तेेरे प्यार में

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सुनीता सुबह से ही बैचेन थी । उसके सामने रह-रह कर विजय का चेहरा घूम जाता था । उसे तो अभी ही पता चला था कि विजय को कोरोना हो गया है । कोरोना का खौफ और विजय की याद उसे परेशान कर रही है । एक तो वह वैसे भी महिने भर से विजय से मिली ही नहीं थी, फोन पर जरूर बात हुई थी वो भी एक ही बार । शहर में लाॅकडाउन जो लगा था । लाॅकडाउन में सभी घरों में ही कैद थे पर विजय कैद नहीं था । वह ठहरा पत्रकार वह पूरे शहर में घूम-घूम कर रिर्पोटिंग कर रहा था । उसकी ज्यादा अच्छी बात यह थी कि वह रिर्पोटिंग के साथ ही साथ जरूरतमंदों की मदद भी कर रहा था । किसी को भोजन देना तो किसी को दवा लाकर देना लोग तो घरों से निकल नहीं कसते थे न पर विजय निकल सकता था उसे पास मिला हुआ था वह उस पास के सहारे दूसरों की मदद कर रहा था । उसने उसे भी फोन किया था ‘‘सुनीता कुछ काम हो तो बता देना’’ ।
उसने इतना ही कहा था ‘‘वो तो ठीक है पर तुम अपना ध्यान रखना’’ ।
‘‘अरे मुझे कुछ नहीं हो सकता……’’ हंस पड़ा था वह ।
पर वह तो कम से कम वह तो कैद थी ही । उसकी माॅ ने साफ बोल दिया था ‘‘तुम घर से बिल्कुल नहीं निकलोगी…..समझ गई….ये कोरोना छूत की बीमारी है एक दूसरे से फैलता है…..तू यदि कहीं से यह बीमारी घर पर ले आई तो सारा घर इस मुसीबत को भोगेगा…समझ गई न’’ । माॅ को उसके और विजय के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं मालूम था । उसने कभी बताया भी नहीं था और बताती भी कैसे । वैसे भी वह विजय से अभी भी ही कुछ महिनों पहले ही तो मिली थी । अभी तो वह भी विजय को समझ ही रही थी
‘‘आप बहुत सुन्दर लग रही हैं…….’’ । विजय ने बेझिझक उससे बोल दिया था । उसकी यही बात उसे अच्छी भी लगी थी । उस दिन वह पिंक कलर का सलवार सूट पहिने थी । माॅ भी हमेशा कहती है कि यह कलर तुझ पर बहुत सूट करता है.’’ । इसलिये वह इस कलर का सूट कम ही पहनती थी । कोई विशेष अवसर हो तो उसकी पहली पसंद पिंक कलर का सूट ही होता था या पिंक कलर की साड़ी । साड़ी भी उसे बहुत जमती थी । वह पारिवारिक कार्यक्रम में जाती तो पिंक कलर की साड़ी पहन लेती और किसी दूसरे कार्यक्रम में जाती तो पिंक कलर का सूट पहन लेती । सूट के साथ बाल खोल लेती और साड़ी के साथ जूड़ा बना लेती ।
‘‘तेरे पास क्या बस यही एक सूट है जो तू उसे डटाये रहती है’’ उसकी सहेली आरती उसे हर बार टोकती ।
‘‘नहीं यार…..यह कलर मेरा लकी कलर है इसलिये जब भी लक को आजमाना होता है न तो इस कलर का सूट पहिन लेती हूॅ’’ वह हंसते हुए उत्तर दे देती । पिंक कलर तो वाकई उसके लिए लकी ही साबित हुआ । इस कलर के कारण से ही तो वह विजय से मिल पाई । उस दिन कार्यक्रम था भी विशेष ‘‘प्रेमचंद जयंती समारोह’’ का । उसे भी बोलना था प्रेमचंद जी पर । प्रेमचंद जी उसके पसंदीदा लेखक थे । वैसे तो पहिले उसे साहित्य में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी पर जब उसने हिन्दी से एम ए किया तो प्रेमचन्द जी को पढ़ना पड़ा । पढ़ा तो पढ़ती चली गई । एक एक कहानी जैसे उसके आसपास के किसी व्यक्ति को देखकर लिखी गई थी । वह कहानी पढ़ती और उस कहानी में खो जाती । आज भी गरीबो का जीवन इतना ही कठिन होता है और गरीबों का ही क्यों मध्यमवर्गीय परिवार तो गरीबों से ज्यादा संघर्ष करता है वह तो अपनी जरूरतें बता भी नहीं सकता खुद ही घुटता रहता है । उस दिन प्रेमचंद जयंती पर उसने यही बात तो रखी थी
‘‘गरीबी की गरीबी तो दिखाई दे जाती है और उसकी मदद को लोग आगे आ भी जाते हैं पर मध्यमवर्गीय की गरीबी दिखाई नहीं देती उसे अकेले ही उससे जूझना पड़ता है’’ प्रेमचंद जी ने गरीब घासीराम के बारे में तो लिखा ही पर गरीब मध्यमवर्गीय के बारे में भी लिखा जो समाज को जीवित रखे हुए है ।’’ और भी बहुत कुछ । श्रोताओं को उसकी बात बिल्कल नई लगी । बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय परिवार आज भी अपनी दारूण हालात को समाज के सामने व्यक्त नहीं कर पाता कारण केवल संकोच ‘‘लोग क्या सोचेगें’’ । वह झूठी शान लिये अपना सिर ऊंचा किए अपने दर्द को पीता रहता है । वह ख्ुाद भी तो ऐसे ही परिवार की है इसलिये वह अपने परिवार का दर्द भलीभांति जानती है हर बात में माॅ ‘‘अरे नहीं….तू समझती नहीं है लोग क्या कहेगें’’ । वह सुन-सुन कर थक चुकी है ।
उसके भाषण में प्रेमचंद जी के बहाने से वही वेदना व्यक्त हो रही थी जिसे सभी लोग पसंद कर रहे थे । धाराप्रवाह वह बोलती चली गई और जब उसने अपना भाषण समाप्त किया तो सारा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया था । विजय ने भी उसे उस भाषण की ही बधाई दी थी
‘‘आप बहुत अच्छा बोलती हैं…’’
‘‘जी धन्यवाद……आपने भी अच्छा बोला है’’ । विजय ने भी प्रेमचंद जी पर अपने विचार रखे थे । वैसे तो वह भी बोलता बहुत अच्छा है पर आज सुनीता के भाषण के कारण वह अपने आपको पिछड़ा हुआ महसूस कर रहा था ।
‘‘नहीं…..आज मेरा भाषण आपके भाषण के कारण दब गया…’’
‘‘ ओह…मैं क्षमा चाहती हूॅ’’ । सुनीता ने यूं ही औपचारिकता निभाई ।
‘‘वैसे आज आप बहुत सुन्दर लग रहीं हैं’’ एक मीठी मुस्कान विजय के चेहरे पर थी । वैसे तो सुनीता से ऐसा बोलने की हिम्मत कोई कर भी नहीं पाता । वह इतनी जोर से उसे झिड़कती की हंगामा मच जाता पर विजय ने जिस आत्मीता के साथ ऐसा कहा था उसके कारण उसे बुरा नहीं लगा । उसने विजय की ओर नजरें उठाई
‘‘जी धन्यवाद……’’ कहते हुए वह चली गई थी । विजय उसे देखता रहा था बहुत देर तक । सुनीता ने घर आकर अपने आपको आईने के सामने निहारा था ‘‘वह वाकई सुन्दर दिख रही थी…पिंक कलर का सूट जंच रहा था और खुले बाल उसकी सुन्दरता को और बढ़ा रहे थे । उसके बाल काले, घने और लम्बे थे जब वह उन्हें अपनी पीठ पर फैला लेती तो बाल कमर तक आवारागर्दी करने लगते । उसने अपने ही बालों को ऐसी आवारागर्दी करते कई बार पकड़ा है । चेहरा गोल, गौर वर्ण लालिमा लिये हुए…आंखें तीरकमान का आकार लिये हुए । यौवन अंगडत्रार्ठ ले रहा था तो सौन्दर्य और खिल रहा था । सुनीता ने आईने में अपने एक एक अंग को निहारा । उसके कानों में विजय के स्वर अभी भी फूट रहे थे ‘‘आप बहुत सुंदर लग रहीं हैं…’’ उसका चेहरा लाजमय होता चला गया ।
सुनीता विजय को पहिले से जानती थी पर कोई विशेष नहीं । मुलाकात तो उसे कभी नहीं हुई थी एक दो बार आमने सामने जरूर हुए थे पर हलो-हाय भी कभी नहीं हुई थी । सुनीता प्राइवेट स्कूल में जाॅब कर रही थी । विजय पत्रकार थे । विजय की पहचान एक कवि के रूप में भी थी । इसलिये सुनीता अक्सर विजय का नाम सुनती रहती थी । पर कभी उनकी
कविताओं को सुनने का अवसर उसे नहीं मिला था । उस दिन जब विजय ने उसकी तारीफ की तो सुनीता को बहुत अच्छा लगा था । उसकी उत्सुकता उससे मिलने को बढ़ती जा रही थी । हांलकि विजय को भी लग रहा था कि सुनीता जब इतना भाषण देती है तो उसकी साहित्यक अभिरूचि होनी ही चाहिए और उसे अपनी टीम में रहना चाहिए । उसके पास नवोदित साहित्यकारों और पत्रकारों की अच्छी टीम थी वह पूरी ईमानदारी के साथ उन नवोदितों को साहित्य के बारे में और पत्रकारिता के बारे में बतलाता था और जहां आवश्यकता हो वहां मदद भी करता था । उसका मानना था कि पत्रकारों का काम केवल आलोचना करना ही नहीं होता रचनात्मक पत्रकारिता करना भी आवश्यक है । उसके इसी गुएा के कारण विजय सभी के बीच में सम्मान भी पाता था । विजय को सुनीता अच्छी लगी थी पर वह उसके सौन्दर्य से कम उसके भाषण से ज्यादा प्रभावित था । वह भी सुनीता से सम्पर्क करने का प्रयास कर रहा था । गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित एक कार्यक्रम में उसकी मुलाकात सुनीता से हो ही गई दोनों के चेहरे एक दूसरे को देखकर खिल उठे । उस दिन सुनीता खादी का सूट पहने थी और उसने बालों का जूड़ा बना लिया था । जिसका सौन्दर्य मनभावन होता है उसका रूप् कपड़ों का मोहताज नहीं होता । सुनीता के शरीर की बनावट ही ऐसी थी कि वह कोई भी परिधान पहन ले उसका सौन्दर्य खिल ही उठता था । यह अलग बात है कि पिंक कलर में उसका सौन्दर्य ज्यादा खिलता था पर इस परिधान में भी उसके आकर्षण में कोई कमी नहीं थी । देानों गेट पर ही टकरा गये थे
‘‘हाय…..पहचाना मुझे…’’ सुनीता ने ही प्रश्न किया था वह जानती थी कि विजय उसको देख भी लेगा तो उसके सामने आने का प्रयास नहीं करेगा ।
‘‘हाॅ….क्यों नहीं…आपका प्रेमचंद जी पर दिया भाषण अभी जस का तस याद है मुझे’’
‘‘ मुझे ऐसा लगता तो नहीं है …..वह कोई स्पेशल टाईप का भाषण था भी नहीं कि आप उसे याद रख सकें ’’ । हालंाकि वह जानती थी कि वह झूठ बोल रही है । उसे विजय का तारीफ करना अच्छा लगा भी पर महिलाओं की आदत जो होती है कि वे पूरा सच खुलवाये बगैर किसी बात पर भरोसा करती ही नहीं हैं ।
‘‘अब आप ठहरी बड़ी वक्ता आपको उसमें कोई नई बात नहीं लगती होगी मेरे जैसे छोटे व्यक्तियों के लिये तो उस भाषण में बहुत कुछ था’’ विजय शायद महिलाओं के मनोविज्ञान से परिचित था ।
‘‘ओह….वैसे आपे उस दिन मेरे भाषण की कम मेरी तारीफ ज्यादा की थी’’ सुनीता ने उसे छेड़ा ।
‘‘वो तो सत्य था उससे मैं मुकर नहीं सकता….वैसे आप नाराज भले ही हो जायें आज भी आप बहुत खूबसूरत लग रहीं हैं’’ । विजय ने निगाह को सुनीता के ऊपर गढ़ा लिया था
‘‘अच्छा……ऐसा लग रहा है कि मैं जबरन आपसे यह कहलवाया हो’’ । सुनीता ने जोर से ठहाका लगाया ।
‘‘किसी से प्रमाणित करवाऊंगा क्या…..’’ । विजय भी मुस्कुरा पड़ा ।
सुनीता भीड़ में शामिल हो चुकी भी पर विजय को तो मंच पर जाना था । इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि वह ही था । कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा । सुनीता के साथ आई हुई सहेलियों ने उसे कई बार बोला भी ‘‘चलो बहुत देर हो गई है घर में पापा नाराज होगें’’ पर सुनीता नहीं मानी ‘‘बस थोड़ी देर और अभी चलते हैं’’ कहते हुए सभी को बिठाले रखा । उसे विजय का भाषण सुनना था । आयोजकों ने श्रोता बैठे रहें इस मनोभाव से मुख्यअतिथि का उद्बोधन आखिर में रखा था । उसे विजय का भाषण बहुत अच्छा लगा था । कितनी सारी जानकारियां उसने एक ही सांस में दे दी थी । बहुत अच्छी याददाश्त है उसकी । वह वाकई बहुत प्रभावित हुई । वह विजय से बात करना चाहती थी इसलिये वह इंतजार करती रही विजय के मंच से उतरने का । विजय को इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी
‘‘आज आपने बहुत भाषण दिया है……’’ उसने बेझिझक विजय को बोल दिया था ।
‘‘अच्छा……वो तो इसलिये कि आज आपने भाषण नहीं दिया वरना मेरा भाषण उस दिन की तरह दब जाता ’’
‘‘आपको उस दिन के मेरा भाषण अच्छा होने की पीड़ा अभी तक है….’’
‘‘पीड़ा….नहीं…..’’ विजय को लगा शायद उसने कुछ गलत बोल दिया है
‘‘छोड़ो……पर इतनी सारी जानकारियां…..वाकई बहुत अद्भुत था….’’
‘‘ओह….धन्यवाद….पर मुझे लगा था कि आप चलीं गई होगीं…..’’
‘‘चली जाती….यदि आपका भाषण पहिले हो गया होता….मैं तो केवल आपके भाषण सुनने के लिये बैठी रही ’’ सुनीता ने उसकी आंख में गहराई से झांका था शायद वह उसकी गहराई को नापने का प्रयास कर रही थी ।
‘‘अच्छा आपको वाकई अच्छा लगा……’’
‘‘और क्या मैं झूठी तारीफ कर रही हूॅ……’’
सुनीता विजय के साथ बात करते हुए अनौपचारिक होती जा रही थी ।
‘‘जी….धन्यवाद….यदि कोई पास में मिठाई की दुकान खुली होती तो आपको मिठाई खिला देता…’’
‘‘‘‘अच्छा…..मतलब आपको मेरी बातों में मिठास दिखाई नहीं दी…..’’ इस बार तो सुनीता ने उसे जानबूझकर छेड़ा था । विजय को इसकी बल्किुल उम्मीद नहीं थी
‘‘वो….मेरा…मतलब……’’
‘‘हाॅ….हाॅ…..रहने दो…..मैं समझ गई…’’ सुनीता को मजा आने लगा था ।
विजय मौन रहा आया
‘‘आप मुझे आटोग्राफ देगंे क्या….’’ सुनीता ने अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया था ।
‘जी……………..’’ उसके माथे पर पसीना की बूंदे झलझला आई थीं ।
‘‘अपना फोन नम्बर भी लिख देना ।’’
विजय ने कांपते हाथों से उसकी हथेली पर अपना फोन नंबर लिखा था ।
सुनीता वाकई विजय से प्रभावित थी । उसने गाहे-बेगाहे उससे फोन पर बात करनी शुरू कर दी थी । फोन पर बात करने का सिलसिला बढ़ता चला गया । कई बार तो घंटों फोन पर बात होती रहती । बातों में ही उसने विजय को भलीभांति समझ लिया था । उसे लगा था कि उसने अपने लिए सही मित्र का चुनाव किया है । आमने-सामने मुलाकात एकाण बार ही हो पाई थी ‘‘अरे आप…..’’
‘‘जी……’’ । बस इससे ज्यादा कुछ नहीं । छोटा शहर था इसलिये अंजाने भय से दोनों सतर्कता बरतते थे ।
‘‘कभी आप मेरे घ आईये…..माॅ से मुलाकात कर लीजिए…..’’
‘‘जी…..अवश्य…….’’
प्र विजय उसके घर कभी नहीं आया । वैसे उसने भी उस पर घर आने के लिये ज्यादा दबाब नहीं डाला । वह लोगों की मानसिकता से अच्छी तरह परिचित थी ।
कोरोना का संक्रमण तेजी से फैल रहा था । शासन ने लाॅकडाउन घोषित कर दिया था । उसके स्कूल में परीक्षायें चल रही थी पर अचानक लाॅकडाउन लग जाने से स्कूल ही बंद हो गए थे और परीक्षाऐं स्थिगित कर दी गई थीं । वह भी अपने घर में कैद होकर रह गई थी । जिस दिन लाॅकडाउन लगा उसके दूसरे दिन ही विजय का फोन आया था
‘‘सुनीता जी…लाॅकडाउन…..लग गया है…..आप घर से बाहर नहीं निकलना…..’’ उसके स्वर में उसके लिए चिंता जाहिर हो रही थी ।
‘‘जी…..यह कब तक रहेगा…..’’
‘‘कुछ कह नहीं सकते….वैसे तो अभी 21 दिनों के लिये है हो सकता है कि और बढ़ा दिया जाये…’’
‘‘ओह………इतने दिन घर में ही कैद रहना होगा…’’ उसके स्वर में निराशा के भाव थे ।
‘‘हां ……और सावधानी भी रखना पड़ेगी…..कोरोना बहुत फैल रहा है…..’’
‘‘ठीक है…..आप भी अपना ध्यान रखना…..’’
सुनीता बहुत भयभीत हो गई थी । टी.व्ही. खोलकर बैठो तो भी कोरोना को लेकर डरावनी खबरें आ रहीं थी । लाॅकडाउन के कारण सारा इलाका सुनसान रहता था केवल पुलिस की और एम्बुलेंस की गाड़ियां हार्न बजाती निकलती रहती थी । ये हार्न भी अब सभी को डराने का काम कर रहे थे । विजय का फिर फोन नहीं आया था । उसका ही मन होता था कि वह उसे फोन कर ले और बहुत देर तक बात करती रहे । पर वह संकोच के कारण फोन नहीं लगा रही थी । वह जानती थी कि विजय घर में बैठनें वालों में से नहीं है वह जरूर लाॅकडाउन में भी घूम ही रहा होगा । वह विजय से बहुत प्रभावित थी । विजय की पत्रकारिता करने का ढंग बिल्कुल अलग था । वह समाज को लाभ पहुंचें इसके लिये पत्रकारिता करता था । वह उसके लिखे समाचारों को भी पढ़ती थी उसके एक एक शब्द प्रभावशाली होते थे ।
लाॅकडाउन 21 दिन के बाद और आगे बढ़ा दिया गया था । शहर में कोरोना के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी । एक दिन विजय ने ही उसे फोन किया था
‘‘कैसी हो सुनीता…….’’
‘‘बिल्कुल अच्छी नहीं……’’ वह उब चुकी थी । अब उसका एक एक पल मुश्किल से व्यतीत हो रहा था । वैसे उसे विजय पर नाराजी भी थी इतने दिनों बाद फोन किया था उसने ।
‘‘अरे…..क्या हुआ…..तुम स्वस्थ्य तो हो….और घर में सभी स्वस्थ्य हैं…..’’
‘‘बीमारी से स्वस्थ्य हैं……पर मन से नहीं……’’
‘‘ओह…..तुमने तो मुझे घबरा ही दिया था…’’ । सुनीता को उसकी यह चिन्ता अच्छी लगी ।
‘‘वैसे तुमने इतने दिनों बाद फोन क्यों किया….’’ । अबकी बार नारजगी भरी थी सुनीता की बातों में
‘‘वो……दरअसल….मुझे संकोच होता है…फोन लगाने…में वैसे भी हर बार फोन आपने ही लगाया है तो मैं आपके ही फोन की रास्ता देखता रहा…..’’
विजय ने सच ही बोला था । हर बार वह ही फोन लगाती थी और वो बातें करते थे पर इस बार वह जाने क्यों विजय के फोन की प्रतीक्षा कर रही थी । वह खामोश हो गई
‘‘आपको किसी चीज की आवश्यकता हो तो बेहिचक मुझे बता देना….’’
‘‘ये बार…बार आप..आप क्यों कहते हो…….तुमको मेरा नाम नहीं मालूम क्या…’’
सुनीता झुंझला पड़ी । वास्तव में तो उसका मन हो रहा था कि वह विजय से लड़ाई करे । वह बहुत देर तक विजय से बात करते रहना चाह रही थी ।
‘‘जी…..वो…..’’ विजय चुप हो गया ।
‘‘चलो ठीक है बात नहीं करनी तो फोन रखती हूॅ……’’ सुनीता चाह रही थी कि विजय कहे नहीं अभी तो ढेर सारी बातें करना है फोन न रखो पर विजय ने ऐसा नहीं बोला
‘‘जी…..ठीक है…..मेरी जरूरत पड़े तो फोन जरूर करना…’’ विजय ने वाकई फोन रख दिया ।
सुनीता और झुंझला पड़ी । फिर विजय से बात नहीं हुई ।
आज आरती का फोन आया था उसने बताया था कि विजय को कोरोना हो गया है । वह घबरा गई ‘‘अरे ऐसे कैसे हो सकता है…..नहीं गलत जानकारी है’’
‘‘अरे जब हुआ ही है तो हुआ है……तुमको लगता है कि गलत जानकारी है तो विजय को फोन लगाकर पूछ लो…..’’ कहते हुए आरती ने फोन काट दिया । सुनीता बहुत देर तक हाथ में रिसीवर पकड़े यूं ही खड़ी रही चुपचाप । उसके माथे पर चिन्ता की लकीरें दिखाई देने लगीं थीं । सुनीता को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे….उसे वाकई विजय को लेकर चिन्ता थी । उसने आरती को ही फोन लगाया ‘‘आरती…..क्या सच में विजय को कोरोना हो गया है….’’
‘‘हाॅ……’’
‘‘अरे यार….मैं उससे मिलना चाहती हूॅ…….’’
‘‘तू मिलना चाहती है…..विजय से…..’’ । दरअसल सुनीता ने उसके और विजय के संबंधों को लेकर कभी आरती से बात नहीं की थी इसलिये आरती को सुनीता की बात सुनकर आश्चर्य हुआ ।
‘‘वो दरअसल क्या है….कि मैं और विजय बहुत अच्छे मित्र हैं…..केवल मित्र…..’’
‘‘अच्छा…..मित्र…..’’ आरती ने चिढ़ाने के लिये रिपीट किया
‘‘हाॅ केवल मित्र…….’’
‘‘तो……..’’
‘‘तो मित्र जब कष्ट में हो तो उसकी मदद करनी चाहिये न……’’
‘‘अच्छा……अच्छा……तुम जानती हो न… कि तुम्हारा पुरूष मित्र कोरोना पाजेटिव है…..’’
‘‘हां…..तो क्या हुआ…..हम दूर से उससे मिल लेगें….’’
‘‘अरे…..ऐसे कैसे मिल लेगें…….कोरोना मरीजों को किसी से मिलने नहीं दिया जाता ….’’
‘‘तुम मेरे साथ तो चलों….हम कोई न कोई जुगाड़ कर ही लेंगे…’’
‘‘नहीं बाबा…….मैं तो नहीं जा सकती…..ऐसी रिस्क लेना……बेवकूफी है जो मैं नहीं करूंगी’’
‘‘अरे चल न….देख तेरे बिना मैं कहीं जाती भी नहीं हूॅ……’’ सुनीता चाह रही थी कि आरती हां कह दे । उसके साथ जाना ज्यादा बेहतर है पर आरती तैयार ही नहीं हो रही थी ।
‘‘देखो सुनीता तुम कहीं और चलने का बोलो तो मैं चल भी सकती हॅू पर कोविड अस्पताल बिल्कुल नहीं…..और मैं तो तुम से भी कहती हूॅ कि मित्रता अपनी जगह है….पर कोरोना मरीज के सम्पर्क में आना केवल पागलपन है…..तुम भी मत जाओ…अरे ऐसे मरीजों के निकट संबंधी नहीं जाते फिर तुम क्यों जाना चाह रहीं हो……वाकई पागल हो या तुम……’’
आरती ने साफ इंकार कर दिया था । सुनीता को आरती से ऐसी उम्म्ीद नहीं थी । आरती हमेशा उसकी मदद करती रही है । बाजार भी जाना हो तो न चाहते हुए वह उसके साथ बाजार चली जाती । इसी भरोसे पर तो उसने आज आरती से आग्रह किया था पर उसने तो साफ मना कर दिया । सुनीता को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे । उसे तो हर हाल में विजय से मिलना ही है भले ही उसे अकेले जाना पड़े ।
सुनीता रातभर बैचेन रही । वह विजय से मिलना के लिये बेताब थी पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे उससे मिले । यह तो वह जानती थी कि उसे अस्पताल में अंदर जाने नहीं दिया जायेगा पर बाहर से ही विजय से मिल ले यह उम्मीद उसे जरूर थी । आरती ने तो उसके साथ जाने से साफ मना कर दिया था । वह अकेले ही घर से निकल गई थी ‘‘माॅ मुझे कुछ जरूरी काम है अभी आती हूॅ’’
‘‘ऐसा अचानक क्या काम आ गया…’’ माॅ को उसकी बैचेनी कुछ कुछ समझ में आ रही थी ।
‘‘बस आती हूॅ अभी…….’’ वह ज्यादा जबाब देने की स्थिति में नहीं थी ।
सुनीता को पैदल ही जाना पड़ा आटो चलने तो बंद थ । अस्पताल बहुत दूर था । वह वहां पहुंचते-पहुंचते बुरी तरह थक चुकी थी । गेट पर बैठे व्यक्ति ने उसे वहीं रोक लिया
‘‘आप कौन…….’’
‘‘मुझे पत्रकार विजय से मिलना है…….’’
‘‘वो क्या यहां आये हुए हैं…….’’
‘‘वो यहां भरती हैं……..’’
‘‘अच्छा….पर मरीज से आप नहीं मिल सकतीं……’’
‘‘देखिए…..मैं तो मिल कर ही यहां से जाउंगी……’’ उसके आवाज में बजनदारी थी ।
वो व्यक्ति जब तक सुनीता को रोक पाता सुनीता गेट के अंदर प्रवेश कर चुकी थी ।
उसने किसी से पूछने की बजाए जोर से आवाज लगाई
‘‘विजय……विजय…….’’
विजय डाक्टर के कमरे में था । उसने आश्चर्य के साथ अपने पुकारे जाने को सुना । वह दौडत़ा हुआ सा बाहर निकला । सुनीता पर नजर जाते ही उसका आश्चर्य और बढ़ गया ।
‘‘अरे आप……क्या हुआ……’’ । विजय को लग रहा था कि कहीं सुनीता भी तो उसके जैसे मरीज बन कर न आई हो ।
‘‘मैं तुमसे मिलने ही आई हूॅ…….’’ सुनीता की हिचक खत्म हो चुकी थी ।
‘‘मुझसे मिलने……..’’ विजय के चेहरे पर आश्चर्य के भाव और बढ़ गए थे ।
‘‘जी…..हां…..मुझे कल ही पता चला कि आप भी…..बीमार हो गये हैं…’’
‘‘हां….क्या करूं…….इस कोरोना ने मुझे भी जकड़ लिया है….’’
‘‘ःअब कैसे हैं आप……..’’
‘‘ठीक महसूस कर रहा हूॅ……पर आप यहां क्यों आई…..जानती नहीं कोरोना एक दूसरे से फैलता है’’
‘‘जानती हूॅ…..पर क्या करूं….आपकी तबियत खराब होने की खबर से मैं परेशान हो गई थी’’
सुनीता की आंखों से अब आंसू बह निकले थे जो विजय से छिपे न रह सके
‘‘आप रोयें नहीं…..मैं तो अब ठीक सा महसूस कर रहा हूॅ’’
सुनीता का मन हो रहा था कि वह विजय के गले से लग जाये । वह एकटक विजय को देखती रही खामोशी के साथ ।
‘‘आप यहां से चली जायें…….फोन पर हम बात कर लेगें…..’8
‘‘नहीं…..अभी कुछ देर और रूकना है मुझे…’’
विजय कुछ नहीं बोला । दोनों खामोशी के साथ एक दूसरे को देखते रहे बहुत देर तक ।
‘‘देखो सुनीता…..अब तुम लौट जाओ……….’’
‘‘जी……………….’’ । सुनीता ने महसूस कर लिय था कि बहुत सारी नजरें उन्हें देख रही हैं ।
‘‘सुनो…..सुनीता……मैं डाक्टर बोहरे जी को फोन कर देता हूॅ तुम अपना कोरोना टेस्ट जरूर कर लेना…..घर जाने के पहिले……’’
सुनीता कुछ नहीं बोली । उसने एक बार फिर विजय को भर नजरों से देखा और थके कदमों से वापिस हो गई ।
सुनीता की कोरोना रिपोर्ट पाजिटिव आई थी । वह संक्रमित हो चुकी थी । पर उसे अफसोस नही था । विजय उसके प्यार को समझ चुका है । अब जब देानों इस बीमारी से मुक्त होगें तो फिर दो नहीं एक हो ही जायेगें । सुनीता ने उत्साह के साथ कोविड अस्पताल में अपना इलाज कराना शुरू कर दिया था ।

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
महाराणा प्रताप वार्ड, गाडरवारा

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