कविता- गाथा ‘सिद्धार्थ से बुद्ध तक की’

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कपिलवस्तु के लुम्बिनी वन में
शाक्यकुल के राज्यवंश में
शुद्धोधन-महामाया के घर
इक महापुरुष अवतारे थे
तेजस्वी इस ज्योतिपुंज से
एशियाई क्षेत्रों में उजास हुआ
प्रेम शांति का संचार हुआ…

राजा शुद्धोधन-मायादेवी ने
पाया सुदर्शन इक राजकुमार
सिद्धार्थ उदास ही रहता था
देख बुढ़ापा, रोग, मृत्यु को
राजमहल के वैभव सारे
राजकुंवर को रास न आए
राजऋषि का आविर्भाव हुआ…

यशोधरा मनोरम रानी पाई
राहुल चंदा दो प्रिय संताने
राजदरबार के सुख–साधन
सिद्धार्थ को बांध नहीं पाए
दुःख का कारण इच्छाएँ हैं
इस सत्य को सिद्ध करे कैसे
त्याग दिया घर और परिवार…

तीर्थस्थलों का किया भ्रमण
धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन
समाधान कोई मिल न पाया
सीधे जा पहुँचे वे गया धाम
बोधिवृक्ष की छाया तले
मिला तपस्वी को संज्ञान
स्वयं में दीपक का आभास हुआ…

वेद-पुराण की किंवदंतियाँ
कहती विष्णु का नौवां अवतार
स्वयं को मानव ही माना
पद ईश्वर का नकार दिया
रक्षक नहीं शिक्षक बन कर
दूर रहे सदा कर्मकांडों से
मुक्तिमार्ग सहज ही दिखा दिया…

अस्तित्वों का अंत मान कर
संस्थापक बने बौद्धधर्म के
प्रेम, शांति, समभाव, ध्यान से
तथागत,गौतमबुद्ध कहलाए
श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड
कंबोडिया, भूटान आदि में
बौद्धधर्म का श्रीगणेश हुआ…

#सरला मेहता
इंदौर

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