आयुर्वेद की ओर दुनिया के बढ़ते कदम

1 0
Read Time6 Minute, 30 Second

‘आयुर्वेद’ है ‘जीवन का ज्ञान’
आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः।
अर्थात जो शास्त्र आयु (जीवन) का ज्ञान कराता है उसे आयुर्वेद कहते हैं।
आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह अथर्ववेद का समूचा विस्तार है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। ‘आयुर्वेद’ का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’ और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है।
आयुर्वेद का उद्देश्य सदैव स्वस्थ प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा तथा रोगी के रोगों को दूर करना है –
प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं आतुरस्यविकारप्रशमनं च ॥
(चरकसंहिता, सूत्रस्थान ३०/२६)

यह प्राचीन चिकित्सा प्रणाली केवल रोग-उपचार के नुस्खे ही उपलब्ध नहीं कराती, बल्कि रोगों के रोकथाम के उपायों के विषय में भी विस्तार से चर्चा करती है। आयुर्वेद हमारे इतना नजदीक है कि उसे रोजमर्रा के जीवन पद्धति से अलग करना असंभव है।
आयुर्वेद हमें न केवल रोगों से बचाती है बल्कि जीने की कला भी सिखाती है।

पीढ़ी दर पीढ़ी मिली ‘आयुर्वेद’

जबसे इस सृष्टि की उत्पत्ति हुई तभी से प्रत्येक जीव भूख, प्यास, नींद, शरीर और मन के रोगों को दूर रखने के प्रयास कर रहा है। हम अपने आसपास ही देखते हैं की गला खराब होने पर, खांसी होने पर, जुकाम होने पर ठंडी वस्तुओं को सेवन न करने को कहा जाता है। अदरक-तुलसी की चाय पियो, दूध और हल्दी लो जैसे नुस्खे हर कोई मुफ्त में बांटता फिरता है। किसी पदार्थ की प्रकृति ठंडी है या गर्म, ये सभी आयुर्वेद के नियम हैं जो हमें पीढ़ी-दर पीढ़ी अपने बड़े-बुजुर्गो से मिले हैं।

अपने घर या उसके आसपास अनेक ऐसे पदार्थ मिल जाते हें जो कि हम सदियों से औषधियों के रूप में प्रयोग करते हैं। जन सामान्य के लिए इसी आसान, प्रभावी, सस्ती, सुलभ और सक्षम पद्धति का नाम आयुर्वेद है। इसीलिए महर्षि चरक ने चरक संहिता में कहा है कि जो विद्या अच्छाई, बुराई, दुख सुख, समय और लक्षण का ज्ञान कराए वह आयुर्वेद है।

आयुर्वेद अपनाने के मुख्य कारण:-

१. आयुर्वेद की दवाएं किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त करती है, जबकि एलोपैथी की दवाएं किसी भी बीमारी को केवल कंट्रोल में रखती है।

२. आयुर्वेद का इलाज हजारों वर्षो पुराना है, जबकि एलोपैथी दवाओं की खोज कुछ सदियों पहले हुई है।

३. आयुर्वेद की दवाएं घर में, पड़ोस में या नजदीकी जंगल में आसानी से और सहजता से उपलब्ध हो जाती है, जबकि एलोपैथी दवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती।

४. आयुर्वेदिक दवाएं बहुत ही सस्ती है या कहें कई तो मुफ्त की है, जबकि एलोपैथी दवाओं कि कीमत बहुत ज्यादा है। एक आदमी की जिंदगी की कमाई का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा बीमारी और इलाज में ही खर्च होता है।

५. आयुर्वेदिक दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है, जबकि एलोपैथी दवा को एक बीमारी में इस्तेमाल करो तो दूसरी बीमारी अपने स्वत: उत्पन्न होने लगती है।

६. आयुर्वेद में सिद्धांत है कि इंसान कभी बीमार ही न हो और इसके छोटे-छोटे उपाय है जो बहुत ही आसान है, जिन्हें अपनाकर हम स्वस्थ रह सकते है, जबकि एलोपैथी के पास ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है।

आयुर्वेद की ओर दुनिया के बढ़ते कदम:-

पूरे विश्व के लोग अब एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से ऊब चुके हैं। इस पद्धति के दुष्प्रभावों ने नई बीमारियों को जन्म दे दिया है। भविष्य की चिकित्सा एलोपैथी पर नहीं बल्कि आयुर्वेद पर पूर्णतया निर्भर होगी।

आयुर्वेद हमारे ऋषियों की अमूल्य धरोहर है और आने वाले समय में यही चिकित्सा की प्रमुख पद्धति होगी। आयुर्वेद से विश्व का कायाकल्प होगा।
आयुर्वेद का उद्देश्य उन्हें यह बताना है कि हमारे जीवन को बीमारी और बुढ़ापे आए बगैर किस तरह से प्रभावित, विस्तृत, समृद्ध, और अंततोगत्वा, नियंत्रित किया जा सकता है।

भारतीय आयुर्वेद एलोपैथी के मुकाबले कहीं अधिक प्रभावशाली है और आयुर्वेद को यदि सही तरीके से प्रोत्साहित किया जाए तो इसमें आइटी क्षेत्र के बराबर निवेश लाने की क्षमता है।

यदि आप संपूर्ण जीवन को रोगों से पूर्णतया मुक्त रखना चाहते है,निरोगी काया रखना चाहते हैं तो आपको विश्व की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को आत्मसात् करके अपने जीवन में उतारना होगा!

महान विचारक लीजा कॉफे ने आयुर्वेद के बारे में सटीक कहा था : आयुर्वेद हमें “जैसा है” वैसे प्यार करना सिखाता है- ना कि जैसा हम सोचते हैं लोग “होने चाहिएं।”

शिवांकित तिवारी “शिवा”
(युवा कवि एवं आयुर्वेद चिकित्सार्थी)

matruadmin

Next Post

स्वंय को जाने

Mon Jan 11 , 2021
तन की खूबसूरती एक भ्रम है..! जो इंसान को घमंडी बना देता है। मन की खूबसूरती ही असली सुंदरता है। जो दिलको शांत और मनको व्यवहारिक बनता है। सब से खूबसूरत तो आपकी “वाणी” है..! जो चाहे तो दिल जीत ले.. या चाहे तो दिल चीर दे !! वाणी की […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।