राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 150 वें जयंती वर्ष के अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के गाँधी अध्ययन केन्द्र और हिन्दी अध्ययनशाला के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का शुभारंभ वाग्देवी भवन स्थित राष्ट्रभाषा सभागार में हुआ। संगोष्ठी का आयोजन ‘महात्मा गाँधी : भाषा, साहित्य और लोक संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में‘ विषय पर किया गया।
संगोष्ठी का शुभारंभ वरिष्ठ समालोचक एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो रामकिशोर शर्मा के मुख्य आतिथ्य और कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। सारस्वत अतिथि छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो विनयकुमार पाठक, बिलासपुर थे।
प्रो रामकिशोर शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि गांधी जी के माध्यम से सम्पूर्ण भारतीयता से परिचित हो सकते हैं। भारत की तीन पहचान हैं । गीता, गंगा और गांधी। वे सिद्धान्तों को जीने वाले व्यक्तित्व थे।
कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि गांधी जी की विश्व सभ्यता को देन बहुमुखी है। उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों में नई दिशाएं दी हैं। प्रो विनय पाठक ने कहा कि गांधी जी ने भारतीय भाषाओं की शक्ति को प्रतिष्ठित किया और स्वदेश के प्रति स्वाभिमान का अलख जगाया। बीज वक्तव्य देते हुए मुख्य समन्वयक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि आज जब हाशिये के समाज की बात की जा रही है, उसके मूल सूत्र गांधी जी के यहां मौजूद हैं। उन्होंने साम्प्रदायिक और जातीय समरसता की अलख जगाई थी।
उद्घाटन समारोह में वरिष्ठ लेखक डॉ देवेंद्र जोशी की पुस्तक ‘सदी के सितारे’ का लोकार्पण हुआ, जिसमें महात्मा गांधी सहित अनेक समाजसेवियों, लेखकों और संस्कृतिकर्मियों पर केंद्रित महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह किया गया है। सप्रे संग्रहालय की ओर से प्रकाशित गांधी जी विषयक ग्रंथ श्री अरविंद श्रीधर ने अर्पित किए। गांधी अध्ययन केंद्र में दुनिया भर के अस्सी से अधिक देशों के डाक – टिकटों और मुद्राओं में महात्मा गांधी के रूपांकन पर एकाग्र प्रदर्शनी संयोजित की गई। प्रदर्शनी का संयोजन वरिष्ठ मुद्राशास्त्री डॉ आर सी ठाकुर एवं डाक टिकट संग्राहक श्री ऋषिराज उपाध्याय द्वारा किया गया।
प्रारम्भ में अतिथि स्वागत मुख्य समन्वयक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डीएसडब्ल्यू डॉ राकेश ढंड ने किया। स्वागत भाषण प्रो प्रेमलता चुटैल ने किया। संचालन डॉ जगदीश शर्मा ने किया। आभार प्रो गीता नायक ने माना।
शुभारंभ समारोह के पश्चात दो तकनीकी सत्र हुए, जिनमें बीस शोध पत्रों की प्रस्तुति हुई। सत्रों की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार प्रो रामकिशोर शर्मा, इलाहाबाद और डॉ शिव चौरसिया ने की। सत्रों में प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ सत्यकेतु सांकृत, नई दिल्ली, डॉ जवाहर कर्नावट, मुंबई, डॉ हरीश प्रधान, डॉ रामचन्द्र ठाकुर, महिदपुर, जीवनसिंह ठाकुर, देवास,श्रीराम दवे, प्रो गीता नायक, डॉ देवेंद्र जोशी, डॉ प्रभु चौधरी, महिदपुर आदि ने विचार व्यक्त किए। संचालन हीना तिवारी और संदीप पांडेय ने किया। संगोष्ठी में दस राज्यों के विशेषज्ञ विद्वान एवं शोधकर्ताओं ने सहभागिता की।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में दूसरे दिन हुआ गांधी जी के बहुमुखी योगदान और लोक पर प्रभाव पर विमर्श
त्रि-दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में दूसरे दिन तीन तकनीकी सत्र हुए। मुख्य अतिथि वक्ता जयपुर के प्रो अनिलकुमार जैन ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी कविता में गांधी के जीवन, मूल्य और प्रतीकों की व्यापक अभिव्यक्ति हुई है। भारतीय भाषाओं के अनेक उपन्यासों और कहानियों के चरित्र और प्रसंगों पर गांधी जी का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई के संस्थापक व निदेशक डॉ. एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने कहा कि गांधी जी ने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर बल दिया। वे शिक्षा को अन्तर्निहित शक्ति के विकास का मूल आधार मानते हैं, जो विदेशी भाषा के माध्यम से संभव नहीं है। डॉ विनायक पांडेय, इंदौर ने कहा कि गांधी जी का चिंतन आतंकवाद और भ्रष्टाचार से मुक्ति की राह दिखाता है। उन्होंने प्राणिमात्र के कल्याण का मार्ग दिखाया है।
हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि तुलसी कृत रामचरितमानस गांधी जी के लिए काव्यादर्श और जीवनादर्श रहा है। उन्होंने तुलसी के आदर्शों के अनुरूप समस्त मनुष्यों से दूसरों के गुणों को अंगीकार करने और दोषों से दूर रहने का आह्वान किया है।छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विनय पाठक, बिलासपुर, डॉ पूरन सहगल, मनासा और डॉ बहादुर सिंह परमार, छतरपुर ने क्रमशः छत्तीसगढ़ी, मालवी और बुंदेली लोक जीवन और साहित्य पर गांधी जी के प्रभाव को अनेक उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया।
तकनीकी सत्रों में पच्चीस से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति हुई। सत्रों की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ पूरन सहगल, डॉ अनिलकुमार जैन, जयपुर एवं डॉ कला जोशी, इंदौर ने की। सत्रों में प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ चन्द्रकुमार जैन, राजनांदगांव, डॉ प्रभातकुमार दुबे, नागपुर, डॉ पुष्पेंद्र दुबे, इंदौर, डॉ सत्यकेतु सांकृत, नई दिल्ली, डॉ राकेश ढंड, डॉ शिशिर उपाध्याय, बड़वाह, डॉ सी एल शर्मा, रतलाम आदि ने विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ जगदीश शर्मा, डॉ अजय शर्मा एवं राम सौराष्ट्रीय ने किया।
गांधी जी के 150 वें जयंती वर्ष के अवसर पर समापन दिवस पर वाग्देवी भवन स्थित राष्ट्रभाषा सभागार में गांधी जी के विश्वव्यापी प्रभाव पर चर्चा के साथ काव्य एवं संगीत के माध्यम से भावांजलि अर्पित की गई। संगोष्ठी में तीसरे दिन चार सत्र हुए।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि जबलपुर के प्रो त्रिभुवननाथ शुक्ल ने अपने वक्तव्य में कहा कि महात्मा गांधी के विचार संपूर्ण मानवता के लिए हैं। मनुष्यता से जुड़ा ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिस पर उन्होंने प्रयोग न किया हो। पूरे विश्व के लिए उनके संदेश उपयोगी हो चुके हैं। उनका विश्वास था कि राष्ट्र का मंगल राम के सद्गुणों से हो सकता है। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी सच्चे अर्थों में ऋषि हैं। भारत के विश्व गुरु होने की प्रक्रिया में गांधी के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जाएगा। गीता में कहा गया है कि जो भी श्री से युक्त है वह कृष्ण का रूप है, गांधी जी का व्यक्तित्व इसी प्रकार का है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो राम किशोर शर्मा ने कहा कि गांधी जी मात्र पूजा के प्रतीक न बनें, उन्हें जीवन में उतारने की आवश्यकता है। समय के दबाव में जो परिवर्तन आ रहे हैं, उनके बीच गांधी के दिखाए मार्ग पर चलना अत्यंत आवश्यक है।
आयोजन की संकल्पना पर विचार व्यक्त करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि मानवीय सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिस पर गांधी जी अपनी मौलिकता और दृढ़ता के साथ खड़े न हुए हों। वे राजनीतिक गुलामी से मुक्ति से पहले जरूरी मानते हैं भाषाई गुलामी से मुक्ति। वर्तमान में गांधी जी के अवदान पर अन्तरानुशासनिक दृष्टि से कार्य करने की आवश्यकता है।
प्रातः काल तकनीकी सत्र में प्रो प्रेमलता चुटैल, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ त्रिभुवननाथ शुक्ल ने की। सत्र का संचालन डॉ भेरूलाल मालवीय ने किया। ‘महात्मा गाँधी: भाषा, साहित्य और लोक संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में‘ विषय पर केंद्रित इस संगोष्ठी में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विनय पाठक, बिलासपुर, डॉ एम एल गुप्ता, मुंबई, डीएसडब्ल्यू डॉ राकेश ढंड आदि सहित अनेक राज्यों के विद्वान उपस्थित थे।
आठ भाषाओं की कविताओं और संगीत के माध्यम से दी गई गांधी जी को भावांजलि
राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन दिवस पर आठ भाषाओं की कविताओं और संगीत के माध्यम से गांधी जी को भावांजलि अर्पित की गई। कविताओं में महात्मा गांधी की अनुगूंज कार्यक्रम में देश के प्रतिष्ठित कवि श्रीराम दवे, डॉ देवेंद्र जोशी (हिंदी), प्रो त्रिभुवननाथ शुक्ल (संस्कृत), डॉ बी आर धापसे, औरंगाबाद (मराठी), डॉ रफीक नागौरी, श्री हमीद गौहर, डॉ विजय सुखवानी (उर्दू), डॉ शिव चौरसिया (मालवी), डॉ शिशिर उपाध्याय, श्रीमती जयश्री उपाध्याय बड़वाह (निमाड़ी), डॉ बहादुर सिंह परमार, छतरपुर (बुंदेली) और डॉ चंद्रकुमार जैन,राजनांदगांव (छत्तीसगढ़ी) ने अपनी सरस रचनाओं के द्वारा गांधी जी के प्रति भावांजलि अर्पित की।
लोक गायक श्री सुंदरलाल मालवीय गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेणे कहिए और मालवी गीत अमर हुई गया बापूजी, जिनके याद करे संसार की प्रस्तुति कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। काव्य पाठ का संचालन श्री शिशिर उपाध्याय ने किया।
प्रारम्भ में अतिथि स्वागत मुख्य समन्वयक एवं हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डीएसडब्ल्यू डॉ राकेश ढंड ने किया। स्वागत भाषण प्रो प्रेमलता चुटैल ने किया। संचालन डॉ जगदीश शर्मा ने किया। आभार प्रो गीता नायक ने माना।
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई