#अविनाश तिवारीजांजगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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अब की बदरा ऐसे बरसो
बुझ जाय धरती की प्यास रे
उदासी हटे किसानों की
पूरी कर दो आस रे
धानी चुनरिया वसुंधरा ओढे
दमक उठे श्रृंगार रे
चातक बैठा जिस बून्द को
पूरी उसकी चाह रे
धरती माँ की अन्तस् से सूखी
जल धार की स्रोतें
छेद हजारों सीने पे जिसके
कैसे स्रोत न सुखें
उन छिद्रों को भर दो
अपनी प्रेम की फुहार से
जड़ चेतन जागृत हो
सृजन की रसधार से
उपवन सूखा मधुवन फीका
ताल तलैया सूखे हैं
जंगल हमने जला दिया
स्वार्थ के हम भूखे हैं
आशाओं के दीप जलाकर
उपवन फिर महकाओ रे
अब की बदरा ऐसे बरसो
उम्मीदों को सहलाओ रे
प्रेम सुधा बरसाओ रे।।
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