जब से भावनाओं ने शब्द धारण किए,
तब से अंतस तल में शुभ हेतु
गूँजती रही जो प्रार्थनाएँ
वो अब भी हैं,
मेरे भीतर के अंधेरे-उजाले में
सधती,मंत्र-सी होती।
जिसमें धीमे-धीमे समय के साथ
जुड़ते रहे कुछ नाम,
जो ज़ेहन में सगों की तरह
बेहद घनिष्ठता,अभिन्नता और आस्था से हुए।
उसी कड़ी में तुम्हारा होना हुआ,
भीतरतम वृत्त के केन्द्र की तरफ
बहना तुम्हारे अस्तित्व का
जैसे घंटियों का स्वर फैलता है
मानस के देवताओं की ओर।
जाने-अनजाने तब से ही
तुम्हारी प्रार्थना में जुड़ी हथेलियाँ,
मूंदी आँखें,बुदबुदाते होंठों के मध्य
स्वयं को ढूँढ़ता रहा,
मिलाता रहा प्रार्थनाएँ हमारी,
तब नहीं देख पाया,भीतर प्रार्थनाएँ उतरते
मैं प्रार्थना पूर्णतया नहीं हुआ..
हाँ,फैला जरूर,अगरबत्ती की दिशा-सा
संभवतः,उन क्षणों में महका हुआ
फिर भी महक दिशा-सा
अभिन्न न हो सके,मैं और प्रार्थना।
क्षणों के अंतराल में,
बाहर वायु-सा,भीतर साँस-सी
तुम रही,तुम हो,
मगर इसी मौलिक आवृत्ति से
जाना हूँ,एक तरीका
जानने का स्वयं को
देखा,
‘मुझको` तुम होते
‘तुमको` मैं होते
और प्रार्थनाओं को उतरते।
अब,
मुझ और प्रार्थना के अंतराल में
सेतु-सी तुम,
उतरती हैं प्रार्थनाएँ
मेरी पवित्रता के पायदान से
तुमसे हो-होकर,
हाँ,मेरी प्रार्थनाओं में हो तुम।।
#सुजश कुमार शर्मा
परिचय : सुजश कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अनुवादक(राजभाषा विभाग-महाप्रबंधक कार्यालय,दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे) के रूप में कार्यरत हैं। जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)में आपका रहना है।आपका जन्म १९७९ में हुआ है।आपकी शिक्षा एएमआईई-(मेकेनिकल इंजीनियरिंग) और एमए(हिन्दी सहित अंग्रेजी और दर्शनशास्त्र)है। सम्मान के रूप में आपको काव्य संग्रह ‘कुछ के कण’ के लिए भारत सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा ‘मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार’ के साथ ही उपन्यास ‘प्रार्थनाओं के कुछ क्षणगुच्छ’ के लिए रेल मंत्रालय द्वारा ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ और कविता ‘तुम आई हो !’ के लिए रायपुर से भी सम्मानितकिया गया है।