भारत त्योहारों का देश है, यहाँ हर त्योहार का अपना अलग महत्व है और ऐसे ही महत्त्व के बीच जब कोई त्योहार प्राकृतिक पूजन और सांस्कृतिक समन्वय आधारित हो, वह अपने आप में राजतिलक हो जाता है। इसी तरह प्रकृति से जुड़ा त्योहार हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है। इस कारण इसे श्रावणी तीज के नाम से भी जाना जाता है। तीज अपने साथ नई जीवन ऊर्जा लेकर आती है। श्रावण मास में जहां प्रकृति अपने अनुपम ख़ज़ाने से वसुंधरा के सौंदर्य को और निखारती है, वहीं मानव हृदय की भावना का अद्भुत समन्वय तीज के माध्यम से दृष्टिगत होता है । प्रत्येक त्योहार मनाने के पीछे कोई न कोई कारण निहित होता है । चाहे वह पारंपरिक हो, पौराणिक हो, सांस्कृतिक हो, धार्मिक या प्राकृतिक। हरियाली तीज भी प्रकृति का एक उत्सव है। इस समय वर्षा ऋतु के प्रभाव से पृथ्वी पूरी तरह हरी-भरी हो जाती है, जो हरियाली तीज के नाम को पूरी तरह सार्थक करती प्रतीत होती है।
पौराणिक संदर्भों के अनुसार, हरियाली तीज देवी पार्वती व भगवान शिव के पुनर्मिलन का प्रतीक है । शिव- शक्ति के सफल दांपत्य की आराधना का दिन है। यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि भोलेनाथ को पति के रूप में प्राप्त करने हेतु देवी गौरी ने कठोर तपस्या की और 108 में जन्म में उनकी तपस्या सिद्ध हुई। जिससे भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया । संभवतः इसी कारण कुँवारी महिलाएं सुयोग्य वर पाने हेतु और विवाहित स्त्रियाँ सुखी दाम्पत्य के लिए तीज का व्रत अनुष्ठान करती हैं।
तीज के दिन मां गौरी की झांकियां निकलती हैं। स्त्रियां आकर्षक वस्त्र आभूषण से सुसज्जित हो माता की उपासना करती हैं, कि उन्हें व उनके परिवार के जीवन में इंद्रधनुषी रंग सदैव बना रहे। पूजा के बाद सभी महिलाएं एक साथ गौरीशंकर से जुड़े लोकगीत गाती हैं । वह परिवार की वरिष्ठ महिला ( विशेषकर सास) से आशीर्वाद लेती हैं । हरियाली तीज में हरे रंग का विशेष महत्त्व है । ठंडी तासीर वाली मेहंदी इसका ख़ास आकर्षण है , जो प्रेम व उमंग के संतुलन हेतु अत्यंत उपयोगी है । सावन में तीज पर झूले का भी अपना महत्त्व है। महिलाएं सज-सँवरकर झूला झूलती हुईं सावन से संबंधित लोक गीत गाती हैं । रात में चंद्रमा को अर्ध्य देने के पश्चात ही महिलाएं भोजन करती हैं। इन्हें मायके व ससुराल से सिंधारा (वस्त्र,शृंगार का सामान, मेहंदी व मिष्ठान ) भेजने की परंपरा भी बख़ूबी निभाई जाती है।
देश की राजधानी हो या सुदूर प्रदेश, हरियाली तीज विशेषकर उत्तर भारत में पूरी आस्था व उल्लास से मनाया जाने वाला त्योहार है। अलग-अलग स्थानों पर मनाने की विधियां अलग होती हैं । जैसे, वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर में राधा कृष्ण की पूजा की जाती है। यहाँ भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। वहीं राजस्थान में गौरी शंकर की पूजा की परंपरा है। गुजरात और महाराष्ट्र में पारंपरिक नृत्य गरबा के माध्यम से स्त्रियां माता पार्वती की स्तुति करती हैं।
हरियाली तीज मनाने का एक प्रमुख कारण और भी है, और वह है धरती पर लहराती फसल का उत्सव साथ ही अच्छी पैदावार की कामना। इस त्योहार के आसपास खेतों में खरीफ़ फसलों की बुवाई भी शुरू हो जाती है। इस प्रकार सौभाग्य का प्रतीक हरियाली तीज प्रकृति के वरदानों से भरपूर एक लोकप्रिय त्यौहार है, जो देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भावना शर्मा लेखिका, दिल्ली।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, मातृभाषा उन्नयन संस्थान