अंतर्राष्ट्रीय फलक पर कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’

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नवोदित कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’ के काव्य संग्रह ‘हाय री! कुमुदिनी’ में संकलित रचनाएं एक ऐसा मधुकोश है जो उनके विविधवर्णी पुष्पों के पराग से निर्मित है। चूँकि कवि पेशे से शिक्षक हैं अत: उनकी प्रत्येक कविताओं में शिक्षा या उपदेश का आग्रह अनायास परिलक्षित होता है। पर्यावरण प्रेमी कवि ने ‘कुहू कुहू बोले रे कोयलिया ‘, ‘पहाड़’ जैसी कविताओं में जमकर लोकरस की वर्षा की है। कवि का जन्मस्थल दो लोकोत्तर महापुरुषों की विशेष कार्यस्थली कुशीनगर से संबंधित है। कुशीनगर जहाँ एक ओर कबीर दहाड़ रहे हैं वहीं बुद्ध की करुणा मुस्करा रही है। बालिकाओं के प्रति सामाजिक भेदभाव उन पर होने वाले अत्याचार, दहेज की विभीषिका आदि का समाधान कवि ने स्त्री शिक्षा के माध्यम से प्रस्तुत किया है। ‘ गर्भ में बेटियां ‘, ‘ आओ, पढ़ाई कर लो बेटी ‘, ‘महंगा वर’ इसी स्वर की कविताएँ हैं। इंसान का जीवन संघर्षों की आंच में पककर ही निखरता है- ‘पत्थर बनकर गुलाब होना’ इसी की अभिव्यक्ति है। कबीर और बुद्ध की दंशना की पुकार ‘ सांस और लाश’ कविता बखानती है जहाँ जीवन लास्य के रोमांस से मुक्ति के मार्ग का द्वार उद्घाटित होता है। संग्रह का नाम ‘हाय री ! कुमुदिनी’ कबीर की कविता ‘काहे रे नलिनी ‘ की तर्ज पर रखा गया है। कबीर जैसे अनुभवसिद्ध कवि की तरह सुनील चौरसिया ‘सावन’ की कविता इंसान के परितृप्त मन पर अमृत वर्षण करती है। इनकी कविताओं में जीवन, जगत, लोक, मानव-मन के अन्तर्तम की यात्रा है। साथ ही माता-पिता, व्यक्ति व समाज की जिम्मेदारियों का सम्यक चित्रण देखने को मिलता है। इनके पाठक देश- विदेश तक फैले हैं। इनकी रचनाएँ देश- विदेश की ख्यातिप्राप्त एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं। व्यक्तिगत रूप में मृदुभाषी, हँसमुख व भावुक कवि ‘सावन’ जी के सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह की सफलता की कामना करते हुए आशीष देता हूँ। सुधी पाठकों के हृदय में इन काव्य ध्वनियों का संचार व प्रभाव लम्बे समय तक रहेगा। शुभकामनाओं सहित

डॉ. जितेन्द्र कुमार तिवारी
सहायक प्रोफेसर (हिन्दी),
दाहूँग (अरुणाचल प्रदेश)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।