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ज्ञान मिला घनघोर मिला,
बोलन लागे सब अंग्रेजी बोल..
अंग्रेजो की ‘अंगेजी’ के देखो पीछे पड़ गए भारत के सिर-मौर
मातृ भाषा छोड़न लागे जब से …
सुन लो इसके परिणाम ,
धीरे-धीरे विदेशी तर्ज पर जा रहा है,
मेरा भारत महान।
संस्कृति सभ्यता सब भूल रहे,
नहीं किसी को ज्ञान..
कौन छोटा-कौन बड़ा यहां नहीं
करता कोई ध्यान।
बेटे अब माँ-बाप को पहुंचा रहे
आश्रम अनाथ,
बहनें लगती है घर में जैसे कोई पहाड़
हो महान।
लड़कियां लज्जा छोड़ रही
बन गई ‘जेंटलमैन’,
कपड़े छोटे कर लिए विदेशी फैशन
हो गए मैन।
बीबी राह देख रही पति की
बज गई रात की दस,
पति दूसरी नार संग बारों में
बैठा है चंग।
सब उल्टा-पुल्टा हो रहा,
सुन लो जरा ध्यान लगाए..
हिन्दी अपनी माता है इसको
न भूलो भाई।
राम की रामायण,कृष्ण की गीता,
शौर्य,संयम,सभ्यता और ज्ञान का
यहाँ अखंड भंडार है,
उठो और बोलो जरा,
‘हिन्दी’ से ही आज मेरा
भारत महान है॥
#सुनील विश्वकर्मा
परिचय : सुनील विश्वकर्मा मध्यप्रदेश के छोटे गांव महुआखेड़ा (जिला गुना) के निवासी हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव एवं बाद की इंदौर से (स्नातकोत्तर)प्राप्त की है। आप लिखने का शौक रखते हैं।वर्तमान में इंदौर में प्राइवेट नौकरी में कार्यरत हैं।
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