बहुत उलझन में हूँ!

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aakib javed

बहुत उलझन में हूँ!
रस्ते भटक रहे है अब!
कंकड़ियां सवाल कर रही मुझसे
जवाब किसी गुफ़ा में चले गए है
नदी में समुद्र कूद रहा है मौन सा
पौधे पेड़ो से करते है चतुराई
बहुत उलझन में हूँ!
रस्ते भटक रहे है अब!
शोर ने ताला लगा दिया मौन पर
उलझने दिमाग से करे शिकायत
वहस ज़िन्दा निगल रही ज़िन्दगी
क्रूरता ने ख़ूबसूरती पे डाला पहरा
बहुत उलझन में हूँ!
रस्ते भटक रहे है अब!
ख़ामोशियाँ ले रही अँगड़ाई
चुप्पी गुम किसी सीवान में
लहरें उफ़ान मार रही मौज़ो पर
ज्वार कब से उठ रहा दिल में
बहुत उलझन में हूँ!
रस्ते भटक रहे है अब!
चाहतो पे ज़रूरत भारी
ख़्वाब में हक़ीक़त हावी
सुख-चैन छिन रहा सब
जबसे जिम्मेवारी आयी
बहुत उलझन में हूँ!
रस्ते भटक रहे है अब!

परिचय : 

नाम-. मो.आकिब जावेद
साहित्यिक उपनाम-आकिब
वर्तमान पता-बाँदा उत्तर प्रदेश
राज्य-उत्तर प्रदेश
शहर-बाँदा
शिक्षा-BCA,MA,BTC
कार्यक्षेत्र-शिक्षक,सामाजिक कार्यकर्ता,ब्लॉगर,कवि,लेखक
विधा -कविता,श्रंगार रस,मुक्तक,ग़ज़ल,हाइकु, लघु कहानी
लेखन का उद्देश्य-समाज में अपनी बात को रचनाओं के माध्यम से रखना

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