आज भी जहां रोज परमात्मा ही पढ़ाते है !

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क्या कोई ऐसास्कूल,विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्थान है जहां परमात्मा स्वयं पढ़ाते हो और वही एक मात्र शिक्षक व गुरु हो?जी हां , प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय एक ऐसी अनूठी आध्यात्म ज्ञान और चरित्र निर्माण की शिक्षण संस्था है जहां प्रतिदिन स्वयंं परमात्मा ही पढ़ाते है।जो पाठ प्रतिदिन ब्रह्माकुमारीज के 140 देशों में फैले साढ़े आठ हजार सेवा केंद्रों पर निमित्त भाई बहनों द्वारा पढाया जाता है उसे ईश्वरीय वाणी ही कहा जाता है| इस मुरली रूपी पाठ मे परमात्मा सीधे अपने बच्चो अर्थात इस संगम युगी आत्माओ से संवाद करते है |यह मुरली विभिन्न भाषाओ मे छपकर दुनिया के 140देशो मे एक साथ प्रसारित होती है. मुरली की भाषा कोई भी हो लेकिन सबमे विचार एक ही होता है |मजेदार बात यह भी है कि यह मुरली प्राय दुनिया मे सब जगह स्थानीय समय के अनुसार सुबह, दोपहर, शाम एक ही समय पर पढ़ी व सुनाई जाती है |यह मुरली जो कि चार पृष्ठों मे समाहित होती है, मे जीवन की हर समस्या का समाधान भी सहज ही मिल जाता है |यदि आप रोज मुरली सुनते या पढ़ते है तो आपके मन मे कोई भी शंका, समस्या, प्रश्न पैदा होता है तो उसका उत्तर आपको हर हालत मे मुरली के अंदर ही मिल जाएगा |इसके लिए अलग से किसी शिक्षक, गुरु, संत, महात्मा के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी |मुरली मे पांचो विकारो से मुक्ति के उपाय सुझाये जाते है तो इन विकारो को छोड़ने के लिए प्रेरित भी किया जाता है |सबसे बड़ी बात यह है कि मुरली किसी धर्म विशेष का प्रचार नहीं करती, मुरली मे हिन्दू सनातन. मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि धर्मों की विशेषताओं और उनके प्रति सम्मान भी अभिव्यक्त किया जाता है |तभी तो इस संस्था मे सभी धर्मों से जुड़े लोग श्रद्धा भाव के साथ दौड़े चले आते है |दरअसल मुरली हमें वास्तविक गीता का ज्ञान देती है, जो परमात्मा शिव के द्वारा रचित है |इस मुरली मे हर रोज नए विषय पर ज्ञान चर्चा होती है और मनुष्य के आदि, मध्य, अंत के बारे मे बताया जाता है |वास्तव मे मनुष्य है क्या? वह कहा से आता है, कहा चला जाता है |परमात्मा कौन है, उसका क्या स्वरूप है, परमात्मा का आत्मा से क्या संबंध है |आत्मा हमारे शरीर मे कहा रहती है |शरीर के बजाए आत्म स्वरूप मे रहने के क्या फायदे है |परमात्मा को याद करना क्यों जरूरी है, परमात्मा को याद करने की उत्तम विधि क्या है. हम हर समय सामान्य कामकाज करते हुए व गृहस्थ मे रहकर भी संत समान कैसे रह सकते है, इन सब पर मुरली मे पढ़ने व सुनने को मिलता है |सबसे बड़ी बात मुरली मे यह है कि जो व्यक्ति नियमित मुरली सुनता है या फिर पढ़ता है वह शंकाओ और दुविधाओ से दूर हो जाता है |उसके मन मे व्यर्थ के विचार आने कम हो जाते है और उसकी अच्छा सोचने व अच्छा करने की शक्ति पढ़ जाती है |मुरली सुनना भी एक प्रकार का नशा है जिसे हम ईश्वरीय प्रेम का नशा भी कह सकते है |मुरली से अंहकार से मुक्ति मिल जाती है |व्यक्ति निरहंकार युक्त जीवन जीने मे आनंद प्राप्त करता है |चूंकि मुरली सीधे सीधे ईश्वरीय वाणी है इसलिए उसमे दिये संदेशो को परमात्मा का संदेश मानकर लोग अपने जीवन को शांतिमय व सुखमय बना लेते है |
मुरली केवल ब्रह्माकुमारीज सेवा केन्द्रो पर संस्था से जुड़े लोगो के लिए ही उपलब्ध नहीं बल्कि जनसामान्य के लिए भी नेट पर, पीस आफ माइंड चैनल पर, रेडियो मधुबन पर, वाहट्स ऐप पर, फेसबुक पर मौजूद रहती है |लेकिन मुरली की संवाद भाषा थोड़ी अलग है इसलिए इसे सुनने व पढ़ने से पहले यदि ब्रह्माकुमारीज संस्था द्वारा निशुल्क संचालित सात दिन का आध्यात्मिक ज्ञान पाठ्यक्रम पूरा कर लिया जाए तो मुरली सहजता से समझ आने लगेगी और जीवन को सफल बनाने मे मदद मिल जायेगी |
हमारा सबसे बड़ा गुरु परमपिता परमात्मा शिव हैं जिन्हें हम अलग-अलग नामों के साथ याद करते हैं। परमात्मा एक है और आत्मा उस स’चे परमपिता परमात्मा की संतान है। उन्होंने कहा कि वर्तमान काल में प्रजापिता ब्रह्मकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय यही सेवा कर रहा है कि हर एक आत्मा परमात्मा को पहचान कर अपना तीसरा नेत्र खोले और परमात्मा के सिवाए कोई मानवीय आत्मा किसी का भी तीसरा नेत्र नहीं खोल सकती।
संसार में गुरुओं के बारे में जो दावे किए जाते हैं कि वह अपने भक्तों के सभी पापों को खत्म करने में सक्षम होते हैं एवं सभी देवताओं के ऊपर हैं इत्यादि, यह सभी दावे केवल उस एक सतगुरु परमात्मा के लिए ही किए जा सकते हैं, न कि किसी देहधारी के लिए क्योंकि अन्य सभी तो हमारे जैसे नश्वर प्राणी हैं जो समय और प्रकृति की सीमाओं से बंधे हुए हैं। अत: वे एक सीमित हद तक ही हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। दूसरा किसी अन्य व्यक्ति के पापों को खत्म करने की अवधारणा कर्म के कानून के विपरीत है क्योंकि उसके अनुसार हर आत्मा को उसके कर्मानुसार फल की प्राप्ति होती है। अत: पापियों के पाप यदि कोई हर सकता है तो वह केवल एक सतगुरु परमात्मा ही हैं जो गुरुओं के भी गुरु हैं।
वर्तमान समय में नकारात्मक माहौल और भावनाओं ने सभी के मन के ऊपर अपना साम्राज्य बना लिया है, जिसके फलस्वरूप सभी मनुष्य आत्माएं धर्म की छत्रछाया में एक स्थाई शरण खोजने में असमर्थ हो रही हैं। यह लक्षण उस शुभ घड़ी की ओर इशारा कर रहे हैं, जब ‘सर्वोच्च सत्ता परमात्मा स्वयं मार्गदर्शक के रूप में हम सभी आत्माओं का मार्गदर्शन करने आएंगे और जीवन मुक्ति के पथ की ओर चलने की हमारी यात्रा का नेतृत्व करेंगे।
गुरु-शिष्य परंपरा तो हमारी संस्कृति की पहचान है। हमारे देश में शिक्षक अर्थात गुरु को तो भगवान से भी बढ कर बताया गया है। संस्कृत का यह श्लोक दर्शाता है कि प्राचीन काल से ही भारत में गुरुजनों को कितना सम्मान दिया जाता रहा है:
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थात्: गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म अर्थात परमात्मा शिव हैं; ऐसे गुरु का मैं नमन करता हूँ।
आज शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से बदल चुकी है, जहाँ पहले गुरुकुल प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा दी जाती थी वहीँ आज ई लर्निग का चलन आ चूका है। आज हम डिजिटल इंडिया में प्रवेश कर चुके हैं, जिसका असर हमारी शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ा है। घर बैठे सात समुंदर पार के शिक्षक भी हमारे शैक्षणिक विकास में सहयोग दे रहे हैं। किन्तु आधुनिकता और नई तकनिकी के इस दौर में हमारे शिक्षकों की भूमिका पर शिक्षक दिवस का महत्त्व क्या है इस पर विचार करना भी आज की प्रासंगिता है क्योंकि आज जहाँ एक तरफ हमारे साक्षरता की दर बढ़ रही हैं वहीँ दूसरी तरफ समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है।
आज देश में बढती अराजकता के लिये कहीं न कहीं हमारी शैक्षणिक व्यवस्था भी जिम्मेदार है। बाल्यवस्था की शिक्षा वह नीव है जहाँ आध्यात्मिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का बीज भी रोपित किया जाता है, जिससे बचपन से ही बच्चे सामाजिक मूल्यों को समझ सकें। परंतु हमारे देश की ये कड़वी सच्चाई है कि प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की अुनपस्थिती तथा बुनियादी शैक्षणिक ढांचे में बहुत कमी है। आज उच्च गुणंवत्ता वाली शिक्षा के लिये अधिक फीस देनी पड़ती है, जो सामान्य वर्ग के लिये एक सपना होती है। लिहाज़ा एक बहुत बड़ा बच्चों का वर्ग उचित शिक्षा के अभाव में रास्ता भटक जाता है। कई जगहों पर तो नकल से पास कराने में शिक्षक इस तरह सहयोग करते हैंं कि, बच्चों के मन में उनके प्रति सम्मान न रहकर एक व्यवसायी की तस्वीर घर कर जाती है।
आज शिक्षा, सेवाभाव के दायरे से निकलकर आर्थिक दृष्टी से लाभ कमाने की ओर अग्रसर है। जबकी शिक्षकों की जिम्मेदारी तो इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उनको बच्चों के सामने ऐसा आदर्श बनकर प्रस्तुत होना होता है, जिसका अनुसरण करके छात्र/छात्राओं का शैक्षणिक विकास ही नही अपितु नैतिक विकास भी सार्थकता की ओर पल्लवित हो।
हमारे देश में प्रतिभावान विद्यार्थियों की कोई कमी नही है जरूरत है उन्हे तराशने और मूल्य आधारित शिक्षा के प्रकाश से अवलोकित करने की है।कबीर के शब्दों में,
गुरु कुम्हार और शिष्य कुंभ है, गढी-गढी काढै खोट ।
अंतर हांथ सहार दे, बाहर बाहै चोट।।
अर्थात: शिक्षक तो कुम्हार के समान है, जो अपने शिष्य को ऐसे तराशता है जिससे उसके मन में कोई भी बुराई न रह जाये और इस दौरान शिक्षक का मर्मस्पर्शी व्यवहार उसे भावनात्मक बल भी देता है।लेकिन इससे भी बढ़कर यदि हम शैक्षिक पाठ्यक्रम के साथ साथ ईश्वरीय वाणी को भी आत्मसात कर ले तो जीवन सार्थक हो जायेगा।

#श्रीगोपाल नारसन

परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा भारत गौरव

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।