शांतिनिकेतन यात्रा संस्मरण (भाग 2) छातिमतला

0 0
Read Time5 Minute, 54 Second

शहरी कोलाहल से दूर शांतिनिकेतन के हरे भरे परिसर में आकर व्यक्ति का प्रकृति के साथ सीधा संवाद स्थापित हो जाता है…सांसारिक भाव कहीं लुप्त होने लगता है…प्रतिक्षण आसपास एक नैसर्गिक संगीत सुनाई देता है…विचारों के अंकुर भी यहां अनायास फूटने लगते हैं…

इस वातावरण में आकर मेरे मन में भी कई भाव उपजे…पेड़ों और फूलों की बातें…पंछियों का कलरव…हवाओं का संगीत… यह सब मुझे आगे भी बहुत कुछ लिखने के लिए प्रेरित करता रहेगा…

बहरहाल अभी बात छातिमतला की…

छातिमतला शांतिनिकेतन का एक प्रमुख अंग है। यह स्थल कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर द्वारा कला और ध्यान साधना के लिए बनाया गया था। वे अक्सर यहां छातिम (सप्तपर्णी) वृक्ष के नीचे ध्यान किया करते थे।

सप्तपर्णी मूलतः संस्कृत शब्द है। बांग्ला भाषा में इसे छातिम कहते हैं। इसमें सात पत्तों के गुच्छे होते हैं और इन्हीं के बीच से फूल निकलते हैं। पत्तियां एक गोल समूह में सात सात के क्रम में सजी होती हैं और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है। टैगोर ने ‘गीतांजलि’ के कुछ अंश सप्तपर्णी वृक्ष के नीचे ही लिखे थे। यहां विश्वभारती के दीक्षांत समारोह में ग्रेजुएट होने वाले हर छात्र को सप्तपर्णी वृक्ष की पत्तियां दी जाती हैं।

छातिम सदाबहार वृक्ष है। बारहों महीने हरा भरा रहने वाला। लेकिन शरद ऋतु में इसकी सुंदरता निखर कर सामने आती है। शायद ही ऐसा कोई फूल होगा जिसकी गंध इतनी मादक हो। सप्तपर्णी के साथ शरद ऋतु का संबंध भी एक पहेली जैसा है।

एक कवि का मन तो यह सोचता रहता है कि शरद के स्वागत के लिए सप्तपर्णी खिलती है या सप्तपर्णी के लिए ही शरद आता है… लेकिन यह वनस्पति विज्ञानियों के लिए शोध का विषय हो सकता है कि पूरे साल सामान्य सुगंध बिखेरनेवाला यह फूल शरद आते आते इतना मादक कैसे हो जाता है। इसके गंध में इतनी मादकता कैसे और कहाँ से समा जाती है…

इसे ‘यक्षिणी का वृक्ष’ भी कहते हैं। संभवतः इसके पीछे तर्क यह है कि सप्तपर्णी पहले अपनी सुंदरता से रिझाती है और फिर उसके करीब जाने पर अपनी मादकता से मदहोश कर देती है…

क्रमशः……..

#डॉ. स्वयंभू शलभ

परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

रंगोली

Tue Oct 22 , 2019
रंगोली देखो सजी,घर आंगन अरु द्वार।शांति दीप पावन भरे,हो मंगल परिवार।। रंग बिरंगी नेक सम,लाती अलग निखार।दिल से तोड़ो नीर अब,आओ सदा बहार।। चौक दीप पूजन समय,रंगोली की याद।आकर्षित करती सदा,करती पूर्ण मुराद।। रंगोली सम बाँटिए,रहे एकता प्यार।सम्पूर्ण हो कामना,यही नीर आधार।। मंगलकारी का बने,नीर प्रेरणाधार।रहें एकता साथिया,रंगोली अधिकार।। #नवीन […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।