आओ-आओ एक बात बतायें,
भारत का इतिहास सुनायें,
कहतीं थीं दादी और नानी,
उनकी कहानी मेरी ज़ुबानी।।
भारत के वीर सपूतों ने,
देखो कितना त्याग किया,
आज़ादी की खातिर अपने,
प्राणों का बलिदान दिया।।
ब्रिटिश शासन ने तो देखो,
कितना अत्याचार किया,
क्या बूढ़े, क्या महिला, बच्चे,
सब पर ही प्रहार किया।।
देखो तो उन ज़ालिमों ने,
कैसा घृणित कार्य किया,
13 अप्रैल 1919 को,
क्रूरता की हद को पार किया।।
भारत के इतिहास में देखो,
काला दिन ये बना दिया,
निहत्थे, निर्दोषों को,
मौत के घाट उतार दिया।।
जलियांवाला बाग में देखो,
कुछ जनसमूह एकत्र हुआ,
ब्रिटिश सरकार ने उन पर,
गोलियों को चलवा दिया।।
जनरल डायर ने तो देखो,
कैसा है फ़रमान दिया,
निहत्थी उस जनता को,
मौत की नींद सुला दिया।।
महिला, पुरुष और बच्चे,
सब पर क्रूर प्रहार किया,
लगभग 1000 लोगों का,
कत्ले आम करवा दिया।।
इस नरसंहार से देखो,
देश सन्न रह गया,
ब्रिटिश शासन के प्रति,
जन में आक्रोश भर गया।।
रविंद्र नाथ टैगोर ने भी,
अपना आक्रोश जता दिया,
अपनी नाइटहुड उपाधि का,
देखो परित्याग कर दिया।।
गांधीजी ने भी इसको,
निर्लज्ज कांड करार दिया,
18 अप्रैल 1919 को,
सत्याग्रह समाप्त कर दिया।।
गांधीजी ने भी फिर देखो,
क्षुब्ध होकर यह कहा,
सत्याग्रह में हिंसा का,
कोई स्थान नहीं होता।।
पूरे विश्व ने इस घटना को,
शर्मनाक करार दिया,
ब्रिटिश शासन के अंत का,
यहीं से आरंभ हुआ।।
साधना छिरोल्या
दमोह(म. प्र.)