साहित्य की गरिमा को नोटों मे तौला है
धन कमाने के लिये नया धंधा खोला है।
कविता के नाम पर कलाकारी चल रही
कव्वों ने अब कवियों का पहना चोला है।
हर मंच पर वो अपना बंदा चला रहे है
कविता के नाम पर वो धंधा चला रहे है।
कहीं हाथ जोडे तो कहीं पैरो मे गिरकर
मंच के लिये वो हरेक फंडा चला रहे है।
मंचो पर रहेगी तुम्हारी हिस्सेदारी कब तक,
आयोजकों की जायेगी मति मारी कब तक।
साहित्य जगत के अरे वो….चुटकुलोबाजों
कविता के नाम पर…कलाकारी कब तक।।
कैसे मापदंड साहित्य मे निर्धारित हो रहे है
जिनमे कविता नही वो सम्मानित हो रहे है।
रूपयो मे बीक रहा है यहां पर पुरस्कार तो
पैसा कमाने कार्यक्रम आयोजित हो रहे है।
#संजय अश्क बालाघाटी