चन्दा जी

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चन्दा जी बने हैं कान्हा,
तारे बने हैं गोपियां।
नभ में देखो झूम रही हैं,
मेघों की प्यारी टोलियां।

चकोर रूप में राधिका ,
सोचे ये बारम्बार ।
शायद हो जाए मिलन ,
चन्दा से इसबार।

रास रचावें गगन में देखो,
आज चन्दा और तारे।
देख मनोरम दृश्य मगन हैं,
नर और नारी सारे।

चन्दा के सुंदर मुखड़े की,
लेती पवन बलइयां।
शर्माए घूंघट में देखो,
चन्दा की आज चंदनियां।

मेघों से बरसे अमृत रस,
झरने गीत सुनाएं ,
उपवन में देखो पुष्प भी सारे,
मन्द मन्द मुस्काएं।

झूम रही है धरा भी देखो,
मस्त मगन हो आज।
शीतलता ने खोल दिए हैं,
अपने सारे राज।

सपना बैठी करे कामना,
ये शुभघड़ी नित आए।
सबके मन की कामना ,
शीघ्र पूर्ण हो जाए।

रचना
सपना ( स० अ ०)
जनपद औरैया

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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