कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यासः सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यैः सप्तभिः श्लोकशतैरु पनिबन्ध। गीता में १८ अध्याय और 700 पठनीय एवं अनुकरणीय श्लोक हैं।
कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’ ने श्रीमद्भगवदगीता के दूसरे अध्याय ‘सांख्ययोग’ का ‘कृष्णार्जुन भावधारा’ नाम से मनोहारी भावानुवाद किया है। महान योद्धा अर्जुन जब रणक्षेत्र में परम पूजनीय स्वजन को देखते हैं तब युद्ध करने से साफ-साफ इंकार कर देते हैं। इस विषम परिस्थिति में उपदेशक श्रीकृष्ण समझाते हैं-
हे अर्जुन !
क्यों बैठे हो डरकर ?
मोह-माया में फँसकर,
कौन है तेरा अपना,कौन है पराया ?
सबको एक दिन जाना है,जो भी यहाँ आया,
तेरे उत्सुक नयनों पर,अज्ञान का पर्दा छाया।
आत्मा की विशेषता बताते हुए भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
इस श्लोक का युवाकवि ‘सावन’ ने अपनी सहज एवं सरल शैली भावानुवाद किया है-
न कटारी से कटे,न जले आग से।
न जल से भींगे,न सूखे त्याग से ll
मोह माया में फंसे हुए अर्जुन को समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
जो ‘सोच्य’ नहीं है उसे सोचते हो क्यों,
ज्ञानी हो,अज्ञानता को सींचते हो क्योंl
श्रीमद्भागवतगीता का यह श्लोक बहुत ही लोकप्रिय है-
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥
5 अगस्त 1993 को ग्राम- अमवा बाजार पोस्ट – रामकोला जिला- कुशीनगर उत्तर प्रदेश में जन्मे युवा कवि ‘सावन’ ने उपर्युक्त श्लोक का कुछ इस तरह से मनोहारी अनुवाद किया है-
स्वर्ग का दरवाजा,खोलने तू आजा।
या सांसारिक सुख को,तौलने तू आजा ll
बिनु प्रयत्न खुल चुका है,स्वर्ग का दरवाजा।
दु:ख-दरिया को त्यागकर,सुख-सागर में समा जाll
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें हमेशा अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए न कि फल पर-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
इस श्लोक का कवि ‘सावन’ ने बहुत ही मर्मस्पर्शी शब्दों में अनुवाद किया है-
कर्म करो कर्म लेकिन कर्म हो निष्काम।
धर्म,शील,सद्कर्म से मिलेगा मुक्ति-धामll
मनसा,वाचा,कर्मणा कर्म का हो ध्यान।
‘सावन’ सच्चा कर्मयोगी जग में पूज्य महानll
सदा करो सद्कर्म,मत करो कर्म का त्याग।
ज्यों करोगे फल की इच्छा,लग जाएंगे दागll
केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश में प्रवक्ता पद पर सेवा प्रदान कर रहे कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’ ने साधु, वैरागी और मुनि की विशेषताएं बताते हुए लिखा है–
साधु सदा साधना करे,बैरागी करे न क्रोध।
मुनि मनावे मन को,तपस्वी सहे प्रतिशोधll
विषयों के विष से,बच जाने वाला प्राणी।
मोक्ष का अधिकारी है और है प्रज्ञा-ज्ञानीll
श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि न ही हमें विषयों के जाल में फंसना चाहिए और न ही क्रोधाग्नि में जलना चाहिए–
विषय से आसक्ति बढ़े,बढ़े कामना-क्रोध।
क्रोध से कुबुद्धि बढ़े,राग,द्वेष,प्रतिशोधll
बुद्धि नहीं तो भाव नहीं,भाव नहीं तो दु:ख।
दु:ख में शान्ति क्रान्ति करे,मिले न मुक्ति-सुखll
संसार-सागर,विषय-जल में,तैरे बुद्धि-नौका।
मन-पवन में फँसी कुबुद्धि,डूबी तो ‘सावन’ चौंकाll
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए बताते हैं कि हमें सांसारिक वस्तुओं का भोग तो करना चाहिए लेकिन भूल कर भी भोगी नहीं बनना चाहिए-
करो भोग का भोग,लेकिन बनो कभी ना भोगी।
घटो,न चढ़ो चोटी,ज्यों सागर,मुनि,योगी ll
सांख्ययोग के 72 श्लोकों का कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’ ने लगभग 150 पंक्तियों की लंबी कविता के रूप में भावानुवाद किया है जिसे आप गूगल पर भी ‘कृष्णार्जुन भावधारा’ नाम से पढ़ सकते हैं।
अंत में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मोह माया से मुक्त होकर परमात्मा(श्री कृष्ण ) में ध्यान लगाने एवं निष्काम कर्म से ही परमानंद की प्राप्ति संभव है-
हे पार्थ ! स्वार्थ,मोह,माया मिटाकर।
जीव परम सुख पाता,विधाता में समाकरll
#सुनील चौरसिया’सावन’