आनलाइन पढ़ाई के लिये मोबाइल

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                                                                    वैसे तो रावण का पुतला बनाने में उसने अपने पैर में पहनी चप्पल तो बाहर ही उतार दी थीं अब वह मेरे सामने हाथ जोड़े खड़ा था उसके चेहरे पर कृतज्ञता के भाव थे । उसकी दयनीय हालत को कोई भी पढ़ सकता था । मुझे उसके यूं मेरी दुकान तक चले आने की कोई उम्मीद नहीं थी । मैं तो खामोशी के साथ बैठा सोच रहा था । दोपहर व्यतीत हो जाने के बाद भी दुकान पर एक भी ग्राहक नहीं आया था । अपने पैसों से ही दो बार चाय पी चुका था । लांकडाउन के बाद दुकान को खुलते हुए एक सप्ताह बीत चुका था पर दुकान में ग्राहक आ ही नहीं रे थे । दिन भर अकेला फालतू बैठा रहता और सोचता रहता । कर्मचारी अभी तक दुकान पर नहीं आ रहे थे ‘‘वैसे अच्छा ही है अभी दुकान पर ग्राहकी है नहीं ऐसे में कर्मचारी आ गए तो उनको वेतन कहां से दूंगा’’ सोच लेता पर उनकी चिन्ता भी बनी रहती । मैंने तो अपनी जमां पूंजी के बल पर लाकडाउन का  समय काट लिया पर उन्होने कैसे काटा होगा उनके पास तो इतनी जमा पूंजी होती ही नही है कि वे एक सप्ताह भी काट लें ‘‘सेठ जी कुछ पैसे दे दो.....किराना खत्म हो गया है’’ महिना पूरा बीतता ही नहीं कि उनकी पैसों की मांग चालू हो जाती । वह भी उन्हें पैसे दे देता उसने गरीबी के दिन देखें हैं इसलिये वह उनकी मजबूरी को अच्छी तरह जानता भी है । उसने तो कभी कर्मचारियों के नागा के पैसे भी नहीं काटे । इसलिये ही तो कर्मचारी भी उसकी दुकान पर कर्मचारी बनकर नहीं बल्कि जबाबदार व्यक्ति बनकर काम करते थे । वो उनके भरोसे दुकान छोड़ कर चला भी जाए तो एक सामान या पैसे यहां से वहां न होते । कर्मचारियों के बल पर ही तो उसने छोटी सी दुकान को बड़ा कर लिया था । लांकडाउन में भी जब भी किसी कर्मचारी ने पैसे मांगे उसने उन्हें दिये हालांकि उन्होने उन्हें ज्यादा परेशान नहीं किया ‘‘हम समझते हैं सेठ जी कि आपके पास भी पैसे नहीं होंगे’’ । पैसे होंगे कैसे पूरा तीन महिना लांकडाउन लगा रहा और उसकी दुकान बंद रही । साथ ही यकायक दुकान बंद कर देने से दुकान में रखा जो सामान खराब हुआ वह अलग । लांकडाउन तो अचानक लगा था किसी को रत्ती भर भी उम्मीद नहीं थी कि लांकडाउन लग जायेगा हां यह तो मालूम था कि कोरोना फैल रहा है इसलिये उसने खुद भी और अपने सारे कर्मचारियों को मास्क और हाथों में दास्ताने पहनाना शुरू कर दिया था । लांकडाउन लगा तो जैसे आसमान टूट गया । वो तो गनीमत है कि उस दिन वह कुछ पैसे अपनी जेब में डालकर घर ले आया था । वैसे तो उसकी पत्नी ज्यादा समझदार निकली उसने उसे बता दिया था कि उसके पास पैसे हैं इसलिये वो चिन्ता न करे । पत्नी को ‘लक्ष्मी’ कहा ही जाता है । उसने लांकडाउन में घर चलाने में बहुत मदद की ।
                   वह हाथ जोड़े खड़ा था । उम्र कोई दस ग्यारह साल की होगी । उस दिन मोबाइल की दुकान पर मिल गया था । उस दुकान पर वह तो यूं ही बैठा था । क्या करता लांकडाउन खुलने के बाद उसकी दुकान तो चल नहीं रही थी इसलिये वह कभी भी मोबाइल की दुकान पर आकर बैठ जाता वो उसका मित्र था । मोाबइल की दुकान पर ग्राहकी बनी हुई थी । कोई रिचार्ज कराने आता तो काई मोबाल खरीदने । मोबाइल के बिना अब किसी का काम चलता कहां है । यह भी उसी दुकान पर खड़ा मोबाइल देख रहा था । उसके हाथों में कुछ रूपये थे । रूपये कम थे इसलिये वह कम कीमत का मोबाइल खरीदना चाह रहा था । पर उसे वह मिल नहीं रहा था । उसके चेहरे पर उदासी के भाव बढ़ते जा रहे थे । उसने सरसरी निगाह से उसे देखा और मित्र से बातें करने लगा । ‘‘सेठ जी मेरे पास केवल दो सौ रूपये हैं.....कोई ऐसा मोबाइल दिखाओ न कि दो सौ रूपये में आ जाये...’’ । उसे दुकान का कर्मचारी महंगे मोबाइल दिखा रहा था ।

‘‘इतने रूपये में कोई मोबाइल नहीं आता…….’’ । मित्र के चेहरे पर नाराजगी के भाव आ गये थे ।
‘‘देखो सेठ जी यह रखे तो दो सौ रूपये है और मांग रहा है एनराइड मोबाइल……’’ । दुकान के कर्मचारी की आवाज में तिरस्कार था ।
‘‘मेरे पास तो इतने ही पैसे हैं सेठ जी…..मुझे मोबाइल की बहुत जरूरत है आप दे दो न….कोई पुराना मोबाइल हो तो वो ही दे दो…’’ चेहरे पर मायूसी के भाव थे ।
‘‘इतने में नहीं आता…तुम भागो यहां से…..बेकार में मूड खराब मत करो’’ मित्र वाकई झुंझला पड़ा था । लांकडाउन ने सभी के मन में झुंझलाहट भर दी थी । हर कोई चलती दुकान के बंद हो जाने और फिर दुकान न चलने के कारण झुंझलाहट से भरे दिखाई दे रहे थे । लाकडाउन खुल जाने के बाद भी दुकानों में ग्राहकों की भीड़ कहीं दिखाई नहीं दे रही थी । हर चेहरे पर एक अजीब सी उदासी साफ दिखाई दे जाती । लोगा बाजार आते और बहुत जरूरी सामान खरीदते और चुपचाप अपने घर चले जाते । कोरोना को खौफ और पैसे न होने की वेदना अभी खत्म नहीं हुई थी । आम आदमी अपने आपको टूटा सा महसूस कर रहा था । मित्र ने उस लड़के को चले जाने का कह दिया था पर वो अभी भी वहीं खड़ा मोबाइलों को उत्सुकता से देख रहा था ।
‘‘तुम से कहा न कि तुम यहां से चले जाओ…….जब पैसे हो तो आ जाना….’’ । मित्र ने गुस्से से उसे घूरा । वो सहम गया पर अपनी जगह से हिला भी नहीं ।
‘‘तू जाता है कि नहीं……जरा डंडा उठाना……’’ मित्र. कुछ ज्यादा ही गुस्से में आ गया था ।
‘‘सेठ जी मुझे मोबाइल दे दो न……इतने पैसे ले लो…बाकी के पैसे में बाद में दे दूंगा…’’
व्ह रूआंसा हो गया था । मुझे आश्चर्य हो रहा था कि आखिर उसे मोबाइल की ऐसी कैसी जरूरत आन पड़़ी है । वह खेलने के लिये मोबाइल ले रहा हो ऐसा तो बिल्कुल नहीं लग रहा था ।
‘‘तुमको मोबाइल क्यों चाहिये बेटा……’’ मै चुप न रह सका ।
मेरी आवाज में सम्मान पाकर उसकी आंखों में चमक आ गई
‘‘सर मेरे स्कूल में आनलाइन क्लास चल रही हैं…..मेम रोज’रोज कहती हैं कि मोबाइल ले लो यदि नहीं लिया तो वे स्कूल से नाम काट देंगीं ……..मैं पढ़ना चाहता हूॅ सर….’’ उसने बहुत रोकने की कोशिश की थी आंसुओ को बहने से पर वे नहीं रूके । बह निकले । उसने बपनी शर्ट की बांहों से गालों तक लुढ़क आए आंसुओं को पौछा
‘‘मेरी माॅ के पास पैसे नहीं हें सर उन्होने किसी से मांग कर मुझे इतने ही पैसे दिये हैं…’’ । उसके पौछ लेने के बाद भी उसके आंसु बह ही रहे थे ।
‘‘सर आप सेठ जी कहो न कि वो मुझे मोबाइल दे दें…..मैं उनके बाकी के पैसे लौटा दूंगा…..नहीं तो मैं इनके यहां काम कर के चुका दूंगा……मुझे मोबाइल की बहुत जरूरत है…..’’
उसने अपने हाथ जेाड़ लिये थे ।
‘‘नहीं…..नहीं…..तुम यहां से चले जाओ….और पैसे जोड़ लो फिर ले लेना…’’ मेरा मित्र निर्दयी हो चुका था ।
‘‘माॅ का काम तो वैसे भी छूट गया है और वो बीमार भी हैं……और पैसे कैसे आयेगें….मेम मुझे स्कूल से निकाल देगीं…..मैं आपके यहां काम कर लूंगा…..आप ….’’
वह पूरा वाक्य नहीं बोल पाया । उसका गला रूंध गया था ।
मैं उस लड़के के दर्द को समझ रहा था । उसके बोलने में ईमानदारी थी ।
‘‘किस स्कूल में पढ़ते हो……’’
‘‘शासकी आदर्श माध्यमिक शाला में …आठवीं में आ गया हूॅ….मेरी ग्रेड भी बहुत अच्छी आई है…’’
उसने उत्साह के साथ रूंधे गले से बताया । मेरे मन में बहुत कुछ चल रहा था । मैंने अपने मित्र की ओर देखा । वो अभी भी उसे खूंखार निगाहों से देख रहा था
‘‘अच्छा एक काम करो तुम मोबाइल पसंद कर लो……’’
अबकी बार मित्र ने मुझे कड़क निगाहों से देखा ।
‘‘वो सर मैं तो कुछ जानता ही नहीं हूॅ…..मुझे सस्ता पर ऐसा कि मेरी आनलाइल पढ़ाई हो जाये….आप ही देख दो न……’’ । उसकी ईमानदारी से मैं प्रभावित होता जा रहा था ।
मैंने एक मोबाइल पसंद कर अपने मित्र की ओर देखा
‘‘अरे यह मंहगा है……वो वाला देखो सस्ता भी है और एनराइड भी है…..’’
‘‘नहीं यार….सस्ता मोबाइल लेगा तो जल्दी खराब हो जायेगा….ये फिर परेशान होगा..तुम तो इसकी मदद करोगे नहीं……इसको तो एक बार ही लेना है इसलिये अच्छा वाला मोाबइल ही दिखाओ…’’
‘‘पर इसके पास पैसे हैं नहीं…..मंहगा मोबाइल दिखाऊं…’’ । मित्र ने मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरा । मेरे मन में जो चल रहा था वो मैं व्यक्त नहीं करना चाह रहा था पर मैं समझ गया कि यदि मैं उसे व्यक्त नहीं करूंगा तो मेरा मित्र कोई खराब सा मोबाइल टिका देगा
‘‘देखो मित्र……मोबाइल के पैसे मैं देने वाला हॅ……इसलिये तुम चिन्ता किए बगैर अच्छा मोबाइल दिखाओ……..गारंटी वाला ताकि ये बाद में परेशान न हो …’’
उसने मेरी ओर आश्चर्य के भाव से देखा । उस लड़के को भी आश्चर्य हुआ ।
‘‘हां…..मैं दू रहा हूॅ न पैसे…..तो फिर तुम चिन्ता क्यों कर रहे हो…’’
‘‘अच्छा तो बीस हजार वाला दिखा दूं…’’ वह झंुझला गया था ।
यदि तेरे पास इससे बेहतर कोई पीस नहीं है तो वह ही दिखा दे…’’ । मैं अब दृढ़संकल्पित हो चुका था । उसने मेरी ओर निगाह दौड़ाई फिर शोकेस खोलकर एक नया पीस निकाला
‘‘ये देख लो….इसमें सारे फीचर भी हैं……और गारंटी भी तीन साल की है….मेरे पास नमूना के लिये आया था इसलिये सस्ता आया था मैं उसी रेट में दे देता हूॅ…’’ । उसकी निष्ठुरता खत्म हो गई थी
‘‘कितने का है……’’
‘‘पहले तू पसंद कर ले…..’’
‘‘तुमने दिया है तो फिर मुझे क्यों पसंद करना….आज तक मैं तेरी ही पंसद का मोबाइल लेता रहा हूॅ कभी घाटे में नहीं रहा है इसलिये तुम तो केवल दाम बताओ……’’
मेेरे मित्र के चेहरे के भाव बदल चुके थे । अब वह व्यापारी नहीं था
‘‘देख भाई यह पीस मुझे यहां आकर छैःहजार में पड़ा है बाकी तू जितने देगा मैं ले लूंगा…..’’
‘‘जितेन दूंगा का क्या मतलब…तू जितने बोलेगा उतने ही दूंगा…..मैं जानता हूॅ भाई कि तुम मुझसे ज्यादा पैसे कभी नहीं लेते…..छैः हजार….चलो डन….’’
‘‘नहीं तुम पांच हजार ही दो……’’
‘‘अब पांच हजार क्यों……’’
‘‘अरे यार तू इस बालक को मोबाइल दान कर रहा है तो थोड़ बहुत मेरा भी हक बनता है’’ कहते हुए उसने उसमें नई सिम भी डाल दीे और बैलेंस भी डाल कर बालक को पैकेट थमा दिया ।
‘‘वैसे तो उसने उस लड़के से नाम भी नहीं पूछा था और न ही पता पूछा था । उसे जरूरत भी नहीं थी । उसे मोबाइल के पैकेट हाथ में लेते हुए बालक के चेहरे पाए आये आनंद के भाव देखकर असीम संतोष का अनुभव हुआ था । उसकी लाकडाउन की सारी थकान गायब हो गई थी । आज एकाएक उस बालक को अपने सामने खड़ा देख वह चैंक गया था । उसने तो उसे कुछ बताया ही नहीं था फिर वह कैसे यहां आ गया । एक सीधा सा प्रश्न कौंध गया । वह लड़का अभी भी उसके सामने हाथ जोड़े खड़ा था । आते ही उसने सबसे पहिले उसके पैर पड़े फिर एक ओर सरक कर खड़ा गया ।
‘‘सर जी….मैं…वो उस दिन…..’’ वह बोलने में संकोच कर रहा था ।
‘‘अच्छा….अच्छा…..तुम यहां कैसे……’’
‘‘वो सर जी उस दिन मैं मोबाइल के चक्कर में इतने उत्साह में था कि आपसे थैंक्यू तक नहीं बोल पाया…….आपका नाम और पता तो मुझे मालूम नहीं था इसलिये वो मोबाइल वाले अंकल के पास जाना पड़ा उन्होने ही आपका पता बताया था….’’
‘‘ओह….पर इसमें थैंक्यू क्या बात थी जो तुम इतना परेशान हुए…’’
‘‘सर….आपने मेरी इतनी मदद की….मैं तो कभी मोबाइल ले ही नहीं पाता…’’
‘‘अच्छा…..मोबाइल ठीक चल रहा है…..कोई परेशानी हो तो वो ही अंकल के पास चले जाना..’’
‘‘जी सर….उन्होने मुझसे बोल दिया है कि जब भी नेट खत्म हो जाए तो उनके पास आ जाउं वो मेरा नेट ऐसे ही डाल देंगे…..’’ वह सकुचा रहा था ।
‘‘बहुत अच्छा…..अब पढ़ाई चल रही है न कि गेम खेलते हो…’’
‘‘अरे नहीं …सर ….गेम-वेम मैं नहीं खेलता केवल मोबाइल में पढ़ता हूॅ…बहुत सारी चीजें हैं उसमें वो गूगल पर जाकर सर्च कर लेता हूॅ और पढ़ता रहता हूॅ…..’’ उत्साह था उसके बोलने में ।
‘‘बहुत बढ़िया ऐसे ही पढ़ाई करो….कभी किसी चीज की जरूरत हो तो बताना…’’
‘‘जी सर जी….मैं दुकान में आपकी मदद करने आ जाया करूं…..’’
‘‘क्यों……मुझे आवश्यकता नहीं है…’’
‘‘सर जी आपने बहुत मंहगा मोबाइल दिलाया है…मैं आपका कर्ज चुकाना चाहता हूॅ…इसलिये मैं चाहता हूॅ कि आपकी दुकान पर कुछ काम कर दिया करूं…’’
‘‘अरे नहीं….तुम केवल पढ़ाई करो…..बाकी सब भूल जाओ….’’
‘‘नहीं सर….मुझे अच्छा नहीं लग रहा है…रोज थोड़ी बहुत देर काम दिया करूंगा…..’’
‘‘नहीं….न …मुझे कोई आवश्यकता नहीं हैं….कर्मचारी हैं वे कर लेते हैं…’’
‘‘प्लीज सर…..’’
‘‘मैंने बोला न कि नहीं….मतलब नहीं….वैसे भी अभी दुकान में कोई काम है भी नहीं एक गा्रहक नहीं आ रहा है….मैं भी दिनभर फालतू ही बैठा रहता हूॅ……’’ मेरी आवाज कड़क हो गई थी । वह सहम गया । मुझे अहसास हुआ कि मैंने कुछ कड़क बोल दिया है ।
‘‘सुनो….मेरे पैसे चुकाना चाहते हो न…..तो एक काम करना….तुम हर साल फस्र्ट आना वो रिजल्ट मुझे दिखा देना मैं समझ जाऊंगा कि मेरे पैसे की किस्त तुमने चुका दी है…..और जब तुम पढ़ लिखकर काम करने लगोगे तो मेरी पूरी किस्त अपने आप चुक जायेगी.ठीक है न…अब तुम जाओ…’’
उसने कुछ नहीं बोला । लौटते समय उसने फिर पैर पड़े और थके कदमों से दुकान के बाहर निकल गया । उसके जाने के बाद दुकान पर ऐसी ग्राहकी आई कि मैं कई दिनों तक फुरसत ही नहीं हो पाया ।
. कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
जिला-नरसिंहपुर म.प्र.

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।