‘बहना’ कभी आँसूओं के संग मत बहना,
हमेशा हर घड़ी संग-संग रहना।
भइया है तुम्हारा सबसे प्यारा,
मम्मी नहीं तो क्या हुआ,भइया की परी हो।
जिम्मेदारियाँ तुम्हारी सब निभाएगा,
बालों में कंघी,माथे पर बिन्दी,
होंठों पर मुस्कान वापस लाएगा।
मम्मी की तरह मैं हूँ अब,तू पहले खाएगी
फिर मैं देखकर खुश तुझे,अपनी भूख मिटाऊँगा।
राखी का बन्धन,जन्मों का संगम है,
तेरी रक्षा मेरे जीवन का अनमोल बन्धन है।
होना नहीं मायूस कभी,कुछ सोचकर,
भइया नहीं,मम्मी भी हूँ मैं खुश रहना यह सोचकर।
एक दिन तू भी मुझे खूब रुलाएगी,
जब तू मुझे छोड़ इस घर से जाएगी।
सच बहना तेरी कंघी,तेरी बिन्दी,
तेरे बचपन की बहुत याद आएगी।
तेरा टूटा वह खिलौना जब बहुत रोई थी,
मैंने मम्मी की तरह आँचल में भरकर समझाया था तुझे।
गुड्डे-गुड़ियों की कहानी और तेरी वो,
दादी जैसी जुबानी,सच बहुत रुलाएगी।
तू रुठ जाती थी जब कोई तेरे बाल बिगाड़ देता,
फिर मैं घण्टों बैठ पास तेरे बाल बनाया करता।
कोई कुछ कह देता,झट दौड़कर शिकायतें मुझसे,
अपनी बाँहों के आलिंगन में मम्मी जैसे प्रेम दिखाया करता था।
आज तू हो गई है बड़ी सयानी,
बिखरे हैं अब बाल मेरे और तू बन गई मम्मी की जुबानी।
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।