बच्चे तो आखिर बच्चे होते हैं ,
थोड़े नटखट थोड़े चंचल होते हैं ।
बात हमेशा ये सच्ची ही करते ,
झूठ , फरेब और नहीं, धोखा करते ।
चुलबुली और प्यारी बातें करते ,
बच्चों से घर आंगन महका करते ।
हो – हल्ला व धमाचौकड़ी मचाते ,
सबकी नकल और एक्टिंग करते ।
दादी दादा का मन खूब बहलाते ,
वे भी संग इनके बच्चा बन जाते ।
नित्य नई नई फिर शरारतें करते ,
स्कूल जाने से ये घबराते हैं ।
बोझ बस्ते का वहन न कर पाते हैं ,
मन की बात ये कभी छुपा न पाते ।
कभी कभी ये गुस्सा भी हो जाते ,
थोड़े प्यार से फिर मान भी जाते ।
बच्चो में होती भगवान की मूरत ,
भोले भाले हैं दिल के खूबसूरत ।
बच्चे तो आखिर बच्चे होते हैं ।,
थोड़े नटखट थोड़े चंचल होते हैं ।
# रीता “जयहिन्द हाथरसी” दिल्ली