माफ़ करना, यह समाज बुज़ुर्गों का अपराधी है

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✍🏻 डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

बिल्कुल ठीक पढ़ा कि यह समाज अपराधी है, इसे और स्पष्ट करूँ तो वह प्रत्येक व्यक्ति अपराधी है जो अपनी धरोहरों की असल चिन्ता नहीं करता, साहित्य समाज ज़्यादा अपराधी है, आयोजक अपराधी है, हर वह शख्स अपराधी है जो यह चिन्ता नहीं करता कि अपनी धरोहर किस तरह जीवनयापन कर रही है, अपने बुज़ुर्गों की दवाओं का ख़र्च कितना हो रहा होगा! हमारे बुलाए गए अतिथि विशेषतः जो सेवानिवृत्त अथवा बुज़ुर्ग या कहें वरिष्ठ नागरिक हैं, उनके जीवनयापन की संरक्षित राशि का दोहन कर रहे हैं, वह सबके सब अपराधी हैं, मैं अपराधी हूँ, आप अपराधी हैं, हमारी संस्थाएँ अपराधी हैं, या कहें प्रत्येक आयोजक इसलिए भी अपराधी है क्योंकि वह अच्छा वक्ता, अच्छा अतिथि तो बुलाना अपनी शान समझता है पर वह यह चिन्ता नहीं करता कि अमुक अतिथि आया कैसे होगा या जाएगा कैसे या उसका जीवन कैसे चल रहा है!

अपराध के निर्धारण के पूर्व कुछ आपसी समझ की बात भी हो जाए, जो यह तय करे कि हम कैसे अपराधी हैं! और इस समाज का क्या दोष है, जिसके कारण अपराधी शब्द से सम्बोधन आरम्भ हो रहा है! क्योंकि यह समाज अब चिन्ता नहीं करता बल्कि सबूत पहले माँगता है।
कोई संस्था या व्यक्ति जब कोई आयोजन करता है तो यह सोचता है कि अतिथि अथवा वक्ता कितना प्रबल, वरिष्ठ या ओहदेदार अथवा बौद्धिक सबल है। बात वहीं से शुरु करते हैं।
साहित्यिक आयोजनों में विशेष रिश्ता होने से वहीं की पीड़ा को लिख रहा हूँ पर यही हाल तमाम सारे सामाजिक आयोजनों का भी है। किसी आयोजन की तैयारी करते हैं तो केन्द्र में जब हम निवृत्त अथवा वरिष्ठ व्यक्ति को आयोजन का अतिथि, वक्ता या अध्यक्ष तय करते हैं, हम सोचते हैं कि फलाँ वरिष्ठ साहित्यकार आ जाएगा तो हमारे आयोजन में चार चांद लग जाएँगे, अमुक व्यक्ति हमारा आतिथ्य स्वीकार कर लेंगे तो मीडिया कवरेज अच्छा हो जाएगा, उनके वक्तव्य से सभा सम्मानित होगी या ऐसे ही सोच के तमाम सारे घोड़े इस बात की चिन्ता करते हैं कि उनके आने से गौरव में बढ़ोतरी होगी पर क्या कोई यह चिंता भी करता है कि वह जिस रिक्शा, टेक्सी या बस से आएगा, उसकी राशि कहाँ से लाएगा? आय का स्त्रोत क्या है, जो बुढ़ापे में वह ख़र्च करके आपके आयोजन की शोभा बढ़ाने के लिए आएगा?
निश्चित तौर पर समाज निष्ठुर होता जा रहा है, क्योंकि समाज अब केवल अपनी चिंता तो करता है पर सामने वाले की चिन्ता करना छोड़ चुका। एक सेवा निवृत्त अथवा वृद्ध व्यक्ति या कहें प्रत्येक वह व्यक्ति जो आपके आयोजन की शान बन रहा है, वह आपके आयोजन में आने के लिए ख़र्च कर रहा है पर उसके एवज में उसे क्या मिल रहा है, जो अपनी शाब्दिक जुगाली करने आपके आयोजन में आए। शासकीय सेवा से सेवानिवृत्ति के उपरांत आयोजकों की नज़र में उसे पेंशन मिलती है, पर क्या कभी सोचा भी है कि उस पेंशन में उसकी दवा, उपचार का ख़र्च कितना है! मान लिया वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है, तब मानसिक अथवा शारीरिक ख़ुराक के लिए उसे क्या ख़र्च करना पड़ रहा है! या फिर घर का प्रबन्धन किस तरह चल रहा है! क्या यह चिंता उस आयोजक ने कभी की? अतिथि या वक्ता बनाया, उसके एवज में एक शॉल, एक मोती अथवा फूल की माला, या गुलदस्ता, उसके बाद प्रतीक चिह्न या किताब पर क्या उसके मार्ग व्यय के बारे में सोचा भी?
इसीलिए लिखा है कि हम सब अपराधी हैं जो यह नहीं सोचते। जिस रिक्शा, टैक्सी या गाड़ी से वह वरिष्ठ अतिथि या वक्ता आएँगे वह ईंधन से चलते हैं और ईंधन के लिए रुपया ख़र्च करना पड़ता है। हम जैसे कुछ आयोजक अतिथियों या वक्ताओं को शहर के बाहर से बुलाते हैं तो अधिकतम हवाई जहाज या रेलगाड़ी या बस के टिकट का भुगतान कर देते हैं। पर हम भी यह नहीं सोचते है कि अमुक व्यक्ति हवाईअड्डे, स्टेशन, बस अड्डे तक पहुंचेगा कैसे! बहुत गिनती के लोग हैं या कहें नगण्य जैसे ही जो मार्ग व्यय की चिंता करते हैं, शेष तो टिकट तक अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर कर्त्तव्यों से इति श्री कर लेते हैं।

हमने कभी नहीं सोचा कि लकड़ी का स्मृति चिह्न (मेमेंटो) या वह शॉल या माला या फूल नहीं भी देंगे तो चल जाएगा पर मार्ग व्यय नहीं दिया तो उनकी गाड़ी कैसे चलेगी! जो वरिष्ठजन वाक़ई आर्थिक रूप से बहुत सबल है, वह आपकी संस्था या आयोजन समिति को आपके द्वारा प्रदत्त मानदेय या मार्गव्यय पुनः आप ही को या ज़रूरतमंद को भेंट/उपहार भी दे सकते हैं पर उन मुट्ठीभर सबलजनों के चलते आप पूरे वृद्धजनों को एक साथ नहीं आँक सकते।
आयोजक यह भी कहते मिल जाएँगे कि हम कौन–सा व्यापार कर रहे हैं या कमाई कर रहे हैं?उन्हें मेरा यह कहना है कि क्या आपके आयोजन में लगने वाला बैनर, प्रतीक चिह्न या किताबें या अन्य सामग्री निःशुल्क आ रही है? नहीं न, तो फिर मार्ग व्यय को भी उन्हीं अनिवार्य ख़र्च में क्यों नहीं जोड़ते? मान लिया आप कोई व्यापार नहीं कर रहे किन्तु यदि आप समाज की चिंता भी कर रहे हैं तो पहले उस व्यक्ति से ही चिन्ता की शुरुआत कीजिए, जिस वरिष्ठ नागरिक को आप अतिथि या वक्ता के रूप में बुलाना चाह रहे हैं। वैसे तो यह कार्य हर उम्र के वक्ता या अतिथि के लिए होना चाहिए, सक्षमता है, सबलता है तो इसे अनिवार्य ख़र्च में शामिल कीजिए पर आरम्भ वरिष्ठ नागरिकों के लिए तो कर ही सकते हैं।
एक छोटी–सी पेंशन या जमा पूँजी को आप भी आपके लिए ख़र्च करवा कर अपराध तो कर रहे हैं, ऐसा अपराध जो दिखता नहीं है पर उस अपराध का खामियाज़ा पूरा समाज भुगतान करेगा क्योंकि हम अपनी बौद्धिक सम्पदा को क्षणे-क्षणे तिल-तिल करते समाप्त होते देखेंगे। वह वक्ता या अतिथि कितना अध्ययन करते होंगे जो बहुत अच्छा बोलते हैं, उसके लिए उन्हें मानसिक ख़ुराक़ भी लगती है, जो किताबें, इंटरनेट इत्यादि का भी ख़र्च लगता है, उसकी व्यवस्था वह कहाँ से कैसे करते हैं, यह तो वही जाने।


आप यह भी कह सकते हैं कि हमारा इतना बजट नहीं होता कि हम यह दे सकें तो आप सच में आयोजन मत कीजिए, कम से कम किसी वरिष्ठजन का आने-जाने में होने वाला ख़र्च भी बच जाएगा तो उनकी जमा पूँजी पर आप भार बनने के अपराधी नहीं रहोगे। किसी डॉक्टर ने आपको बंदूक की नोक पर रखकर नहीं कहा कि आप आयोजन करो, या ऐसे आयोजन करने से तो न करना बेहतर है जो आपको बोझ बना रहा है। आप भले वह प्रतीक चिह्न, शॉल या अन्य सामग्री मत दीजिए पर उन्हें मार्गव्यय देना मत भूलिए। सकारात्मक सोचें तो मान लीजिए आपने शहर के कोई वरिष्ठजन आमंत्रित किए और उदाहरण के लिए 500 या 1000 रुपए का मानदेय या मार्गव्यय दिया तो यक़ीन जानना आपने उनके मासिक ख़र्च से उतनी राशि का बोझ कम करके भी उनका मान बढ़ाया है। अब तक यह अपराध मैं और मातृभाषा उन्नयन संस्थान भी लगातार कर रहे थे किन्तु अब जब जागे तब सवेरा उसी तर्ज़ पर संकल्प लेते हैं कि चाहे शहर के हों अथवा शहर के बाहर से कोई भी अतिथि संस्थान के आयोजन में आमंत्रित किए जाएँगे, उन्हें मानदेय या मार्गव्यय प्रदान करने की आदत बनाई जाएगी। जिस तरह मातृभाषा उन्नयन संस्थान के द्वारा आयोजित किसी कवि सम्मेलन में बिना मानदेय के कोई कवि आमंत्रित नहीं किया जाता, उसी तर्ज़ पर हम किसी वृद्धजन वक्ता या अतिथि को बिना मार्गव्यय दिए आमंत्रित नहीं करेंगे। सार्वजनिक रूप से यह संकल्प लेते हैं कि हमारा नाम हिन्दी या साहित्य के शोषकों में दर्ज न हो इसीलिए हम अपनी धरोहरों की चिन्ता करेंगे।
वैसे भी इस समाज ने दवा के अभाव में निराला को खोते देखा है, उसके बाद भी यह समाज नहीं जागा, वह वृद्धजन या सेवा निवृत्त सज्जन कभी आपसे अपना दुःख साझा नहीं करेंगे पर आपको उनकी चिन्ता करनी होगी। अन्यथा अपने दुर्भाग्य का यह अपराध समय अवश्य लिखेगा। आप यह मानदेय अथवा मार्ग व्यय देकर कोई एहसान भी नहीं कर रहे क्योंकि आपकी आवश्यकता है, आप आमंत्रित करते हैं, कोई योग्यता होगी तभी तो आप उन्हें अपने आयोजन की शोभा बढ़ाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं अन्यथा आप क्यों उनका चुनाव करते! जब आपने चुना है तो आप तय कीजिए कि उनकी जेब पर आपकी भावनाओं की आरी न चले। सभी का साथ चाहिए, समर्थन चाहिए कि जब भी आप अपने किसी आयोजनों में किसी वृद्धजन, सेवा निवृत्तजनों को आतिथ्य के लिए आमंत्रित करेंगे तो अवश्य करके उनके आने-जाने के व्यय की भी चिंता करेंगे। इस छोटे से प्रयास के बड़े लाभ होंगे वरना झूठी शान के चक्कर में समाज के अपराधियों की श्रेणी में आप भी शामिल हो रहे हो। आप चोरी, डाका तो नहीं डाल रहे पर वृद्धजनों की जेब पर, उनकी जमा पूँजी पर, या कहें सीमित पेंशन पर आरी तो चला ही रहे हो।

#डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान
इंदौर, मध्यप्रदेश,
सम्पर्क- 09893877455
व्हाट्सएप्प- 9406653005
www.arpanjain.com

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।