट’ और ‘स्लेट’ जैसी प्रतियोगी परीक्षाएँ उत्तीर्ण करने के साथ ही अध्यापन(अलीबाग,जिला-रायगढ़ में हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं शोध निदेशक और अन्य महाविद्यालयों में भी)का भी अनुभव है। 50 से अधिक शोध-पत्र व आलेख राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। साथ ही ‘देवनागरी विमर्श (उज्जैन),
उपन्यास-‘त्रितय’,ग़ज़ल संग्रह- ‘सैलाब’और प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ और गज़लें भी प्रकाशित हैं। बतौर रचनाकार आप हिन्दी साहित्य सम्मेलन(इलाहाबाद), राजभाषा संघर्ष समिति(नई दिल्ली), भारतीय हिन्दी परिषद(इलाहाबाद) एवं (उ.प्र. मालव नागरी लिपि अनुसंधान केन्द्र(उज्जैन,म.प्र.)आदि से भी जुड़े हुए हैं। कई साहित्यिक कार्यक्रम सफलता से सम्पन्न करा चुके हैं,जिसमें नाट्य रूपान्तरण एवं मंचन के रुप में प्रेमचंद की तीन कहानियों का निर्देशन विशेष है। अन्य गतिविधियों में एनसीसी अधिकारी-पद लेफ्टिनेंट,आल इंडिया परेड कमांड में सम्मानित होना है। इसी सक्रियता के चलते सेना द्वारा प्रशस्तियाँ एवं सम्मान के अलावा कुलाबा गौरव सम्मान,बाबा साहेब आम्बेडकर फैलोशिप दलित साहित्य अकादमी (दिल्ली)से भी सम्मान पाया है। समाजसेवा में अग्रणी डॉ.खान की संप्रति फिलहाल हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं शोध निदेशक तथा एनसीसी अधिकारी (अलीबाग)की है।
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