बढने लगी है टांग अडाकर गिराने वालों की भीड

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कोरोना वायरस के हथियार से चीन ने जिस तरह से तीसरे विश्व युध्द का शंखनाद किया है उसके बाद से पूरी दुनिया में प्राणघातक जीवाणुओं के शोध, भंडारण और उनके उपयोग की विधियों ने आकार लेना शुरू कर दिया है। मानवीय काया स्वयं अपने ही कार्यों से मौत को गले लगाने पर तुली हुई है। स्वयं को प्रकृति के साथ समायोजित न करके उस पर राज्य करने की मंशा लेकर चलने वाले कथित विव्दानों ने दुनिया को निरंतर समस्याओं की सौगातें ही भेट की हैं। भेंट किये गये अविष्कारों को बिना जांचे-परखे ही अंधा अनुशरण करने वालों को इसका खामियाजा भी भुगतना पडा है। रसायनिक खादों के अंधे अनुशरण ने खेतों को बंजर कर दिया, यूकोलिप्टस के पेड को आंदोलन की तरह लगाने वाली पहल ने भूगर्भीय जल के भंडार को समाप्त कर दिया, घातक कीटनाशकों ने उत्पादन को जहरीला बना दिया, इंजैक्शन लगाकर पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के प्रयोगों ने बीमारियों की सौगातें दीं, पर्वतीय क्षेत्रों में विद्युत उत्पादन हेतु बनाये जाने वाले बांधों ने भूस्खलन जैसी विपदाओं को आमंत्रण दिया, परमाणु विस्फोटों ने ऊष्मा की मात्रा में हजारों गुना वृध्दि की, इस तरह के अनगिनत उदाहरण हैं जिन्होंने प्रकृति के विपरीत काम करने पर दु:खद परिणामों की बानगी के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। पर्यावरणीय संरचना के साथ छेडछाड करने के अलावा देश, काल और परिस्थितियों को नजरंदाज करते हुए व्यक्तिगत क्षमताओं का हृास करने वाले प्रयोग भी खूब व्यवहार में आ रहे हैं। स्वयं की क्षमताओं को तिलांजलि देकर कथित सुख के लिए लोगों ने यंत्रों पर अनावश्यक निर्भरता बढाना शुरू कर दी है। लोगों को अपने से ज्यादा, यंत्रों पर विश्वास हो रहा है। कैलकुलेटर ने गणितीय क्षमता समाप्त कर दी, वाहनों की बहुतायत ने शारीरिक क्षमता को हासिये पर पहुंचा दिया, जनसंख्या की अधिकता वाले देशों में यंत्रिक प्रयोग ने बेरोजगारी का उपहार दिया, टैक्टर ने गौवंश और दुग्ध उत्पादन को सीधा प्रभावित किया, हारवेस्टर ने पशु आहार के रूप में प्रयोग होने वाले भूसे का अकाल पैदा कर दिया, रासायनिक प्रयोगों से साग-भाजी की मात्रात्मक वृध्दि की लालसा ने उसे गुणवत्ताविहीन बना दिया, धरती का सीना छलनी करके बोर से पानी खीचने के प्रयासों ने भूगर्भीय जल के भंडार को समाप्त करने की दिशा में गति पकड ली है, नदियों में औद्योगिक इकाइयों के घातक पदार्थो तथा मल-मूत्र सहित गंदगी मिलाने वाले नाले जल प्रदूषण के ग्राफ को निरंतर ऊंचाई पर पहुंचाने का काम कर रहे हैं, मोबाइल टावरों से निकलने वाला रेडिएशन उपभोक्ताओं की रोगप्रतिरोधक क्षमता का प्रतिपल हृास कर रहा है, इस तरह के अनेक कार्यो को निरंतर गति देना ही, आज विकास का नया मापदण्ड बन गया है। जो पैदल न चलता हो, वातानुकूलित वातावरण में हमेशा रहता हो, मोबाइल की छोटी स्क्रीन से लेकर कम्प्यूटर के मानीटर पर हमेशा आंखें गडाये रहता हो, नेट पर बैठकर आनलाइन पढाई से लेकर शोध तक करता हो, बाजार न जाकर आनलाइन शापिंग करता हो, मित्रों के साथ दूर से अठखेलियों हेतु तरंगों पर आधारित उपकरणों की सहारा लेता हो, जैसे कार्यो में संलग्न लोगों के शारीरिक स्वस्थ, क्षमता और संरक्षण पर तो प्रश्नचिंह अंकित होंगे ही। नित नये वायरसों का खुलासा कोई आश्चर्य कर देने वाली घटना कदापि नहीं है। जनसंख्या वृध्दि से साथ ही वायरसों की संख्या में भी हजारों गुना ज्यादा इजाफा हो रहा है। इन वायरसों में कुछ प्रकृति जन्य है तो कुछ मानव निर्मित हैं। आसमान नें उडने वाले पक्षी जहां प्रकृति जन्य हैं वहीं मानवनिर्मित ड्रोन घातक भी हैं, कम्प्यूटर से लेकर मोबाइल तक पर जहां वायरस अटैक स्व:निर्मित और मानव निर्मित तक हैं। वायरस को न दिखने वाले कारक का प्रत्यक्ष दिखने वाले परिणाम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। वर्तमान में विकास के लिए दूसरे की रेखा मिटाने का प्रयास किया जा रहा है। यानी कि बढने लगी है टांग अडाकर गिराने वालों की भीड। ऐसे में एक बार फिर हमें स्वयं के आचरण पर चिन्तन करना चाहिए, व्यवहार का मूल्यांकन करना चाहिए और करना चाहिए प्रकृति प्रदत्त संकेतों का विश्लेषण। तभी सार्थक परिणामों का प्रत्यक्षीकरण हो सकेगा। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

डा. रवीन्द्र अरजरिया

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।