क्यों न मृत्यु का भी उत्सव किया जाए

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salil saroj

एक मात्र शाश्वत सत्य यही,
शिव के त्रिनेत्र का रहस्य यही,
चंडी का नैसर्गिक रौद्र नृत्य यही,
कृष्णा सा श्यामलाराधा सा शस्य यही।
तो क्यों न मीरा सा इसका भी विषपान किया जाए।

ये अनादि हैये अनंत है,
ये गजानन का त्रिशूली दंत है,
यही है गोचरयही अगोचर,
यही तीनों लोकों का महंत है।
तो क्यों न देवों की तरह इसका भी रसपान किया जाए।

यही अनल हैयही अटल है,
यही शांत हैयही विकल है,
यही है भूतयही भविष्यत,
ब्रह्मांडों का अस्तित्व सकल है।
तो क्यों न भीष्म सा इसको भी जीवन दान दिया जाए।

यही है हर्तायही है कर्ता,
यही है दातायही है ज्ञाता,
समय के व्यूह पर अनवरत सवार ,
यही है मातायही विधाता।
तो क्यों न जननी की तरह इसका भी सम्मान किया जाए।

#सलिल सरोज
परिचय : सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।पंजाब केसरी ई अखबार ,वेब दुनिया ई अखबार, नवभारत टाइम्स ब्लॉग्स, दैनिक भास्कर ब्लॉग्स,दैनिक जागरण ब्लॉग्स, जय विजय पत्रिका, हिंदुस्तान पटनानामा,सरिता पत्रिका,अमर उजाला काव्य डेस्क समेत 30 से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में मेरी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। भोपाल स्थित आरुषि फॉउंडेशन के द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम 20 में स्थान। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित।

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