ध्यान का पुंज है
ज्ञान का कुंज है
शब्दभावों की अठखेली है
अंत:प्रेरणा से बह निकली है
कविता मेरी अंतरंग सखी है
कि जगा देती है कभी भी
हाथ पकड़ कर उठा देती है
कलम थमा जता देती है
कि उसे भावों की दुशाला ओढ़
वक्त के शिलालेख पर सजना है।
चलना है उन सभी रास्ते पर
जो आदम को मानवीय
गहनों से अलंकृत करते हैं।
हृदयों में संवेदनाओं
की उजास भरते हैं।
उमगती यह नदी यूँ
अचानक उतरती है
रंगों की नूतन झालर बुनती है
उसे तपना है, निखरना है
सूर्य सम कांँतिवान बनना है
कि आखरों से टपकेगी रोशनी
निर्मल कर देगी मन के
अंधकूपों को
भर देगी उदासी की खाई
जन्म देगी नयी जिंदगी को।
अनुपमा अनुश्री,
भोपाल
-साहित्यकार , कवयित्री, चिंतक रेडियो-टीवी एंकर ,सिंगर, समाजसेवी