सृष्टि में ऐसे कई दिव्य व्यक्तित्वों का आगमन हुआ जिन्होंने अपने कृतित्व से अपने कुल वंश का ही नही समस्त मानव जाति का मान बढ़ाया। मानव सभ्यता के ऐसे महापुरुष जिनके समान मर्यादा का प्रतिमान दूसरा कोई स्थापित नही हो पाया। त्रेता युग के दैवीय अवतार, जन जन के प्रिय महाराज रहे, राजकुमार राम से प्रभु श्री राम तक की यात्रा तय करने वाले दशरथ नंदन मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम के जन्मोत्सव की धूम पूरे देश में रहती है। आज चीन द्वारा फैलाये गए संक्रमण कोरोना के कारण बदली हुई परिस्थितियों में भले ही जनमानस सामूहिक एकत्र होकर जन्मोत्सव का उत्साह न दिखा पाए हो, परन्तु यह जन्मोत्सव बहुत ही महत्वपूर्ण माना जायेगा। जिस प्रकार 14 वर्ष के वनवास के बाद प्रभु श्री राम रावण को परास्त कर पुनः अयोध्या वापस लौटे थे, उसी प्रकार लगभग 5 सदियों के कलियुगी वनवास के बाद राम पुनः अपनी जन्मभूमि पर स्वाभिमान से विराजित हुए है। सदियों तक चले जन्मभूमि के इस संघर्ष में 4.5 लाख से अधिक वीरों ने अपना बलिदान दिया। जब 15 वी शताब्दी में बाबर के सेनापति मीर बांकी ने जन्मभूमि के तत्कालीन मंदिर को ध्वस्त किया तब भी लगातार संघर्ष होते रहे। हम सभी जानते है मुगलों के शासन बाद देश ने अंग्रेजो के शासन को झेला, परन्तु भारत की स्वाधीनता के बाद देश को जो पहचान दी जानी चाहिए थी वह नही दी गई। गुलामी के चिन्हों को समाप्त नही किया गया, भारत के गौरवशाली इतिहास को सुदृढ करने के सकारात्मक प्रयास जो किए जाने चाहिए थे, इतना साहस तात्कालिक नेताओं व सत्ता न नही दिखाया। स्वतंत्रता के उत्सव में देश की स्मिता को पुनर्जीवित करने के प्रयासों पर धूल जमती गई।
उसके बाद 1964 में सन्तों के नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद का गठन किया गया। विश्व हिंदू परिषद का गठन वैसे तो विश्व के समस्त हिन्दूओं को हिन्दू इस नाते संगठित व सनातन मान्यताओं की रक्षा हेतु किया गया। किंतु इसका मुख्य उद्देश्य राम जन्मभूमि की स्वतंत्रता की अंतिम लड़ाई लड़ना रखा गया। अशोक जी सिंघल, प्रवीण जी तोगड़िया जितने भी दिग्गज रहे उन्होंने रामजन्मभूमि के आंदोलन को और अधिक पैना किया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि के इस आंदोलन को जन जन के राम का आंदोलन बनाया। देश के गांव गांव में जन जागरण व सभाओं के माध्यम से हिन्दू समाज की शक्ति को संगठित किया गया। दशकों बाद यह पहली बार था जब राम जन्मभूमि आंदोलन के माध्यम से समस्त हिन्दू समाज जातिवाद से ऊपर उठकर एकजुट हुआ। यह युवा तरुणाई आगे जाकर जन्मभूमि आंदोलन में बजरंग दल के रूप में सक्रिय हुई।
संतों व अनेक विद्वत व्यक्तित्वों के निर्देशन में विश्व हिन्दू परिषद देश में जन जन को सनातन से जोड़ने के लिए संकल्पित होकर कार्य कर रही है, इसी हेतु से रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र हेतु समर्पण राशि सम्पूर्ण देश के जन जन से एकत्र की गई। परिषद के कार्यकर्ता हर घर हर दरवाजे पर राम भक्तों से आग्रह हेतु पहुचें, इससे समाज में एक सकारात्मक वातावरण बना, जाति मत पंथ में बंटा हुआ समाज राम के नाम पर एकजुट होकर खड़ा दिखाई दिया, सबने स्वेच्छा से जितना हो सका अर्थ समर्पित किया, राम भक्तों का सम्मान भी किया। यह राम की ही विजय थी, जो पुनः समाज को एकजुट करते हुए अपना काज रामभक्तों से करवा रहे थे।
जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का भव्य पूजन संपूर्ण देश ने देखा जिसमे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी सम्मिलित हुए। विदित हो कि शिलान्यास तो कई वर्ष पहले ही किया जा चुका था संतों के नेतृत्व में यह सौभाग्य कारसेवक कामेश्वर चौपाल जी को प्राप्त हुआ। अब राम नवमी पर भले ही देश मे भव्य आयोजन न हो, किंतु यह राम नवमी प्रत्येक राम भक्त के ह्रदय में ऐतिहासिक छाप छोड़कर जाने वाली है। लगभग 500 वर्षों का संकल्प, कई पीढ़ियों का बलिदान, कई लाखों हुतात्माओं की आहुति के बाद यह स्वर्णिम क्षण हमें मिला है। आवश्यक है इसे हम स्थायी बनाये। समाज एकजुट होकर नकारात्मक शक्तियों के विरुद्ध खड़ा हो।
अवश्य राम आज सजीव रूप में नही, परन्तु उनकी आवश्यकता आज भी है, जब जातिभेद को हवा देकर देश में उन्माद किया जाता है तब राम की आवश्यकता है, जब पूजी जाने वाली नारि का अपमान किया जाता है तब राम की आवश्यकता है, जब अन्याय व अनीति को मौन रहकर बर्दाश्त किया जाता है तब राम की आवश्यकता है। हमें जीवन के हर दर्शन में राम को आत्मसात करते हुए राम को अपने आप में पुनर्जीवित करना होगा। तभी राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर और उसमें विराजित रामलला प्रसन्न होंगे। क्योंकि राम स्वयं अपने आप को स्वर्ण रजत के आसन पर बैठे नही देखना चाहते, वे तो चाहते है कि हर भक्त के ह्रदय में विराजित हों। यह रामनवमी उन्ही मर्यादा पुरुषोत्तम को जन जन के ह्रदय में स्थापित करने का माध्यम बनें।
मंगलेश सोनी
मनावरमध्यप्रदेश