पसीना झर रहा झरने की तरह
जिस्म तर, कपड़े हैं तर
दिन को मक्खियां
और रात को मच्छर
कैसे सहें इस उमस का कहर ?
अमीरों ने लगाईं एसियां घरों में
लेते मजे गर्मी में सर्दी का
पूछो रामू से, श्यामू से
कैसे गुजरती हैं रातें उमस भरीं ?
खड़ा था धनुआ मालिक के पास
आ रही थी जिस्म के मैल की बू
मालिक गुर्राया, दूर खड़े होने का आदेश सुनाया
धनुआ दोनों हाथ जोड़ गिड़गिड़ाया |
ये उमस भरे दिन
गरीबों के लिए बड़ी आफत भरे दिन होते हैं
न दिन को सुकून, न रात को चैन
रोज जीते हैं और रोज मरते हैं
डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया से लड़ते हैं |
#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl