आज़ादी के पन्नों पर,
जलियांवाला बाग।
आज भी ऑंखें भीगती,
मन हो जाता है उदास।
रोलेट एक्ट विरोध था,
पर शांतिमय स्वरूप।
लेकिन जनरल डायर तो,
बन गया था यम का दूत।
करवाया नरसंहार वो,
फैला था ख़ून ही ख़ून।
निहत्थे मारे गए,
बस दिखा था ख़ून ही ख़ून।
हृदय विदीर्ण वह दृश्य था,
मन भी रोता आज।
कैसे डायर मौत को,
बांटा था सरे आम।
रोया सारा भारत था,
फिर हुआ तेज़ विरोध।
उस काली करतूत से,
बढ़ा जन-जन में आक्रोश।
आज़ादी का भाव फिर,
दिखा था चारों ओर।
हर छोर फिर एक हुए,
दिखा अपनेपन का ज़ोर।
आखिर एक दिन आया वह,
जब देश हुआ आज़ाद।
पर आज भी बैसाखी पर,
मन भिगोता जलियां बाग।
सीता गुप्ता,
दुर्ग, छत्तीसगढ़