अन्ततः 

0 0
Read Time2 Minute, 33 Second
shubha-300x196
हे !  ईश  मुझको  तू  बुला ले।
अंक    में   अपने   सुला   ले॥
क्यों  तमस का नित गर्त देखा।
सच  हुई   कब  हस्त – रेखा?
झूठ  कब   तक  है  मुस्कराना?
क्यों  भ्रमित  जीवन   बिताना?
तोड़कर   भव –  सम्बन्ध  सारे,
चाह      तेरे      पास     आना।
ओ ! परमात्मा  अब  आत्मा ये,
चाहती    खुद    में   मिला   ले॥
हे !  ईश   मुझको  तू  बुला  ले।
अंक में अपने••••••••।
क्या  यहाँ  कुछ  बाकी  रहा है?
कौन     क्या     बाकी    रहेगा?
स्वप्न  मृदु-मधु  मन देखता जो,
वेदना      ही       वह     सहेगा।
ध्वंस     में      निर्माण     कैसा?
प्राप्त   कर   लूँ    निर्वाण  ऐसा।
राह   देखे   अब  प्रेय  की क्यों?
मीत     धोखा     है    भुला  दे।
हे !  ईश   मुझको  तू  बुला  ले॥
अंक में••••••••••।
क्यों  राम – सीता    कृष्ण-राधा।
चिर     वियोगी    साथ   आधा।
शशि-रश्मि-प्रेमी चिर प्रतीक्षित।
मन  चकोरा   क्यों  अशीक्षित ?
दुर्दिन  यही  क्यों   याद  रखना?
स्वाद   दुख  का   मात्र  चखना।
आह !  लीला    कैसी   अनोखी?
तू    मुझे    जी  भर    रुला   ले।
हे !  ईश   मुझको  तू   बुला  ले।
अंक में •••••••।
प्रश्न   हो  हल  यह चाहता  मन,
क्यों  दिया  अभिशप्त   जीवन?
शुष्क  प्यासा   है  गात- सावन,
चाहता     मन – मेघ    पावन।
क्यों  छू न पाया प्रणय-वीथी?
मधुमास  ऋतु  अति निकट थी।
फिर  भी झुलसता  ही  गया क्यों,
पतझड़ी     झोंके     झुला   के।
हे  !  ईश   मुझको  तू  बुला ले॥
अंक में अपने••••••••••••।
अब  थक  गया  मन गीत गाते,
नित   आस   के   विश्वास   के।
पर   निराशा  ही   आ   रही  है,
चहुँओर     मेरे      पास      में।
है  अब  न जीवन-गीत गाना,
उर   भँवर   में   क्यों फँसाना?
हों दुख हवन यह व्यर्थ कहना।
डूबने     दे    या    जला    दे।
हे ! ईश  मुझको  तू बुला ले॥
अंक में अपने••••••••।
इन  पत्थरों   ने   पूज्य   बनकर,
उर  ‘अधर ‘  पर  आज  तनकर।
घात   आशाओं    पर  किया  है,
घाव    सर्जक    को    दिया   है।
हा! मिथ  हुआ  सुंदर  सृजन ये,
शून्य  में   सब    स्वप्न   मन  के।
अब   क्षमा  भी   मैं  दे  न पाऊँ,
नेह     आमंत्रण      भला      दे ।
हे !  ईश    मुझको   तू  बुला  ले॥
अंक में••••••••।
                                                         #शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तिरंगा

Mon Aug 14 , 2017
न पीरों को पूजूं, न देवों को, बस तिरंगे का पुजारी हूँ। भारत की आन-बान-शान है, वर्षों की गुलामी की दास्तान है। खून से सींची वीर शहीदों ने, भारत भूमि की पहचान है। कण-कण में बसा एक ही नाम, तीन रंग के तिरंगे तुझे सलाम। रंग केसरिया त्याग बलिदान वीरता […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।