समय खड़ा खड़ा अट्टहास कर रहा है।
‘मैं कहाँ बदला? मैं तो सतयुग में भी ऐसा ही था, द्वापर में भी ऐसा ही, और कलयुग में भी ऐसा ही हूँ।लोग बार-बार यह क्यों कहते हैं ‘घोर कलयुग आया है,घोर कलयुग आया है।’ क्या सतयुग में कलयुग नहीं था?क्या यह कलिकाल नहीं था कि एक धोबी के कहने मात्र से राम ने सीता को त्यागा? चुपचाप वन में क्यों भेजा?
यदि भेजा भी तो उसकी उचित देखभाल का प्रबंध क्यों नहीं किया? गौतम ऋषि ने अहिल्या का परित्याग क्यों किया? इतने बड़े ऋषि होकर क्या उनको यह ज्ञान नहीं था कि नारी की एक गरिमा होती है। उसका जीवन में सम्मान होना चाहिए। जो पति को ही भगवान मानकर उसकी सेवा करती रही, उसको अपराधी न होते हुए भी अपराधी माना और त्याग दिया। समाज ने भी उसका बहिष्कार कर दिया। हम कहते हैं कि वो शिला बन गई। सच में पत्थर नहीं बनी थी वो। यदि किसी स्त्री को उसका पति त्याग दे और समाज भी उसका बहिष्कार कर दे तो वह शिला समान ही हो जाती है। पत्थर की तरह जड़वत हो जाती है। खाने-पीने के संसाधन कहाँ से जुटाएगी?कोई बोलने वाला नहीं होगा तो जड़वत तो हो ही जाएगी।
रावण ने यदि सीता का अपहरण किया तो अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए। सबको पता होगा कि पहले जमाने में यह रिवाज था कि यदि किसी स्त्री ने किसी पुरुष को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर लिया तो उस पुरुष का यह कर्तव्य बन जाता था कि वह हर कीमत पर उसको अपनी पत्नी बनाए। शूर्पणखा ने तो स्वयं प्रणय निवेदन किया था और उसके उस निवेदन को ठुकरा दिया गया था। किसी भी स्त्री के लिए उस जमाने में यह बहुत बड़ा अपमान था।
द्वापर युग की घटना ले लो।रुक्मिणी श्री कृष्ण को चाहती थी। उसने कृष्ण के पास पत्र भेजा और श्रीकृष्ण उसके भाई रूक्मि से घोर युद्ध करके रुक्मिणी का हरण करके लाए और द्वारिका में आकर उससे विवाह रचाया।रुक्मणी का भाई रूक्मि कृष्ण के विरुद्ध हो गया था।
संयोगिता पृथ्वीराज को चाहती थी। जयचंद ने द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ति लगवा दी। संयोगिता ने उस मूर्ति के गले में ही वरमाला डाल दी। पृथ्वीराज ने अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया। भयंकर लड़ाई करके संयोगिता को लेकर आए और विवाह किया।
महाभारत के तो अनेकों किस्से हैं। किस-किस किस्से के बारे में बताएँ। पाराशर ऋषि ने सत्यवती से समागम किया और व्यास ऋषि का जन्म हुआ। किसी ने नहाती हुई मेनका को देखा और अपने ऋषि धर्म से विचलित हो गया और सत्यवती का जन्म हुआ जिसे मत्स्यगंधा भी कहा जाता है। भीष्म तीन कन्याओं का अपहरण करके लाए और सत्यवती के पुत्र से दो कन्याओं का विवाह करवाया। बाकी एक रह गई जो अपमानित हुई और बाद में शिखंडी के रूप में जन्म लिया।सत्यवती का पुत्र भी मृत्यु को प्राप्त हुआ और वंश को आगे बढ़ाने के लिए (दोनों पुत्रवधू व एक दासी) व्यास ऋषि द्वारा नियोग पद्धति से तीन पुत्र प्राप्त किए। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर।
भीष्म को अपना वचन बहुत प्यारा था जिसके कारण उन्होंने अंबा से शादी नहीं की। यदि कर लेते तो इतना कुछ न होता। शायद महाभारत ही न होती।
पाँच पांडव पुत्र… पाँचों के पिता अलग-अलग। द्रौपदी को पाँच पतियों की पत्नी बनना पड़ा। इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी,और वह पाँच पति भी उसके सम्मान की रक्षा करने में असमर्थ रहे। उसकी लाज भरी सभा में लुटती रही और वे मौन रहे। वह तो कलियुग की पराकाष्ठा थी।जो समाज एक महारानी के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकता……
पाँच-पाँच पति होते हुए भी जिस औरत की….
जिस कुलवधू की भरी सभा में मर्यादा तार-तार हो जाए……
यह घोर कलयुग नहीं है तो क्या है?
आज तो वैसे ही आधुनिक संचार माध्यमों के कारण बच्चे और बड़े इंटरनेट और मोबाइल पर न जाने कैसी-कैसी पोर्न फिल्में देखते हैं कि उनकी भावनाएँ भड़क उठती हैं और जाने कैसे कैसे कुकर्मों को अंजाम दे देते हैं कि मानवता शर्मसार हो जाती है।
आज रावण *अट्टहास* कर रहा है। भीड़ में खड़ा होकर पूछ रहा है…
*मुझे तो हर वर्ष जलाते हो। यहाँ तो हर युग में कितने ही रावण पैदा हुए हैं। उनको क्यों नहीं जलाते? मैंने तो कभी सीता को हाथ तक नहीं लगाया। जब भी उसके पास गया, अपनी पत्नी के साथ ही गया।आज तो हर गली में एक रावण है। उनके लिए क्या किया?क्या उन्हें जलाया????अपने अंदर के रावण को जलाया????*
*समय अट्टहास कर रहा है।*
*समय अट्टहास कर रहा है।*
#राधा गोयल
परिचय-
नाम:- राधा गोयल
पति का नाम:- श्याम सुंदर गोयल
निवास स्थान:-नई दिल्ली-110018
शिक्षा- स्नातक
संक्षिप्त परिचय: —
हमारे परिवार में लड़कियों को ज्यादा पढ़ाना ठीक नहीं समझा जाता था। आठवीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। आगे पढ़ने के लिए लगातार एक महीने तक खुशामद करने के पश्चात पत्राचार माध्यम द्वारा पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा दी व प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। फिर पढ़ाई की बंदिश; किंतु पढ़ने की ललक के कारण मैंने भी हठ पकड़ ली और पत्राचार माध्यम द्वारा ही पंजाब यूनिवर्सिटी से सन 1964 में हायर सेकेंडरी की परीक्षा दी तथा पूरी दिल्ली में टॉपर रही।आगे पढ़ने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं मिली।
लेखन के प्रति बचपन से ही रुचि थी, लेकिन मेरा यह शौक किसी को भी पसंद नहीं था। 1970 में सात बहन भाइयों के मध्यम वर्गीय परिवार में विवाह हुआ।ससुर का देहांत 1965 में हो चुका था।पति परिवार में सबसे बड़े हैं।परिवार की जिम्मेदारियों ने कभी मेरे शौक की तरफ मुझे झाँकने का अवसर ही नहीं दिया।अब सभी जिम्मेदारियाँ पूरी करके अपने शौक को पुनर्जीवित किया है।पति आधुनिक विचारों के हैं। उनकी इच्छा थी कि मैं आगे पढ़ूँ अतः 1986 में पत्राचार माध्यम से बी.ए किया तथा पूरी यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
समाज कल्याण के कामों के प्रति बहुत जुनून है और गम्भीर बीमारी होने के बावजूद मेरा जुनून मुझे जीवित रखता है।
प्रकाशित कृतियाँ:-
1-काव्य मंजरी(एकल काव्य संग्रह)
2-पाती प्रीत भरी भाग-1(एकल पुस्तक)
3-एक एकल काव्य संकलन *निनाद* व दूसरा *आक्रोश* प्रकाशनाधीन है।
4-कई सांझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
-सम्मान
कभी गिने नहीं।पाठकों को मेरा लिखा हुआ पसन्द आए,यही सबसे बड़ा सम्मान है।