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साथ न होकर भी मेरे साथ रहते हैं ।
पापा तो हरदम यूं मेरे पास रहते हैं ।।
हर फ़तेह में मेरी शामिल हैं हर पल ।
सर पर उनकी दुआओं के हाथ रहते हैं ।।
रोशनी की मानिंद साथ चलते हैं वो ।
छू नहीं पाता क्यूं ऐसे हालात रहते हैं ।।
उनके बिना घर-आँगन सूना है ।
गुमसुम यूं मेरे दिन -रात रहते हैं ।।
बयां उनका अब कैसे करे “काज़ी” ।
बहते अश्कों में मेरे जज़्बात रहते हैं ।।
डॉ. वासिफ़ काज़ी
इकबाल कालोनी ,इंदौर
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