परिचर्चा संयोजक-
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
देश ही नहीं अपितु विश्वभर में इस समय सोशल मीडिया बहुत आक्रामक शैली से कार्यरत है। कहते हैं यह घोड़ा बेलगाम होता जा रहा है, युवाओं में सोशल मीडिया आवश्यकता से कहीं अधिक लत बन चुका है। ऐसे दौर में यदि पीढ़ी को इस लत से न बचाया गया तो निश्चित तौर पर हम अपने अल्हड़ वर्तमान को गर्त में जाता देखेंगे।
इस कड़ी में मातृभाषा डॉट कॉम द्वारा सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग व समाज में सकारात्मक भूमिका विषय पर आयोजित परिचर्चा में विद्वतजनों ने अपने विचार रखे।
भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली में सहायक निदेशक (राजभाषा) अंकुर विजयवर्गीय जी के अनुसार ‘सोशल मीडिया के ज़रिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं, जिनसे लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम हुआ है और हमारे देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता और समाजवादी गुणों में अभिवृद्धि हुई है।’
उनके अनुसार ‘आज दुनिया भर की ज्ञान-विज्ञान की किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। सोशल मीडिया द्वारा हम अपने प्राचीनतम इतिहास की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। हमारे वेद, पुराण, श्रुतियाँ, उपनिषद्, महाकाव्य और जितने भी ग्रंथ हैं, विभिन्न विषयों पर ऋषि मुनियों ने जिनकी रचनाएँ की हैं, उन सब की जानकारी हमें आज केवल एक क्लिक की दूरी पर प्राप्त हो जाती है।
हिन्दी साहित्य में लेखन की विभिन्न विधाओं में आज नया लेखक मंच स्थापित हो चुका है, जो सोशल मीडिया पर ही अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर रहा है। आप कह सकते हैं कि नई तकनीक के ज़रिए साहित्य में लोकतंत्र बन रहा है। फेसबुक, ट्विटर पर लिखने वाले लेखक किसी से पूछ कर, सहमति या स्वीकृति लेकर नहीं लिख रहे हैं। ये नए लेखक प्रयोग कर रहे हैं। यही साहित्य का लोकतंत्र है।
सोशल मीडिया पर धार्मिक साहित्य के माध्यम से हम भारतीय संस्कृति का भी प्रचार प्रसार कर सकते हैं। साहित्य का जितना प्रचार-प्रसार होगा, जितनी उपलब्धता होगी, उसका उतना ही विस्तार होगा और जब साहित्य का विस्तार होगा, तो यह साहित्य के साथ–साथ समाज के लिए भी कल्याणकारी होगा। सोशल मीडिया एक अदृश्य भूमिका निभाकर समाज में सामाजिक चेतना, नैतिकता एवं धार्मिक मूल्य तथा मानवीय चरित्र का निर्माण कर सकता है।’
शोध पत्रिका समागम, भोपाल के संपादक मनोज कुमार जी कहते हैं कि ‘संचार के साधन से सूचना पहुंचा कर लोगों की मदद करना है। सोशल मीडिया का भी इसी तरह उपयोग किया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। पॉज़िटिव सूचना को सही ढंग से लोगों तक पहुंचाने की ज़रूरत है ताकि समाज की मदद की जा सके। कई बार समाज में आपातकालीन स्थिति पैदा हो जाती है, ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की मदद की जा सकती है लेकिन अनुभव यह कहता है कि सूचना को अनेक बार ग़लत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति बन जाती है और सहयोग के बजाय सोशल मीडिया आफ़त लगने लगता है।
सोशल मीडिया प्रभावी होने के साथ–साथ उसकी कनेक्टिविटी दूर तक होती है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने घरों में बच्चों को सोशल मीडिया की उपयोगिता बता कर उसे हैंडल करना सिखाएँ। इससे लाभ यह होगा कि यही बच्चे अपने साथियों को भी सोशल मीडिया के बारे में एजुकेट करेंगे। ऐसा करने से सोशल मीडिया का उपयोग करने वाली एक नई पीढ़ी तैयार होगी। इस तरह के छोटे–छोटे प्रयास कर सोशल मीडिया को समाज हित में अधिक उपयोगी बना सकते हैं।’