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माँ चूल्हा,धुँआ,रोटी,और हाथों का छाला है माँ,
ज़िन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है माँl
माँ पृथ्वी है, जगत है,धुरी है,
माँ बिन सृष्टि की कल्पना अधूरी हैl
तो माँ की यह कथा अनादी है, अध्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं हैl
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकताl
तो मैं कला की पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
मैं दुनिया की सब माताओं को प्रणाम करता हूँ!
#रुपेश कुमार
परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।
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