ये जवानी क्या है तुम्हारी

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ये जवानी क्या है तुम्हारी,
उमड़ता हुआ है समन्दर।
मुझे डर लगता है इससे
कहीं डुबो न ले ये अन्दर।।

ये आंखे क्या है तुम्हारी,
नीली झील से भी गहरी।
नौका विहार करे इसमें,
जो दुनिया देखे हमें सारी।।

ये आवाज क्या है तुम्हारी,
कोयल से ज्यादा है प्यारी।
जो सुन लेता है इसको,
हार जाता है बाजी सारी।।

ये चेहरा क्या है तुम्हारा,
जो गुलाब से ज्यादा गुलाबी।
इसे देखकर ऐसा न हो जाए,
कोई हम न हो जाए शराबी।।

ये लंबे गेसू क्या है तुम्हारे,
काली घटाएं भी शर्माती।
जब इनको फैला देती हो,
बिजली भी है घबराती।।

ये गर्दन क्या है तुम्हारी,
सुराही से ज्यादा है प्यारी
जिस तरफ इसको घुमा दो
छटा फैल जाती हैं न्यारी।।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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