ज़ुल्म से टकराने वालों की निशानी और है
आजकल के नौजवानों की जवानी और है
इक ज़रूरी बात ये तुमको बतानी और है
जो किताबों में छपी है वो कहानी और है
फ़स्ल क्यों उगती नहीं है इस जगह उम्मीद की
इस जगह का दोस्तो क्या खाद पानी और है
राजधानी में भी सुविधाएं नहीं हासिल हमें
राजधानी में भी शायद राजधानी और है
दिन में उसके बारे में तुम चाहे कुछ कहते फिरो
रात में देखो अगर, तो रातरानी और है
ख़्वाब तो कुछ और ही थे ज़िन्दगानी के मगर
जी रहे हैं हम जिसे वो ज़िन्दगानी और है
पहले भी वो रुठता था मान जाने के लिए
इस समय की उसकी लेकिन आनाकानी और है
ख़त्म करने वाला ही था मैं भी क़िस्से को मगर
सुन रहे हो तो सुनो फिर इक कहानी और है
हो कहीं का भी बशर दिल में मगर उसके “असर”
भावनाएं एक ही हैं जबकि बानी और है.
#अरविन्द कुमार