मेरी प्रार्थनाओं में हो तुम..

0 0
Read Time2 Minute, 59 Second

cropped-cropped-finaltry002-1.png

जब से भावनाओं ने शब्द धारण किए,
तब से अंतस तल में शुभ हेतु
गूँजती रही जो प्रार्थनाएँ
वो अब भी हैं,
मेरे भीतर के अंधेरे-उजाले में
सधती,मंत्र-सी होती।

जिसमें धीमे-धीमे समय के साथ
जुड़ते रहे कुछ नाम,
जो ज़ेहन में सगों की तरह
बेहद घनिष्ठता,अभिन्नता और आस्था से हुए।

उसी कड़ी में तुम्हारा होना हुआ,
भीतरतम वृत्त के केन्द्र की तरफ
बहना तुम्हारे अस्तित्व का
जैसे घंटियों का स्वर फैलता है
मानस के देवताओं की ओर।

जाने-अनजाने तब से ही
तुम्हारी प्रार्थना में जुड़ी हथेलियाँ,
मूंदी आँखें,बुदबुदाते होंठों के मध्य
स्वयं को ढूँढ़ता रहा,
मिलाता रहा प्रार्थनाएँ हमारी,
तब नहीं देख पाया,भीतर प्रार्थनाएँ उतरते
मैं प्रार्थना पूर्णतया नहीं हुआ..
हाँ,फैला जरूर,अगरबत्ती की दिशा-सा
संभवतः,उन क्षणों में महका हुआ
फिर भी महक दिशा-सा
अभिन्न न हो सके,मैं और प्रार्थना।

क्षणों के अंतराल में,
बाहर वायु-सा,भीतर साँस-सी
तुम रही,तुम हो,
मगर इसी मौलिक आवृत्ति से
जाना हूँ,एक तरीका
जानने का स्वयं को
देखा,
‘मुझको` तुम होते
‘तुमको` मैं होते
और प्रार्थनाओं को उतरते।

अब,
मुझ और प्रार्थना के अंतराल में
सेतु-सी तुम,
उतरती हैं प्रार्थनाएँ
मेरी पवित्रता के पायदान से
तुमसे हो-होकर,

हाँ,मेरी प्रार्थनाओं में हो तुम।।

#सुजश कुमार शर्मा

परिचय : सुजश कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में अनुवादक(राजभाषा विभाग-महाप्रबंधक कार्यालय,दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे) के रूप में कार्यरत हैं। जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़)में आपका रहना है।आपका जन्म १९७९ में हुआ है।आपकी शिक्षा एएमआईई-(मेकेनिकल इंजीनियरिंग) और एमए(हिन्दी सहित अंग्रेजी और दर्शनशास्त्र)है। सम्मान के रूप में आपको काव्य संग्रह ‘कुछ के कण’ के लिए भारत सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा ‘मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार’ के साथ ही उपन्यास ‘प्रार्थनाओं के कुछ क्षणगुच्छ’ के लिए रेल मंत्रालय द्वारा ‘प्रेमचंद पुरस्कार’ और कविता ‘तुम आई हो !’ के लिए रायपुर से भी सम्मानितकिया गया है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

तन्हा जीवन

Fri Jun 23 , 2017
  यह जीवन बड़ा अलबेला है,अपनों का यहाँ झमेला हैl यहाँ नित काफिले सजते हैं,आदमी फिर भी अकेला हैll इस धरती पर जब तू आया,देखा तन्हा तू रोया हैl भाँति-भाँति के रिश्ते बना,अजब-सा खेल खेला हैll यह जीवन बड़ा………..l   जिसने भी तुझको जन्म दिया,पाल-पोसकर बड़ा कियाl जब बुढ़ापा आया […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।