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भावना से रंग लेकर कल्पना के पृष्ठ पर जो,
कर दिया मन ने निरुपित चित्र,तुमसे मिल रहा है।
कालिमा है रात की ये रेशमी कुन्तल तुम्हारे,
इस तरह बिखरे हवा से मेघ भी शरमा गए हैं…
दो अधर भीगे सुधा से रंग जिनका है गुलाबी,
है हँसी ऐसी जिसे सुन भृंग मद में आ गए हैं॥
चाल भी इतनी सधी है,हिरनियों का मोह ले मन,
दूधिया तन है सुवासित,नव कँवल-सा खिल रहा है।
कर दिया मन ने निरुपित चित्र,तुमसे मिल रहा है॥
दो नयन सारंग जैसे और ग्रीवा है सुराही,
अंग ईश्वर ने तुम्हारे ढाल साँचे में बनाए…
जब हँसो तुम दो भँवर प्यारे कपोलों में उदित हों,
गाल पर है तिल,बुरी नज़रों से जो तुमको बचाए॥
सब भजन अब शोर लगते,बेसुरे हैं वेणु के स्वर,
सुन तुम्हारी मोहिनी आवाज को, दिल हिल रहा है।
कर दिया मन ने निरुपित चित्र,तुमसे मिल रहा है॥
#इन्द्रपाल सिंह
परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।
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