शृंगार की प्रेरणा सौन्दर्य से- कल्पेश वाघ

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● भावना शर्मा, दिल्ली

पुस्तक ‘समय अभी तक वहीं खड़ा है…’ में धार्मिक, आध्यात्मिक, वैचारिक, प्रेम, इत्यादि अनेक विषय पर बात हुई है। जो कविताएँ तुकात्मक नहीं हैं, वो भी गेय हैं। इस मिज़ाज के कवि खाचरोद, उज्जैन निवासी कल्पेश वाघ का यह पहला काव्य संग्रह है।
आज मातृभाषा.कॉम की ख़ास प्रस्तुति में भावना शर्मा बात करेंगी कल्पेश वाघ जी से।

कल्पेश वाघ जी से साक्षात्कार हेतु प्रश्न-

1.लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिलती है?

•सौंदर्य , वस्तुतः मुझे शृंगार लेखन अधिक प्रिय है और शृंगार की प्रेरणा तो सौंदर्य से ही मिलती है।

2.कविताओं के अलावा साहित्य की और किस विधा में आप लेखन करते है?

•काव्य के अतिरिक्त मैंने कुछ लघुकथाएँ भी लिखी हैं, दो नृत्य नाटिकाओ का भी मंचन हो चुका है और एक उपन्यास पर लेखन जारी है। कुछ पत्र-पत्रिकाओं और ब्लॉग के लिए कॉलम्स भी लिखता हूं।

3.आप युवा कवि हैं, अतः लेखन से जुड़े किसी यादगार वाकये की किस्सागोई साझा करें।

•एक बार हमारे एक मित्र का फ़ोन आया। उन्होंने बताया कि उनकी भतीजी को एक नुक्कड़ नाटक का मंचन करना है, जिसमें उन्हें शुरुआत में कुछ पंक्तियाँ या कविता कहनी है तो यदि आप लिख दें तो बड़ा अच्छा लगेगा। हमने कहा, ’ठीक है, हम लिख देते हैं।’ उन्होंने फ़ोन रखा और उसके 10 मिनट बाद हमने एक अच्छी–सी कविता लिख कर उनको व्हाट्सएप पर भेज दी। उसके बाद उनका फ़ोन आया तो उनको विश्वास नहीं हुआ कि यह कविता मैंने लिखी है क्योंकि 10 मिनट से कम समय में कोई कविता लिख देना, उनके लिए बड़े आश्चर्य की बात थी और चूंकि वे मुझे काफ़ी समय से जानते थे तो उनको उम्मीद नहीं थी कि मुझमें इतनी प्रतिभा भी है कि 10 मिनट में कोई कविता लिख सकता हूं तो उन्होंने पूछा कि यह कविता आपकी है ? हमने कहा, ’मेरी है।’ उन्होंने कहा कि बिटिया का नाम दे सकते हैं? हमने कहा, ’हां, बिटिया से पढ़वा सकते हैं, उनका नाम भी दे सकते हैं, कोई दिक्कत नहीं है।’ असल में उनको यह चिंता थी कि कहीं हमने ऑनलाइन गूगल पर से उठाकर या कहीं किसी किताब में से चुराकर तो नहीं दे दी है क्योंकि इतनी जल्दी कुछ लिख पाना थोड़ा कठिन होता है। लेकिन फिर विश्वास दिलाया कि नहीं यह कविता मैंने लिखी है, अभी लिखी है और आपके लिए विशेष रूप से लिखी है तो आप इसको पढ़ा सकते हैं, बिटिया का नाम भी दे सकते हैं, कोई परेशानी नहीं है। उन्हें बड़ा अचरज हुआ और ख़ूब खुशी भी हुई और बहुत धन्यवाद किया तो इस प्रकार मित्रों की और बच्चों की सहायता करने में, खुशी देने में बहुत अच्छा लगता है, खुशी मिलती है।

4. ‘समय अभी तक वहीं खड़ा है’ क्यों लिखी? कोई विशेष कारण!

•समय अभी तक वहीं खड़ा है’ यह पुस्तक मेरे लगभग 10–15 वर्षों के काव्य रूपी पुष्पों की माला जैसी है, जिसमें सभी रंगों के पुष्प हैं । कुछ रचनाएँ प्रेम की, कुछ विरह की तो कुछ समसामयिक विषयों पर हैं। कुछ छंद मुक्त हैं तो कुछ छंदबद्ध और कुछ क्षणिकाएँ भी हैं। मैं भले ही अपनी आयु में आगे बढ़ आया हूं किंतु मेरे लिए समय अभी तक वहीं खड़ा है।

5.’समय अभी तक वही खड़ा है’ के अलावा आपकी अन्य प्रकाशित रचनाओं के बारे में बताएँ।

• ‘समय अभी तक वहीं खड़ा है’ मेरी प्रथम प्रकाशित पुस्तक है। इसके अतिरिक्त कुछ रचनाएँ अवश्य कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं किंतु पुस्तक के रूप में तो अभी यही है। अभी एक उपन्यास लेखन प्रक्रिया में है। आशा है कि शीघ्र ही प्रकाशित होकर आप सबको हाथों में होगा।

6. ‘समय अभी तक वही खड़ा है’ नाम रखने के पीछे कोई महत्त्वपूर्ण कारण, कोई प्रेरणा?

•इस काव्य–संग्रह में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण गीत है, जो एक विरहणी की स्थिति को दर्शाता है :
’तुमने जहाँ छुआ था मुझको
समय अभी तक वहीं खड़ा है।’

यह गीत मेरे हृदय के बहुत ही निकट है। अतः इस गीत के मुखड़े से ही पुस्तक का शीर्षक रखा गया। साथ ही, पुस्तक की प्रत्येक रचना मेरे जीवन के अलग-अलग समय में और परिस्थिति में लिखी गई है। अतः प्रत्येक रचना मेरे उस परिस्थिति विशेष का प्रतिनिधित्व करती है, अतः उस तरह से भी यही शीर्षक उपयुक्त लगा।

7. साहित्य में युवाओं की सक्रियता को आप कैसे परिभाषित करते हैं?

•यह तो कहना ही होगा कि इन दिनों साहित्य के क्षेत्र में युवाओं की सक्रियता बढ़ी है किंतु फिर भी यह देखने में आता है कि अधिकांश रचनाएँ केवल सोशल मीडिया पोस्ट के स्तर तक ही सीमित हैं। साहित्य के स्तर पर भी कुछ अच्छे रचनाकार रचनाधर्मिता कर रहे हैं किंतु फिर भी अभी उस स्तर में कुछ कमी–सी लगती है। युवाओं को और अधिक स्तरीय साहित्यिक रचनाओ की ओर जाना होगा।

8.हिंदी साहित्य का भविष्य आप कैसा देखते हैं?

•हिंदी साहित्य का भविष्य सुखद है। मेरी हिंदी के अनेक नए रचनाकारों से चर्चा होती रहती है और उससे यह अनुभूति होती है कि अब जो नए रचनाकार आ रहे हैं वे जब धीरे-धीरे परिपक्व होंगे तो निश्चित ही हिंदी को उसके स्वर्णिम शिखर तक लेकर जाएँगे।

9. लेखन के अलावा आपके शौक़ में और क्या-क्या शामिल है?

•लेखन के अतिरिक्त संगीत मेरा प्रिय विषय है। मुझे गाना बहुत पसंद है, अपने ही गीतों को अक्सर मैं गाता रहता हूं और मंच से भी गुनगुनाकर ही अपनी रचना सुनाने का प्रयास करता हूं। मेरी अधिकांश रचनाएँ छंदबद्ध और गेय होती हैं, वह भी मेरे गायन के प्रति आकर्षण का कारण है।

10. कुछ ख़ास बातें अपनी पुस्तक ‘समय अभी तक वही खड़ा है’ के बारे में बताएँ।

•’समय अभी तक वहीं खड़ा है’ में तीन भाग हैं। प्रथम भाग समसामयिक रचनाओं का है, द्वितीय भाग में शृंगारपरक गीत व रचनाएँ हैं तथा तृतीय भाग मुक्त रचनाओं का है। पुस्तक की अधिकांश रचनाएँ लयबद्ध हैं, जिन्हें एक तारतम्य में पढ़ा जा सकता है। शृंगारपरक रचनाओं के भाग में कई गीत हैं और सभी ऐसे हैं कि सीधे मर्म को स्पर्श करते हैं। आप यदि उन्हें पढ़कर या गाकर देखें तो आपको इसका अनुभव होगा। संपूर्ण पुस्तक की भाषा उच्च कोटि की तत्समनिष्ठ हिंदी है, जो पुस्तक को और गरिष्ठ व पठनीय बनाती है।

11.आपने पुस्तक प्रकाशन के लिए संस्मय प्रकाशन ही क्यों चुना?

•संस्मय प्रकाशन, एक युवा ऊर्जावान प्रकाशन समूह है। इसके संस्थापक शिखा जी व अर्पण जी सदैव हिंदी तथा साहित्य की उन्नति के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। उनकी ऊर्जा उनके सभी कार्यक्रमों में स्पष्ट दिखाई देती है। अपने प्रकाशन के लेखकों से निरंतर चर्चा करते रहना, उनसे नए–नए विषयों पर विचार करते रहना और नए लेखकों को मार्गदर्शन देना, यह उनका विशिष्ट कार्य है। उनका सदैव प्रयास रहता है कि नए लेखकों की पुस्तकें अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचे और लेखक की साहित्य जगत में प्रतिष्ठा हो, इसीलिए मैंने बिना कोई अन्य विचार किए संस्मय प्रकाशन को ही अपनी पुस्तक के प्रकाशन के लिए चुना।

12. मातृभाषा के रचनाकारों को आप क्या सन्देश देना चाहते है?

•मेरा तो यही कहना है कि यदि आप काव्य लेखन या फ़िक्शन लेखन के क्षेत्र में हैं तो आपको यह सदैव अपने ध्यान में रखना चाहिए कि मनोरंजन भी आप का एक उद्देश्य है। आप चाहे मंच से पढ़ रहे हैं अथवा पुस्तक में प्रकाशित हो रहे हैं , पाठक अथवा श्रोता को चमत्कृत किए बिना आपकी रचना–धर्मिता का कोई अर्थ नहीं है। यदि पाठक मंत्रमुग्ध नहीं होगा तो वह आपको बार-बार पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं होगा। व्यर्थ का ज्ञान अथवा सामाजिक उद्देश्य की बातें आपकी रचना को बोझिल व उबाऊ बना देती हैं। अतः इनके आधिक्य से बचना चाहिए, उसके लिए साहित्य की अन्य विधाएँ हैं, उनका उपयोग करना चाहिए।

13. पाठकों के लिए कुछ ख़ास, जो आप कहना चाहें?•पाठकों को भी अच्छे व साहित्यिक लेखन को पढ़ना चाहिए। हिंदी के यदि कोई तत्समनिष्ठ शब्द हमें समझ नहीं आ रहे हैं तो उसे ढूंढकर उनका अर्थ खोजना चाहिए। जिस प्रकार हम अंग्रेज़ी के साहित्य पढ़ते समय कठिन शब्दों को डिक्शनरी में से देख लेते हैं, वैसा ही हिंदी के शब्दों के साथ भी किया जा सकता है। इससे पाठक का भाषा ज्ञान भी बढ़ेगा और अच्छे साहित्यिक रचनाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

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कल्पेश वाघ की पुस्तक ‘समय अभी तक वहीं खड़ा है’ अमेज़न व फ़्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।

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