तू मेरी सुबह बनके आ तू मेरी शाम बनके आ
दूर आसमाँ में बैठे उस खुदा का पैग़ाम बनके आ
मेरी तिश्नगी का कोई हासिल है भी या नहीं
गर है तो तू मेरी कोशिशों का अंजाम बनके आ
तुझे चाहा जब से कोई और काम नहीं मुझे
जो ज़माने को भी दिखे तू वही काम बनके आ
मुफ़लिसों को भी हो थोड़ी मोहब्बत नसीब
हो सके जो पेशतर मुझे तू वो ही दाम बनके आ
मुझे एक तेरे नाम के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता
दुनिया के लिए तू ही अब मेरा भी नाम बनके आ
#सलिल सरोज
परिचय
नई दिल्लीशिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(20 07),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्या लय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरीकॉ लेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशा स्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splen
did World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय प त्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प् रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।