कविता- क्या होता सिंदूर

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एक चुटकी सिंदूर
उड़ा
दुश्मन चकनाचूर,
पीछे हटने को हुआ
कैसे वो मजबूर!
किसने नाम है पाक
दिया?
काम सभी नापाक,
दूर नहीं है अब दिन
वो,
पूरा होगा ख़ाक।
फैले हुए हैं पाक में
आतंकी अड्डे,
ख़ुद ही क़ब्रों में जाने
खोद रहे गड्ढे।
दुश्मन के मुँह पर
आया
मोदी जी का नाम,
चर्चा की सेनाओं से
कर दिया काम तमाम।
क्या समझें? वे क्या जानें?
क्या होता सिंदूर?
अपनी सेना ने उन्हें
बना दिया तंदूर ।
एक राफेल ने उड़कर के
कैसी धूम मचाई!
जिधर भी देखो वहाँ कहीं
दिखती सिर्फ़ तबाही।
अकड़ तो फिर भी
गई नहीं
माँग रहा है भीख,
इतनी ग़लती पर भी
सीखी
कभी न कोई सीख।
हमें कराची दिख रहा
और रावलपिंडी,
हाथों से ही टूटती
खेतों में भिंडी।
पानी चिनाब का
कहता
उधर बह रही सिंध,
रोक दिया तो हो
जाएगा
तुझे मोतियाबिंद।
ख़ुद भी रह ले चैन
से
दूजों को रहने दे,
रक्त सभी का लाल
है
व्यर्थ मत बहने दे।
पहले भी तू पिट
चुका
फिर भी न माने हार,
फिर से खाने आ
गया
अबकी तगड़ी मार।
ख़ूब पराक्रम
दिखलाते
भारत के सब वीर,
सही निशाने पर
लगते
उनके सारे तीर।

#प्रदीप नवीन

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