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भूमि फिल्म के निर्देशक ओमंग कुमार
हैं तो इसका समय १३० मिनट है।
कलाकारों में संजय दत्त,अदितिराव हैदरी,शेखर सुमन,शरद केलकर और सिद्धान्त गुप्ता हैं।
कहानी यह है कि,उ.प्र. के आगरा शहर में अरुण सचदेव(संजय दत्त) एक जूता कारोबारी है और अपनी जवान बेटी भूमि(अदिति) के साथ अपनी खुशहाल ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। उनका एक पड़ोसी ताज(शेखर सुमन) है। भूमि और नीरज (सिद्धान्त) एक दूसरे से प्यार करते हैं। पिता-पुत्री का तालमेल और सामंजस्य के साथ आत्मीय लगाव इतना प्रबल है कि, बिना बहस के शादी तय हो जाती है, लेकिन भूमि की खूबसूरती और चंचलता पर एक दरिंदे(विशाल)की बदनज़र रहती है। वह गांव के चचेरे बाहुबली दबंग भाई धौली (शरद केलकर) के साथ मिलकर शादी से ठीक एक दिन पहले भूमि कॊ अगवा करके दुष्कर्म का शिकार बना देते
हैं। इसका पहले तो पिता-पुत्री शोक मनाते हैं, फिर कानून के दरवाजे पर दस्तक देते हैं,लेकिन वहां भी दुष्कर्म पीछा नहीं छोड़ता है। यहाँ कानून व्यवस्थाएं और न्याय धनबाकुरों की गुलामी स्वीकार कर लेती है,तो आम इंसान को जंगल कानून को हाथ में लेना ही पड़ता है।
लम्बा कोर्ट ड्रामा,इंसाफ की गुहार,एक युवती के कौमार्य पर बार-बार उंगली उठना और फिर पिता का इन सबके खिलाफ खड़े होकर कुरुक्षेत्र के मैदान में हथियार उठा लेना इसमें दिखता है। पिता उन दरिंदों को अंजाम तक पहुंचा पाता है या नहीं, इसके लिए फ़िल्म देखना पड़ेगी। इस फिल्म का कमजोर पक्ष यह है कि,कहानी सन्दीप सिंह और पटकथा राज शांडिल्य की है,क्योंकि ‘मॉम’ और ‘मातृ’ जैसी फिल्मों के आने के बाद और पहले भी संजय इसी तरह के विषय की फ़िल्मों में में पिता का यही मिलता जुलता किरदार अदाकर चुके हैं। ऐसे में
सभी दृश्य खटाखट जहन में दौड़ने लगते हैं,तो कहानी में नयापन कुछ नहीं लगा।फ़िल्म देखते वक्त कहानी बांध नहीं पाती और फ़िल्म का दूसरा भाग कमजोर लगने के साथ आसानी से समझ आने के साथ बढ़ता है तो पकड़ नहीं बनती है।
कहानी में कुछ नए घटनाक्रम (ट्विस्ट) जोड़े जा सकते थे। ‘भूमि’ में मजबूत पक्ष में पूरी फिल्म में संजय ने लाजवाब अभिनय दिखाया है, साथ ही तीसरी वापसी को नए रुप के साथ प्रदर्शित करते हुए खुद को अपडेट भी कर लिया। एक पिता के किरदार को उनकी एक्शन छवि के साथ मिलाप कर दिया गया है।
अदिति,शेखर सुमन,शरद केलकर ने भी किरदारों को ईमानदारी से निभाया है।
संगीत-पार्श्वसंगीत इस्माइल दरबार ने दिया है तो गाने सचिन जिगर ने बनाए हैं।
फिल्मांकन उम्दा है,जो अरतूर ज़ुर्रवास्की का है और लोकेशन का तालमेल इसे और उम्दा बनाता है।
इस फ़िल्म की खासियत संजू बाबा है, जिसने अपनी अद्वितीय इच्छाशक्ति को दर्शाते हुए खुद को एक बार फिर साबित किया है। बाबा की एंट्री पर आज भी तालियां-सीटियां बजना संजू को नायक साबित करता है।
बजट-कलेक्शन देखें तो फ़िल्म को २३०० स्क्रीन्स मिले हैं। अनुमानतः४ से ६ करोड़ की शुरुआत के साथ १०-१२ करोड़ का सप्ताहंत मिल सकता है,तथा पहले सप्ताह में १५ करोड़ तक व्यापार कर सकती है।
फ़िल्म का बजट उत्पादन लागत के साथ ३५ करोड़ ₹ है और फ़िल्म के इससे ऊपर कमा लेने का अनुमान लग रहा है। इस फिल्म कॊ 3 सितारे देना सही होगा।
#इदरीस खत्री
परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| इनका परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।
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