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वो बोलती हैं अपने समय को
बताती हैं समाज की बातें
भावनाएँ, पीड़ाएँ और चिन्तन
सैकड़ों हज़ारों साल बाद भी
दर्शाती हैं हालात उस समय के
जब वो लिखी या गढ़ी जा रही थीं
वो गाती हैं समाज के गीत को
वो आईना दिखाती हैं हर हरकारे को
इसीलिए तो दोस्ती क़िताबों से होती
किताबें समय का शिलालेख होती हैं
है न…?
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
सम्पादक, साहित्य ग्राम पत्रिका
इन्दौर, मध्यप्रदेश
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